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आज विश्व ओजोन दिवस है
आज विश्व ओजोन दिवस है। अगर हम किसी आम जनमानस ओजोन के बारे में पूछे तो शायद ही वह उत्तर दे सके, परंतु जब हम से पृथ्वी के ऊपर एक ऐसे परत की बात कहे जो पूरे पृथ्वी को एक छाते के रूप में ढक कर रखता है और जो सूर्य की किरणों से आने वाले पराबैगनी किरणों को पृथ्वी पर आने से रोकता है और उन्हें वापस भेज देता है।
दरअसल, पृथ्वी पर इन किरणों को आने नहीं देता तो हर कोई इस तथ्य को समझ जाता है अगर इसी को दूसरे तरह से कहें कि जिस प्रकार हम अपने शरीर को अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने के लिए सनस्क्रीन लगाते हैं ठीक वैसे ही पृथ्वी को भी घातक अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाने का काम पृथ्वी के ऊपर ओजोन परत करती है।
विज्ञान को अगर हम आम जन की भाषा में समझाएं और बताएं तो लोग विज्ञान से अपना जुड़ाव महसूस करते हैं और विज्ञान से जुड़कर व्यक्ति प्रकृति से जुड़ते हैं। वर्तमान समय में हर पुरानी परंपरा, रीति नीति को विज्ञान की कसौटी पर परखा जा रहा है। जाहिर है इस कारण यह जानना जरूरी है कि हम अपने परंपराओं पारंपरिक चीजों संस्कृति सांस्कृतिक क्रियाकलापों के पीछे छिपे विज्ञान को भी समझें और दूसरे को बताएं ताकि भारतीय संस्कृति और सभ्यता पूरी दुनिया में श्रेष्ठ साबित हो सके
16 सितंबर को पूरा विश्व ओजोन दिवस के रूप में मनाता है-
जैसा कि हम जानते हैं कि हमारा वायुमंडल मुख्य रूप से गैस पर धूल कणों से बना है। वायुमंडल 5 स्तरों में विभाजित है जिन्हें क्रमशः परिवर्तन मंडल या क्षोभ मंडल, समताप मंडल अर्थात् स्ट्रेटोस्फीयर मध्यमंडल, आयन मंडल अर्थात आइनोस्फीयर और आयतन मंडल कहते हैं।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर घटती है यहां पर वायुमंडल की सबसे निचली परत को क्षोभमंडल कहते हैं, क्योंकि इस मंडल में जैव मंडलीय पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और मौसम संबंधी सारी घटनाएं जैसे कोहरा, बादल, ओस, पाला, ओला, तूफान आदि परिवर्तन इसी मंडल में होते हैं परंतु इस मंडल में ओजोन बहुत कम पाया जाता है। परिवर्तन मंडल के ऊपर दूसरी परत को समताप मंडल कहते हैं।
समताप मंडल की औसत ऊंचाई 50 किलोमीटर बताई जाती है। इस मंडल के निचले भाग मतलब 15 से 30 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच ओजोन गैस बहुत ज्यादा मात्रा में मिलती है। इसमें उनकी मात्रा ज्यादा मिलने के कारण इस मंडल को ओजोन मंडल भी कहते हैं ओजोन गैस जीवमंडल परिस्थितिकी तंत्र के जीवो के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह सूरज से निकलने वाले विकिरण पराबैगनी किरणों को सोख लेता है और उन्हें पृथ्वी तक पहुंचने नहीं देता जिससे पृथ्वी ज्यादा गर्म होने से बची रहती है
वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड मात्र 0.03% ही पाया जाता है। समताप मंडल में ओजोन के लेवल को प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड द्वारा विनियमित किया जाता है।
ओजोन परत की मोटाई मौसम के हिसाब से बदलती रहती है। पिछले लॉकडाउन के दौरान जब पूरे विश्व में आर्थिक औद्योगिक गतिविधियां बंद थी तब ओजोन छिद्र भरता हुआ नजर आया था जिसने वैज्ञानिकों में एक नया उत्साह भर दिया था जो यह बताने के लिए काफी था कि अगर धरती पर औद्योगिक गतिविधियां पूर्ण रूप से तो बंद नहीं की जा सकती है।
सोचने वाली बात यह है कि अगर उन्हें नियंत्रित ढंग से चलाया जाए तो हम प्रकृति का संरक्षण बेहतर ढंग से कर सकते हैं जो वर्तमान समय की आवश्यकता है। ओजोन परत को डॉबसन यूनिट में मापा जाता है। 1985 में सबसे पहले ब्रिटिश के एक दल ने टोटल ओजोन मैपिंग स्पेक्ट्रोमीटर की मदद से अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन छिद्र का पता लगाया था।
क्या है ओजोन छिद्र? कैसे करता है यह काम?
