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सोर्स- Jagran
अनुराग सिंह ठाकुर : किसी भी भारतीय के लिए यह बड़े संतोष का विषय होगा कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ मनाने के महीने भर से भी कम समय में देश के सिर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का सेहरा बंधा है। यह संतुष्टि तब और अधिक बढ़ जाती है जब यह उपलब्धि उस ब्रिटेन को पछाड़कर मिली, जिसके लंबे औपनिवेशिक शासन के बाद ही हमें स्वतंत्रता मिली थी। वहीं पूरी दुनिया देख रही है कि इस समय ब्रिटेन अपनी गिरती अर्थव्यवस्था को संभालने और बढ़ती महंगाई का मुकाबला करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जबकि भारत में स्थिति अपेक्षाकृत संतोषजनक है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की लगातार आलोचना करने वाले अर्थशास्त्री भी इससे स्तब्ध हैं कि वे ब्रिटेन की और वास्तव में पश्चिम की अधिकांश चुनौतियों का पूर्वानुमान लगाने में विफल रहे। ब्लूमबर्ग, जिसने सबसे पहले भारत के ब्रिटेन को पछाड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की खबर दी, उसने इसकी व्याख्या औपनिवेशिक संदर्भ में करते हुए कहा कि-एक उपनिवेशवादी ताकत को उसके पूर्ववर्ती उपनिवेश ने ही पीछे छोड़ दिया। नि:संदेह इसमें औपनिवेशिक संदर्भ आपत्तिजनक हो सकता है, लेकिन ब्लूमबर्ग ने यह भी रेखांकित किया कि कैसे एक देश, जिसे 1947 में अपने ब्रिटिश शासकों द्वारा दयनीय दशा में छोड़ दिया गया था, अपनी खोई हुई आर्थिक समृद्धि और ताकत को पुनः प्राप्त करने के लिए फिर से उठ खड़ा हुआ।
भारत के आश्चर्यजनक आर्थिक उदय को समझने के लिए पिछले आठ वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कार्यशैली को समझना होगा। उन्होंने अर्थव्यवस्था को तेजी देने के लिए प्रमुख नीतिगत बदलाव किए हैं। जबकि पिछली सरकारें सोवियत शैली वाले राज्य नियंत्रण के आसरे भारतीय उद्यम की क्षमता को कम करके आंकती रहीं। वहीं मोदी ने अतीत को पीछे छोड़ते हुए एक ऐसे भविष्य की शुरुआत की है, जो भारतीयों की कई आकांक्षाओं को पूरा करेगा। उनकी क्षमता का विस्तार करेगा और इस महान राष्ट्र के लिए तीव्र विकास का मार्ग प्रशस्त करेगा। एक ऐसा भविष्य, जो यह सुनिश्चित करेगा कि आखिरी कतार में खड़ा अंतिम व्यक्ति भी अपेक्षाकृत समृद्ध और संपन्न भारत का लाभ उठाने में समर्थ हो।
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा प्रवर्तित निरंतर परिवर्तनों का प्रभाव स्पष्ट है, जिससे भारत की विकास गाथा विश्व में सबसे अधिक प्रासंगिक हो गई है। आंकड़े खुद ही इसकी कहानी कहते हैं। वित्त वर्ष 2022-23 की पहली तिमाही में भारत 13.5 प्रतिशत की वृद्धि दर से सकल घरेलू उत्पाद के मामले में पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है। वहीं क्रय-शक्ति समानता के हिसाब से भारत का सकल घरेलू उत्पाद उसे अमेरिका और चीन के बाद विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित करता है। अनुमान यही कहते हैं कि अन्य देशों का सकल घरेलू उत्पाद या तो स्थिर रहेगा या कम होगा, किंतु भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगातार बढ़ता रहेगा। इसका अर्थ है कि भारत अपनी बढ़त कायम रखेगा और मौजूदा कमियों को दूर करने के काम में तेजी लाएगा।
कोविड-19 महामारी ने लगातार दो वर्षों तक भारत की अर्थव्यवस्था को भी शेष विश्व की भांति गंभीर रूप से प्रभावित किया, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने प्रतिकूल परिस्थितियों वाली आपदा की इस अवधि को भी अवसर में बदल दिया। उनकी दूरदर्शिता ने भारत को दूसरे देशों की तरह अपने धन एवं संसाधनों को बर्बाद होने से बचाया। अन्य देशों से अलग उन्होंने एक सतर्क और विवेकपूर्ण विकल्प चुना। इसके तहत रोजगार पैदा करने वाली बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं पर खर्च बढ़ाया गया और उद्योग जगत में तेजी लाने के लिए प्रोत्साहन-आधारित योजनाओं को बढ़ावा दिया गया।
दो लाख करोड़ रुपये की उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना का असर दिखने लगा है। ये सभी उपाय भारत के प्रौद्योगिकी पूल का लाभ उठाने, स्टार्टअप एवं यूनिकार्न को प्रोत्साहित करने और वैश्विक स्तर पर निवेशकों एवं उद्योगों के साथ सीधे जुड़ने की सुविधा के अलावा पीएम मोदी द्वारा व्यापार की बेहद आसान प्रक्रिया, नीतिगत स्थिरता, संशोधित श्रम कानून और लोकप्रिय एवं विश्व की सबसे बड़ी डिजिटल भुगतान प्रणाली सुनिश्चित किए जाने की पृष्ठभूमि में हुए हैं। वहीं व्यापक टीकाकरण ने भी आर्थिक हितों को सुरक्षित किया।
1947 में भारत एक असहाय राष्ट्र था, लेकिन आज जब हम अपनी आजादी के 'अमृत काल' में प्रवेश कर रहे हैं तब हमारा देश काफी मजबूत और समृद्ध हो चुका है। आज भारत स्मार्टफोन डाटा का प्रमुख उपभोक्ता है। इंटरनेट उपयोगकर्ताओं के मामले में दूसरे स्थान पर है। यह दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है। ग्लोबल रिटेल इंडेक्स में दूसरे पायदान पर है। ऊर्जा का तीसरा बड़ा उपभोक्ता देश होना भारत की उभरती अर्थव्यवस्था को रेखांकित करता है। भारत में बड़ी स्टार्टअप क्रांति आकार ले रही है, जो केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं। जीएसटी कर संग्रह के लिए क्रांतिकारी और सुगम सिद्ध हुआ है। जिंसों का हमारा निर्यात 31 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े को पार कर गया है। एक ऐसा देश जो कभी पीएल 480 गेहूं के भरोसे निर्भर था, आज दुनिया को खाद्यान्न निर्यात करता है।
प्रधानमंत्री मोदी का ध्यान गरीबी को हटाने पर भी उतना ही केंद्रित है, क्योंकि उनसे बेहतर यह कोई नहीं जानता कि इस तबके की उन्नति के अभाव में समग्र राष्ट्रीय समृद्धि संभव नहीं। हाल में आइएमएफ का अध्ययन भी बताता है कि देश में किस तरह अत्यधिक गरीबी और उपभोग संबंधी असमानता में तेजी से कमी आई है। यह इस दिशा में प्रधानमंत्री के प्रयासों में सफलता की पुष्टि करता है।
पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में उभरने के दोहरे मील के पत्थर को पार करना नि:संदेह भारत और भारतीयों के लिए बड़ी उपलब्धि है। यहीं से हमने पीएम मोदी की भारत को पांच ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य प्राप्ति की अपनी यात्रा शुरू की है। अब यह विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि भारत अगले दो वर्षों में इस मील के पत्थर को भी पार कर जाएगा। ऐसा होता दिख रहा है।
Rani Sahu
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