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डॉक्टर की मरीज को दी जाने वाली सलाह को पहले दाल का पानी देना
डॉक्टर की मरीज को दी जाने वाली सलाह को पहले दाल का पानी देना, अब यही सलाह हर घर की आवश्यकता बन गई है। दाल की सब्जी की एवज दाल का पानी लेना ज्यादा बजटीय है। मेरी समस्या यह है कि मेरे शरीर में वैसे तो कई तरह की कमियां हैं, लेकिन प्रोटीन की कमी बहुतायत से है और डॉक्टर ने मुझे दाल का प्रयोग रोजाना एक टाइम तो आवश्यक रूप से बताया है। अभी परसों की बात है, पत्नी ने अपनी तबियत नासाज बताई तो मैंने कहा-'कोई बात नहीं, खाना बहार से मंगवा लेते है।' मैंने टिफिन सेंटर वाले को फोन करके कहा कि भइया एक प्लेट दाल व आठ चपातियां भिजवा देना। टिफिन सेंटर वाला बोला -'फ्राई दाल एक प्लेट सहतर की है।' मैंनेे कहा – पांच दिन पहले तो पचास की प्लेट थी, यकायक यह क्या हुआ? वह भी यही बोला -'दाल का भाव सुनोगे तो अंगुली दबा लोगे। हम क्या कर सकते हैं।' अभी प्याज के भावों से तो मैं इसलिए विचलित नहीं हुआ था, क्योंकि प्याज हम पति-पत्नी दोनों ही नहीं खाते। जिस प्याज ने प्याजखोरों को रुलाया था, अब वह बाजार में खुद रो रहा है। लेकिन दाल तो पेट्रोल की तरह भभका उठी है। पिचहतर से बढक़र यकायक सौ डिग्री सेल्सियस का पारा छू रही है। आदमी की दाल-रोटी मुश्किल हो गई है। यह कहिए आदमी दाल पतली हो गई है। सुबह पत्नी का भाई आ गया तो पत्नी ने हलुवा घोट दिया तथा चपाती-सब्जी बना दी। साले साहब बोले-'जीजू, साथ में एक प्लेट जीरे वाली दाल और बनवा लो तो खाने का मजा आ जाएगा। दस-पंद्रह दिनों से दाल नहीं खा पाया हूं।' मजबूरी में बघार देकर दाल बनवानी पड़ी।
कहने का मतलब यह है कि बिना दाल के पार पडऩे वाली है नहीं। वैसे भी सब्जियां थोड़ी सस्ती हुईं तो दाल उबल पड़ी। कहते हैं गरीब दाल रोटी खाता है। अब बताइए दाल-रोटी खाने वाला गरीब कहां से रहा? वह तो अमीरों की श्रेणी में आ गया, यदि वह दाल रोटी खा रहा है तो। सरकार से कहते हैं कि यह दलहन को क्या हुआ तो वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ते डॉलर के भावों को दालों के बाजार भाव से जोड़ देती है। विपक्ष की भूमिका तो हमारे यहां आग में घी डालने की रही है। उसका कहना है कि जब देश की आवश्यकता पूरी नहीं हो रही तो दाल निर्यात करने की क्या जरूरत है? सरकार कहती है कि निर्यात रोक देगी तो विदेशी मुद्रा भंडार कम हो जाएगा और महंगाई आसमान को छूने लगेगी। पहले पेचिश हो जाता है और पेचिश की दवा करते हैं तो पेट खराब हो जाता है और पेट ठीक करने की दवा लेते हैं तो पेचिश फिर हो जाता है। बेचारी सरकार करे तो क्या करे? कौन सी बीमारी का इलाज पहले करे। सरकारें तो आती-जाती रहती हैं जी, परंतु मैं बिना दाल के क्या करूं, जिसे दाल खाना आवश्यक रूप से बताया गया हो। सुना है प्रोटीन की कमी से, तपेदिक तक हो जाता है, तो फिर इस बाजार भाव में दाल खाई तो वैसे तपेदिक गृहस्थी की चिंताओं से हो जाने वाला है। क्या करूं या क्या नहीं करूं, मेरी तो समझ से परे है। हां बिना दाल के स्वास्थ्य का समर्थन मेरे शरीर को नहीं मिलने वाला है।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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