ओजोन छिद्र के लिए क्लोरोफ्लोरोकार्बन मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। क्लोरोफ्लोरोकार्बन, क्लोरीन,फ्लोरीन और कार्बन से निर्मित एक यौगिक है यह कोई प्राकृतिक यौगिक नहीं है बल्कि यह एक मानव निर्मित यौगिक है, मतलब हमने अपने समस्या का निर्माण खुद ही किया है। यह रसायन ग्रीन हाउस प्रभाव में योगदान देने के साथ ही ओजोन परत के की ओजोन गैस से अभिक्रिया करके ओजोन को ऑक्सीजन के रूप में विघटित कर देता है जिसके कारण ओजोन परत का क्षरण होता है और ओजोन धीरे-धीरे क्षरण होने के कारण ओजोन छिद्र के रूप में वह आवरण हमें हटता दिखाई देता है।
ओजोन परत का क्षरण पृथ्वी पर बहुत व्यापक प्रभाव डालता है। सूर्य से आने वाले हानिकारक पराबैंगनी विकिरण से त्वचा कैंसर होने का खतरा रहता है। अधिक समय तक सूर्य की पराबैंगनी किरणों के शरीर पर पड़ने से डीएनए में आंशिक परिवर्तन हो सकते हैं, जो त्वचा कैंसर का कारण बन सकते हैं। सूर्य की पराबैंगनी किरणों को सामान्यता वैज्ञानिक रूप में 3 वर्गों में बांटा गया है।
इन्हें युवी-ए, युवी-बी, युवी-सी किरण कहा जाता है।
यूवी-ए तथा यूवी-बी किरणों का हमारी स्किन पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
UV-C भी अत्यंत घातक होती है परंतु पृथ्वी की सतह तक नहीं पहुंच पाती।
यूवी-बी किरणों से पृथ्वी पर रहने वाले जीव धारियों पर कई तरह के दुष्प्रभाव दिखाई पड़ते हैं जिनमें जीन उत्परिवर्तन,पौधों की वृद्धि में रुकावट पत्तियों का खराब होना, त्वचा कैंसर, सन बर्न, मोतियाबिंद हैं। ओजोन परत सूर्य की उच्च आवृत्ति के पराबैगनी किरणों की 93 से 99% मात्रा को अवशोषित कर लेता है क्योंकि यह पराबैंगनी प्रकाश पृथ्वी पर जीवन के लिए हानिकारक है इस कारण ओजोन परत के अभाव में पृथ्वी पर सूर्य की पराबैंगनी किरणों से पृथ्वी के जैविक जीवन को अत्यधिक क्षति पहुंचती है।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन और अन्य गैसें
क्लोरोफ्लोरोकार्बन बहुत ही घातक गैस है यह एक स्थाई यौगिक है जो वायुमंडल में 80 से 100 साल तक बना रह सकता है। क्लोरोफ्लोरोकार्बन मुख्य रूप से रेफ्रिजरेटर और एसी में प्रयोग किया जाता है। यहां सोचने वाली क्या बात है कि हमें ओजोन क्षेत्र अंटार्कटिका जैसे ध्रुवी क्षेत्रों में ही क्यों दिखाई पड़ा, इसका कारण यह है कि ध्रुवीय भागों में ओजोन का निर्माण धीमी गति से होता है। इस कारण ओजोन के क्षरण का सबसे अधिक प्रभाव ध्रुव के ऊपर ही दिखाई पड़ता है।
क्लोरोफ्लोरोकार्बन का प्रयोग तो अभी से नहीं 1960 से ही रेफ्रिजरेटर,एयर कंडीशनर, स्प्रे केस, फोम के निर्माण में तथा अन्य कई इलेक्ट्रॉनिक अवयव की सफाई में उसका प्रयोग होता है।
टोरंटो विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक जीडब्ल्यू कैंट मूर के नेतृत्व में रिसर्चकर्ताओं ने वर्ष 2005 में तिब्बत पठार के ऊपर ओजोन हैलो अर्थात् ओजोन आभामंडल का पता लगाया था। इसमें तिब्बत के चारों ओर अतिरिक्त ओजोन की उपस्थिति का पता लग पठार के ऊपर केंद्रीय भाग में ओजोन की कम मात्रा एवं उसके परिधि के चारों और अतिरिक्त पूजोल का छल्ला पाया गया, परंतु इस अतिरिक्त ओजोन की सांद्रता अत्यधिक प्रदूषित शहरों में उपस्थित ओजोन सांद्रता के तरफ ही ओजोन का यह रूप मनुष्य में खांसी, सीने में दर्द उत्पन्न करने के साथ-साथ फेफड़ों को भी क्षति पहुंचा सकता है।
