सम्पादकीय

पाला बदल की चिंता

Rani Sahu
8 March 2022 5:04 PM GMT
पाला बदल की चिंता
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राज्य हो या केंद्र, चुनाव में जब स्पष्ट बहुमत का अभाव हो जाता है

राज्य हो या केंद्र, चुनाव में जब स्पष्ट बहुमत का अभाव हो जाता है, तो गठबंधन या दलबदल की जरूरत पड़ने लगती है। अत: जिन राज्यों में ऐसी आशंका है, वहां सभी दल अपने-अपने ढंग से बचाव में जुट गए हैं। गोवा के बारे में सूचना है कि कांग्रेस अपने प्रत्याशियों को लेकर सचेत हो गई है। उसे दलबदल का भय सताने लगा है। खबर यहां तक है कि गोवा कांग्रेस ने दलबदल के भय से अपने प्रत्याशियों को रिजॉर्ट में भेज दिया है। अपने विधायकों को दलबदल या खरीद-फरोख्त से बचाने के लिए यह तरीका नया नहीं है। बड़ी-छोटी अनेक पार्टियों में समय-समय पर ऐसी अप्रिय स्थितियां पैदा हुई हैं। गोवा में कांग्रेस का ताजा भय आधारहीन नहीं है। 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने गोवा की 40 में से 17 सीटों पर जीत हासिल की थी, पर 13 सीटें जीतने के बावजूद छोटी पार्टियों और निर्दलीयों की मदद से भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। भाजपा की राजनीतिक तैयारी या चेष्टा का कोई तोड़ कांग्रेस के पास नहीं था। कांग्रेस उस दलबदल से इतनी कमजोर हो गई थी कि बाद में उसके 15 विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे।

किसी भी पार्टी को बुरा ही लगेगा, यदि उसके नेता ज्यादा विधायक के बावजूद सरकार न बना पाएं या किसी छोटी पार्टी के पास भले ही चंद विधायक हों, लेकिन अगर वे सत्ता के लिए पार्टी छोड़ जाएं, तो उन्हें रोकने के लिए कोई नियम-कायदा तय नहीं है। क्या इसके लिए कानून बनाने की जरूरत नहीं है? क्या राजनीति में वांछित-वाजिब नैतिकता की बहाली हो सकती है? यह दुखद ही है, जब पार्टियां जीतने के बाद पाला या गठबंधन बदल लेती हैं, तब तय संख्या में अपने नेताओं को दलबदल विरोधी कानून से बचते हुए पार्टी से बाहर जाने से कैसे रोका जा सकता है? साफ है, दलबदल विरोधी कानून तो अभी भी है, लेकिन उसकी खामियों या अपर्याप्तता को राजनेता ठीक से समझ गए हैं। कांग्रेस ही नहीं, कोई भी पार्टी यह नहीं चाहेगी कि ज्यादा सीटें जीतने के बावजूद वह सरकार न बना पाए, लेकिन कायदा यह भी है कि किसी पार्टी को अगर ज्यादा सीटें मिलें, तो वह गठबंधन करते हुए सरकार बनाने के पूरे प्रयास करे।
गठबंधन के दौर में समस्या यह हो गई है कि मतदाता जिन नेताओं को विपक्ष में बैठने के लिए मत देते हैं, वे भी सत्ता पक्ष में शामिल होने को लालायित रहते हैं। छोटी-छोटी पार्टियों को भी सत्ता में हिस्सेदारी मिल जा रही है और खूब सीटें जीतने वाली पार्टी भी विपक्ष में सुशोभित हो रही है। दरअसल, बहुदलीय व्यवस्था के साथ यह समस्या हमेशा रहेगी। चूंकि सत्ता पाना राजनीति का एकमात्र लक्ष्य होता जा रहा है, इसलिए भी पाला बदल का खतरा बढ़ता जा रहा है। हर चुनावी राज्य में विशेष रूप से छोटे दलों में ज्यादा बेचैनी होगी। कुछ दल ऐसे होंगे, जो किसी भी पक्ष या गठबंधन के साथ चले जाएंगे। गोवा में जो कोशिशें चल रही हैं, उनके अनुसार, केवल कांग्रेस ही नहीं, भाजपा भी फिर सरकार बनाने के लिए जोड़-गठबंधन के लिए जुट गई है। यदि गठबंधन से ही सरकार बननी है, तो किसी पार्टी के ज्यादा सीटें जीतने या बहुमत से पीछे रह जाने का कोई अर्थ नहीं है। नेताओं और राजनीतिक दलों को सचेत रहना चाहिए कि जरूरत पड़ ही जाए, तो सभ्यता-शालीनता के साथ गठबंधन बने और लोगों को अच्छी सरकारें मिलें। जब लोगों को अच्छी सेवाभावी सरकार मिल जाती है, तो राजनेताओं और राजनीति के दोष कम दिखने लगते हैं।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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