सम्पादकीय

चिंताजनक है मौसम का बदलता मिजाज, किसानों से लेकर आमजन तक को हो रही परेशानी

Rani Sahu
12 Oct 2022 4:13 PM GMT
चिंताजनक है मौसम का बदलता मिजाज, किसानों से लेकर आमजन तक को हो रही परेशानी
x
By लोकमत समाचार सम्पादकीय
चार महीने तक चलने वाला दक्षिण-पश्चिम मानसून आधिकारिक तौर पर 30 सितंबर को समाप्त होने के बाद भी इन दिनों देश के अनेक हिस्सों में होने वाली बेसौसम बारिश चिंता का कारण बना हुआ है। इस साल बारिश के मौसम की शुरुआत तो कई जगह देर से हुई लेकिन उसके बाद लगभग लगातार पानी बरसता रहा।
देश में 1 जून से 30 सितंबर तक 870 मिमी के सामान्य के मुकाबले 925 मिमी बारिश दर्ज की गई और कई जगह फसलों को अतिवृष्टि से नुकसान भी पहुंचा। लेकिन अब धान के पकने के मौसम में बारिश होने से किसानों को अपनी बची हुई फसल के भी नष्ट हो जाने का डर सता रहा है, क्योंकि मौसम विभाग के अनुसार आने वाले और कई दिनों तक ऐसी स्थिति बनी रहने की संभावना है।
उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु जैसे कई राज्यों में तो कई स्थानों पर भारी बारिश के कारण स्कूलों में छुट्टी तक देनी पड़ी है। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में भी बारिश ने जनजीवन अस्त-व्यस्त कर रखा है। इसके अलावा उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, हरियाणा, सिक्किम, असम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, कर्नाटक आदि राज्यों में भी कई स्थानों पर हो रही बारिश चिंता का सबब बनी हुई है।
मौसम विभाग ने 23 राज्यों में मौसम का यलो अलर्ट जारी किया है। विभाग का कहना है कि पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने और चक्रवाती हवाओं के प्रभाव की वजह से इन दिनों बारिश का दौर जारी है। भूगर्भ वैज्ञानिकों का तो कहना है बारिश इसी तरह आगे और ठंड में भी कई बार परेशान कर सकती है। वे इसका कारण प्रशांत महासागर में बन रहे ला नीना को बता रहे हैं।
उधर उत्तराखंड के पहाड़ों में भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं भी चिंता बढ़ा रही हैं। मौसम में बदलाव के तात्कालिक कारण कुछ भी हों, इसमें कोई दो राय नहीं कि हम इंसानों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण और पेड़ों की कटाई ने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है और इसी वजह से मौसम का चक्र भी बिगड़ गया है। पानी या तो बरसता ही नहीं या फिर बेहिसाब बरस जाता है।
इसी तरह ग्रीष्म ऋतु में गर्मी अपना रिकाॅर्ड तोड़ने पर आमादा हो जाती है। यह मौसम की अनियमितता का ही उदाहरण है कि इस साल देश में सामान्य से अधिक बारिश के बावजूद, 187 जिलों में कम बारिश दर्ज की गई, जबकि सात जिलों में भारी कमी दर्ज की गई है।
मानसून विज्ञानी मानसून के मार्ग में बदलाव पर भी चिंता जता रहे हैं क्योंकि पिछले चार-पांच वर्षों से मानसून जुलाई, अगस्त, सितंबर में गंगा के मैदानों को पार करने के अपने पारंपरिक मार्ग को अपनाने के बजाय मध्य भारत की यात्रा करता है, जिसके कारण मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में इस मौसम में अधिक बारिश होती है, जबकि इनमें से अधिकांश क्षेत्रों में भारी वर्षा की आदत नहीं होती है।
मौसम का यह बदलता पैटर्न निश्चित रूप से चिंताजनक है लेकिन जलवायु परिवर्तन के इस दौर में हमें इसके लिए तैयार रहना होगा और सरकार को इसके हिसाब से अपनी तैयारी भी रखनी होगी। साथ ही प्रदूषण में अधिकाधिक कमी लाने की कोशिश करनी होगी ताकि भविष्य में मौसम को और बदतर होने से बचाया जा सके।
Next Story