गौर करने वाली बात यह है कि गैस के रूप में ओजोन खुद विषैली गैस है। इस कारण पृथ्वी की सतह पर यह जैविक जीवन के लिए हानिकारक है।
इन कुछ बिंदुओं से हमें समझना चाहिए कि-
ओजोन का अधिकांश भाग करीब 90% समताप मंडल की निचली परत में पाया जाता है।
इस क्षेत्र में पाए जाने वाले ओजोन को ही हम सामान्यतः ओजोन लेयर कहते हैं या ओजोन परत कहते हैं।
समताप मंडल में ओजोन का निर्माण लगातार पराबैगनी किरणों लघु तरंग धैर्य के द्वारा होता है
क्षोभ मंडल में पाया जाने वाला ओजोन जो मात्र 10% होता है।
यह बुरा ओजोन कहलाता है क्योंकि यह वायु को प्रदूषित करता है, और इस स्मॉग के निर्माण में मदद करता है।
यह पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों के श्वसन के लिए अच्छा नहीं होता।
इस प्रकार हम देखते हैं कि समताप मंडल का ओजोन ही अच्छा कहलाता है क्योंकि यह सूर्य के हानिकारक पराबैंगनी किरणों का 95% को अवशोषित कर पृथ्वी पर जीवन की रक्षा करता है इसलिए पृथ्वी का इसे रक्षा कवच या पृथ्वी का छाता भी कहा जाता है।
1974 में केमिस्ट शेरवुड रॉलैंड तथा मारियो मोलिना ने पहली बार इस ओर इशारा किया था-
क्लोरोफ्लोरोकार्बन ही समताप मंडल के ओजोन के औसत सांद्रण में कमी ला रहे हैं फिर जोसेफ फरमन के नेतृत्व में ब्रिटिश अंटार्कटिक का सर्वेक्षण टीम ने 1985 में अंटार्कटिका के ऊपर वायुमंडलीय ओजोन की अल्पता का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किया था जब भी ओजोन परत या ओजोन संरक्षण की बात उठेगी तो मोंट्रियल प्रोटोकोल तथा विएना कन्वेंशन का जिक्र जरूर होगा।
मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को समझना होगा
इसका कारण है कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल एक अंतरराष्ट्रीय संधि है जिसने ओजोन क्षरण करने वाले पदार्थों के उत्पादन एवं प्रयोग को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने और ओजोन परत को संरक्षित करने के लिए निर्मित किया गया। अतः मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पृथ्वी की ओजोन परत के संरक्षण से संबंधित है, मूल मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल को 16 सितंबर 1987 में अपनाया गया जो वर्ष 1989 से प्रभावी रूप में कार्य करने लगा। इस समझौते में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने प्रमुख भूमिका निभाई मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल उत्सर्जन के आधार पर एक बाध्यकारी समझौता है तो वही वियना संधि एक प्रोटोकॉल है जिसका उद्देश्य ओजोन परत का क्षरण करने वाले पदार्थों मुख्य रूप से क्लोरोफ्लोरोकार्बन आदि को प्रयोग से हटाना है।
वियना कन्वेंशन को अक्सर फ्रेमवर्क कन्वेंशन के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह वैश्विक ओजोन परत की सुरक्षा के लिए किए गए प्रयासों के लिए एक फ्रेमवर्क का काम किया था 2009 में वियना कन्वेंशन सार्वभौमिक सत्यापन यूनिवर्सल रेक्टिफिकेशन को प्राप्त करने वाला पहला कन्वेंशन बन गया। हालांकि वियना कन्वेंशन के अंतर्गत क्लोरोफ्लोरोकार्बन के उपयोग में कमी लाने के लिए कोई बाध्यकारी नियम नहीं था इसलिए इस नियम को बाध्यकारी नियम को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल में जगह दी गई थी।
