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अगर हमें यह हक हासिल हो कि जाते हुए साल 2021 से विदाई के कुछ शब्द कह सकें
शशि शेखर। अगर हमें यह हक हासिल हो कि जाते हुए साल 2021 से विदाई के कुछ शब्द कह सकें, तो आप क्या कहना चाहेंगे? शायद यही कि हे गुजरते वर्ष, अब कोई आने वाला साल कभी तुम्हारे जैसा न हो।
21वीं शताब्दी के इस 21वें साल ने यकीनन दुनिया को अनगिनत दुख दिए। जो कोरोना हमारी जिंदगियों में पिछले वर्ष घुस आया था, उसने इस दौरान समूची इंसानियत को घुटने के बल बैठने पर मजबूर कर दिया। पूरी दुनिया में अब तक 27 करोड़, 65 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं। इनमें से करीब 54 लाख को अपनी जान गंवानी पड़ी। भारत में भी यह आंकड़ा पांच लाख की ओर बढ़ चला है। भारत इस त्रासदी का शिकार होने वाले शीर्ष पांच देशों में गिना जाता है।
कोरोना से न केवल लोगों की जान गई, बल्कि बड़ी संख्या में लोग बदहाली के शिकार भी हुए। मई 2021 से अगस्त, 2021 के बीच दो लाख 38 हजार लोगों ने अपने परिजनों के इलाज के लिए बैंकों से लगभग 4,200 करोड़ रुपये बतौर कर्ज लिए। यह आंकड़ा देश के अमीर माने जाने वाले सूबे गुजरात के कुल स्वास्थ्य बजट का करीब 30 फीसदी है। कल्पना करें, जब महज चार महीने में लोगों ने इतना कर्ज उठाया, तो अब तक कुल कितना ऋण लिया गया होगा?
हालांकि, इस दौरान सुकून की बात यह रही कि केंद्र और सूबाई सरकारों ने महामारी से लड़ने में कोई कोताही नहीं बरती। भारत में बने दो टीकों ने लोगों को इस प्राणलेवा आपदा से निपटने का सामर्थ्य प्रदान किया। 16 जनवरी से अब तक एक अरब, 48 करोड़ से अधिक खुराक दी जा चुकी है। यही नहीं, आर्थिक विकास दर वापस लौटाने के लिए भी भगीरथ प्रयास हुए, पर महामारी के घाव को भरने में काफी समय लगेगा।
कोई आश्चर्य नहीं कि इस दौरान विश्व में आर्थिक विषमता की खाई और चौड़ी होती चली गई। भारत में देश की कुल आमदनी का 57 फीसदी हिस्सा शीर्ष 10 फीसदी लोगों की जेबों में गया। यही नहीं, निचली लगभग आधी आबादी के हिस्से में सिर्फ 13 प्रतिशत कमाई आई। नतीजतन, 2014 तक जिन 27 करोड़ लोगों को गरीबी की रेखा से ऊपर लाया गया था, वे पुन: विपन्नता की अंधी खोह में समा गए हैं। अब ओमीक्रोन के खतरे को नजरअंदाज न करते हुए सरकार और समाज, दोनों इससे जूझने के लिए कमर कस चुके हैं, पर परिणाम कब आएंगे, कितने आएंगे, इसकी गारंटी किसी के पास नहीं। अभी तो यह भी अज्ञात है कि ओमीक्रोन कितना घातक साबित होने वाला है।
भारत में सिर्फ चीन से आए कोरोना वायरस ने ही हमला नहीं किया, उसकी फौजों ने भी मर्यादा तोड़ने की कोशिश की। पिछले साल गलवान में एक लेफ्टिनेंट कर्नल सहित 21 सूरमा शहीद हुए थे। वर्ष 2021 में सीमा पर दोबारा खून तो नहीं बहा, लेकिन अभूतपूर्व तनातनी का सिलसिला जारी रहा। अपना दायरा लांघने की चीन की कोशिश पर क्या अगले साल लगाम लगाई जा सकेगी? यही नहीं, अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की वापसी भी लोगों के यकीन को हिलाने वाली थी। संसार की सबसे बड़ी शक्ति अमेरिका और उसके सहयोगियों ने वहां जैसी बुजदिली का परिचय दिया, वह एक बार पुन: साबित करता है कि हर मुल्क को अपनी लड़ाई खुद लड़नी होगी।
