सम्पादकीय

जापान के साथ

Rani Sahu
20 March 2022 6:50 PM GMT
जापान के साथ
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भारत और जापान के बीच बढ़ते संबंधों की जितनी सराहना की जाए कम होगी। जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा की पहली भारत यात्रा अपेक्षा अनुरूप ही बहुत फलदायी रही है। दोनों देशों के बीच परस्पर विश्वास इनके बीच होने वाले व्यावसायिक, तकनीकी, सांस्कृतिक, रणनीतिक समझौतों में साफ झलकता है। कुछ ही देश हैं, जिनके प्रति भारतीयों को स्वाभाविक लगाव है, उनमें से एक जापान सबसे अलग है। दोनों देशों के बीच व्यापार की मात्रा उम्मीद और लक्ष्य के अनुरूप बढ़ती जा रही है, तो कोई आश्चर्य नहीं। सबसे बड़ी बात कि जापान आगामी पांच वर्षों में भारत में 3.20 लाख करोड़ रुपये का निवेश करेगा। चूंकि साल 2014 में तय लक्ष्य कमोबेश हासिल हो चुके हैं, इसलिए भी उम्मीदें बढ़ गई हैं। दोनों देशों के बीच मोटे तौर पर छह से ज्यादा समझौते हुए हैं। तकनीकी, व्यवसाय, पर्यावरण, साइबर सुरक्षा इत्यादि के स्तर पर भी भारत को फायदा होने वाला है। यह बहुत खुशी की बात है कि आज भारत में 1,455 जापानी कंपनियां हैं। ग्यारह जापानी औद्योगिक टाउनशिप (जेआईटी) की स्थापना की गई है। जापान विदेशी पूंजी निवेश के मामले में भारत का पांचवां सबसे बड़ा स्रोत है।

भारत-जापान के बीच कोरोना की वजह से पिछले दो वर्ष से उच्चस्तरीय वार्ता एक तरह से रुकी हुई थी और अब फुमियो किशिदा पहली बार भारत आए हैं। हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साल 2014 में जापान गए थे और उसके बाद से दोनों देशों के बीच संबंधों को और बल मिला है। जापान आज एक शांत और सांस्कृतिक रूप से सजग देश है। वह भारत की तरह ही शांति का समर्थक है, उसका भी किसी तरह का साम्राज्यवादी एजेंडा नहीं है। इसलिए दोनों देशों के बीच विशेष लगाव का विस्तार न केवल एशिया, बल्कि विश्व के लिए भी कारगर रहा है। मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल, डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर, अनेक मेट्रो परियोजनाएं जापान के सहयोग से बहुत सफलतापूर्वक चल रही हैं। बुनियादी ढांचे में जापान से मिला सहयोग साफ झलकता है। रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचों के विकास में भी जापान हमारा बहुत सहयोग कर रहा है।
कौशल विकास में भी जापान का बड़ा योगदान है और किसी भी अन्य देश की तुलना में प्रशिक्षण और अनुशासन सिखाने में जापान श्रेष्ठ है। जापान हमें न केवल उदारता से ऋण देता है, हमें विकास करना भी सिखाता है। ऐसे देश के साथ संबंध विस्तार की कोई भी कोशिश स्वागतयोग्य है। भारत को रणनीतिक रूप से भी जापान को संदेश देते रहना चाहिए। जापान विगत कुछ वर्षों से ब्रिक्स की तरफदारी कर रहा है। इसी साल के अंत में ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) शिखर सम्मेलन के लिए मंच तैयार हो रहा है। यह आयोजन चीन में होना है, जापान चाहता है कि भारत इस सम्मेलन या सहयोग योजना में शामिल हो। लेकिन अब भारत ने यह साफ कर दिया है कि जब तक सीमा विवाद नहीं सुलझ जाता, तब तक चीन के साथ संबंध सामान्य नहीं हो सकते। हम जानते हैं कि लद्दाख गतिरोध का समाधान नहीं हो पा रहा है। लगता है, चीन ने पिछले सप्ताह हॉट ्प्रिरंग से पीछे हटने की बात कहकर जापानी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा की पृष्ठभूमि तैयार की थी, लेकिन भारत को सावधान रहना चाहिए। पूरे सद्भाव, सहयोग के साथ जापान को साथ रखते हुए अपनी सुरक्षा भी सुनिश्चित करनी चाहिए।

क्रेडिट बाय हिन्दुस्तान

Rani Sahu

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