- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- यमराज का झोटा दिल्ली...
यमराज को कुछ हफ्तों से लग रहा था कि उनके यमदूत भी जंबूद्वीप के कर्मचारियों की तरह हो गए हैं, टेसू के पत्ते के नीचे रात गुजारने वाले। एक जीव को लाने में दस दस दिन लगा देते हैं। और जो उनसे इस लेट लतीफी के बारे में पूछा जाए तो ऐसा सॉलिड बहाना बनाते हैं कि…। अगर वे जीवों को यमलोक लाने में ऐसा ही लचरपना बरतते रहे तो…। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है कि जन्म कुंडली पूरी होने पर भी जीव समय पर उनके द्वार नहीं पहुंच रहे? कहीं कोई न कोई पेंच तो जरूर है। पर कहां है? उन्होंने तय किया कि वे इस पेंच का राज जानकर ही रहेंगे। कल ज्यों ही चित्रगुप्त ने दातादीन की बही देखी तो उन्होंने यमराज से कहा, 'सर! दिल्ली के अस्पताल में मौत से बचने के लिए लेटे दातादीन की जन्म कुंडली पूरी हो गई है। उसे अब यमलोक लिवाने हेतु यमलोक से यमदूत भेजने का वक्त आ गया है। दिल्ली की प्रदूषित हवा में उसका शरीर तो घुटा ही, इससे पहले कि अब दातादीन की आत्मा भी घुटे, उसकी आत्मा को घुटने से बचाइए सर! अगर आत्मा भी प्रदूषित हवा से घुटने लग गई फिर तो…।' 'नहीं चित्रगुप्त! अबके हमने फैसला किया है कि अबके हम यमदूत के बदले खुद दातादीन की रुह को लाने जाएंगे।' और वे सच की तलाश में उस निजी अस्पताल आ पहुंचे जहां दातादीन का मरा शरीर अभी भी आईसीयू के बेड पर दसों द्वारों में पाइपें लगावाए जीने की उम्मीद में लेटा था। उसके परिवार वाले पल पल खाली हो रही जेब को कस कर पकड़े परेशान थे। उन्हें कोई कुछ नहीं बता रहा था। उसके मरे शरीर के चारों ओर चमत्कारी मशीनें घरड़ घरड़ कर रही थीं। यमराज उन मशीनों को देख भौंचक रह गए। वाह! कमाल की तरक्की कर ली मैडिकल साइंस ने! पैसे के लिए मरे शरीर को भी हवा दे रहे हैं।
सोर्स- divyahimachal