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केंद्र की मौजूदा सरकार के समय सर्वदलीय बैठक जैसी बातें असामान्य हो गई हैं
By NI Desk
सरकार की नजर में राजकोषीय विवेक क्या है? तीन साल पहले जब सरकार ने बेमतलब कॉरपोरेट टैक्स में सालाना एक लाख 45 हजार करोड़ रुपये की छूट दे दी थी, तो क्या वह निर्णय रोजकोषीय विवेक से निकला था?
केंद्र की मौजूदा सरकार के समय सर्वदलीय बैठक जैसी बातें असामान्य हो गई हैं। इसीलिए जब नरेंद्र मोदी सरकार श्रीलंका के मौजूदा हालात पर सभी दलों की बैठक बुलाई पर सहमत हुई, तो उससे यह संदेश गया कि सचमुच सरकार वहां की हालत से चिंतित हैँ। बैठक में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यह बात बेलाग कही भी कि श्रीलंका में जिस पैमाने पर उथल-पुथल हुई है, वह गहरी चिंता का विषय है। बहरहाल, जयशंकर ने इस घटना से जिन सबक को सीखने की जरूरत बताई, उसके बारे में यह अवश्य कहा जाएगा कि वे सही सबक नहीं हैं। जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका का सबक यह है कि राजकोषीय विवेक से चला जाना चाहिए। इसी सिलसिले में उन्होंने 'रेवड़ियां बांटने' का खतरा बताया। कुछ ही रोज पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'रेवड़ियां बांटने' की आलोचना की थी। अब समझा जा सकता है कि संभवतः सरकार के अंदर ये सोच श्रीलंका में बने हालात को देखते हुए आई है। तो अब यह आवश्यक हो गया है कि आखिर 'रेवड़ियां बांटने' से सरकार का तात्पर्य क्या है? साथ ही सरकार की नजर में राजकोषीय विवेक क्या है?
तीन साल पहले जब सरकार ने बेमतलब कॉरपोरेट टैक्स में सालाना एक लाख 45 हजार करोड़ रुपये की छूट दे दी थी, तो क्या वह निर्णय रोजकोषीय विवेक से निकला था? आज जबकि आर्थिक संकट गहरा रहा है, उस समय धनी लोगों पर टैक्स बढ़ाने और नए कर लगाने से बचाना और खाने-पीने की चीजों पर जीएसटी थोपना क्या राजकोषीय विवेक है? सरकार की इन नीतियों का परिणाम देश में उपभोग और उस नाते मांग में भारी गिरावट के रूप में सामने आया है, जिससे उत्पादन और वितरण की पूरी व्यवस्था भी प्रभावित हुई है। आम इनसान की वास्तविक आमदनी में गिरावट से देश में आर्थिक दुर्दशा की सूरत बन रही है। दूसरी तरफ सरकार की प्रत्यक्ष और परोक्ष सहायता से उसके पसंदीदा अरबपपतियों की संपत्ति बढ़ती जा रही है। यह विषमता समाज को अनिश्चित दिशा में ले जाएगी। इस बात को ना समझना यही बताता है कि सरकार ने श्रीलंका से गलत सबक सीखा है। स्पष्टतः वह जो समाधान सोचेगी, वह सही दिशा में नहीं होगा।
Gulabi Jagat
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