इस दौरान भारत और पाकिस्तान की तनातनी भले ही बडे़ संघर्ष का आकार न ले पाई हो, पर 2021 में सीमा पार से आए हुए गोले और गोलियां अब तक 35 से अधिक जवानों को निगल चुके हैं। इस साल पाकिस्तान से आने वाले ड्रोन भी चिंता का सबब बने। उनके माध्यम से आतंकियों को छोटे, पर प्राणलेवा हथियारों की आपूर्ति की गई। कश्मीर में अल्पसंख्यकों समेत 40 से अधिक लोगों को इन्हीं हथियारों से मारा गया। यह बात अलग है कि देश के गृह मंत्रालय और कश्मीर की हुकूमत ने मिलकर लगभग 100 आतंकवादियों को मार गिराया। इनमें वे भी शामिल हैं, जिन्होंने निहत्थे अल्पसंख्यकों को अपनी क्रूरता का शिकार बनाया था। हालांकि, रक्तपात का सिलसिला जारी है। 13 दिसंबर की रात श्रीनगर में पुलिसवालों से भरी वैन पर गोलीबारी ने इस कड़वे सच को फिर जगजाहिर किया।
सन 2021 ने एक और बात साबित कर दी कि अब 'ग्लोबल विलेज' का नारा निरर्थक हो चुका है। कोविड महामारी आज नहीं तो कल विदा हो जाएगी, पर दुनिया के गरीब मुल्कों को बहुत तेजी से आत्मनिर्भरता की लड़ाई लड़नी होगी। आने वाले साल यकीनी तौर आर्थिक राष्ट्रवाद के होने जा रहे हैं।
गत वर्ष अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की शुरुआत के साथ इसी माह वाराणसी में विश्वनाथ धाम परिसर का लोकार्पण भारत में सत्ता प्रतिष्ठान के बदलते तेवरों को जगजाहिर करता है। उत्तर प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस बीच मथुरा का मुद्दा भी उठा दिया है। यह चुनावी रणनीति का हिस्सा है या आने वाले दिनों का कोई दिशा संकेत?
जाते-जाते यह साल एक अकल्पनीय घाव और दे गया। 8 दिसंबर को भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत अपनी पत्नी और 12 सहयोगियों के साथ हेलीकॉप्टर दुर्घटना के शिकार हो गए। वह नई जरूरतों के मुताबिक भारतीय सेना को नया रूप-रंग देने की कोशिश कर रहे थे। उनकी दुखद मृत्यु इस महत्वाकांक्षी, लेकिन अनिवार्य आवश्यकता के लिए गहरा आघात है।
ऐसा ही घाव लखीमपुर खीरी में किसानों को बेदर्दी से कुचले जाने पर भी लगा, मगर दिल्ली के दर पर डटे किसानों ने इसके बावजूद शांति का रास्ता नहीं छोड़ा। यही वजह है कि वे सरकार से अपनी मनोकामना पूरी करा सके। यह साल किसान संघर्ष के लिए याद रखा जाएगा।
अगर इस साल हमें कोविड-जनित समस्याओं और सुलगती सीमाओं ने कष्ट पहुंचाया, तो एक बात खुलकर सामने भी आई कि भारतीय हुकूमत और भारतीयों का हौसला अतुलनीय है। हम किसी भी समस्या से डिगे नहीं, उसका सामना किया। टोक्यो ओलंपिक में भी हमारे खिलाड़ियों के जबर्दस्त प्रदर्शन ने आंसू पोंछने में मदद की। 23 जुलाई से 8 अगस्त तक चले टोक्यो ओलंपिक ने भारत को कई उम्मीदें दीं। पिछले चार दशकों में भारत ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए सात पदक जीते, जिसमें नीरज चोपड़ा का स्वर्ण, रवि दहिया व मीराबाई चानू के रजत और हॉकी टीम, पीवी सिंधू, बजरंग पूनिया और लोवलीना के कांस्य पदक शामिल हैं। भारत ने 41 सालों बाद हॉकी में कोई पदक जीता। इसी वर्ष अमेरिका में उप-राष्ट्रपति के पद पर भारतवंशी कमला हैरिस की ताजपोशी ने विश्व राजनीति को नया आयाम दिया। यही नहीं, गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर जैसी कंपनियों के शीर्ष पदों पर हमारी युवा पीढ़ी की प्रतिस्थापना हिन्दुस्तानी आकांक्षाओं की नई इबारत लिखती है।
यही वजह है कि आने वाला साल उम्मीदों का वर्ष कहला रहा है। इस दौरान क्या कुछ बदलेगा, इस पर अगले स्तंभ में चर्चा।
Rani Sahu
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