विएना कन्वेंशन बहुपक्षीय पर्यावरण समझौता है। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल 1 जनवरी 1989 से प्रभावी हुआ था और वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 16 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय ओजोन परत संरक्षण दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की थी क्योंकि वर्ष 1987 में 16 सितंबर को ही इस प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर हुए थे अतः 16 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय ओजोन दिवस मनाया जाता है।
भारत और ओजान परत संरक्षण
भारत में ओजोन परत के संरक्षण हेतु 1991 में वियना कन्वेंशन पर हस्ताक्षर तथा सत्यापन किया तथा मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल पर ओजोन पदार्थों के संबंध में 1992 में हस्ताक्षर किए थे। भारत 1993 से ओजोन विघटनकारी पदार्थों को धीरे-धीरे बाहर करने में लगा हुआ है। इस कार्य में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम यूएनडीपी ने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
भारत सीएफसी-11,12,13 हेलोन-1211, हैलोन-1301 एचसीएफसी-22 कार्बोनेटेड क्लोराइड (सीसीआई) मिथाइल क्लोरोफॉर्म मिथाइल ब्रोमाइड का उत्पादन करता है। ये ओजोन का क्षरण करने वाले पदार्थ हैं, परंतु यह विभिन्न कार्यों में मानव द्वारा प्रयोग किए जाते हैं। भारत सीएफसी Cl4 एवं हैलान का उत्पादन एवं खपत एक जनवरी 2010 से धीरे-धीरे समाप्त कर रहा है। यूएनडीपी भारत सरकार को हाइड्रो क्लोरोफ्लोरोकार्बंस को धीरे-धीरे 2030 तक बाहर करने में मदद कर रहा है जो भारत का एक भारत द्वारा मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
वर्ष 1993 से ही भारत एक विस्तृत इंडिया कंट्री प्रोग्राम विघटनकारी पदार्थों को धीरे-धीरे देश से बाहर करने के लिए यह प्रोग्राम लाया था कि राष्ट्रीय औद्योगिक विकास रणनीति के अनुसार बाहर किया जा सके। इस कारण पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने ओजोन सेल की स्थापना की सरकार ने गैर ओजोन विघटनकारी पदार्थों के प्रौद्योगिकी के लिए सामानों के निर्यात पर सीमा एवं केंद्रीय शुल्क से पूर्ण छूट दी है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि ओजोन परत न सिर्फ अपने देश के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है जिसका क्षरण होना मानव जाति के लिए एक बड़ा संकट बन सकता है। हमें उस प्रकार के टेक्नोलॉजी तथा रिसर्च को बढ़ावा देना होगा जो ओजोन परत का संरक्षण कर सके तथा सभी देशों को मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुसार औद्योगिक गतिविधियां को संचालित करना चाहिए।
"मानव जाति पर
संकट होगा
और भी गहरा
कमजोर होगा जब
ओजोन का पहरा"
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए जनता से रिश्ता उत्तरदायी नहीं है।
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