- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- क्या गांधी परिवार के...
x
कई राजनीतिक पंडित मानते हैं कि कांग्रेस (Congress) के हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर में सात दशक से सुधार नहीं हुआ
बिपुल पांडे
कई राजनीतिक पंडित मानते हैं कि कांग्रेस (Congress) के हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर में सात दशक से सुधार नहीं हुआ. यही वजह है कि पार्टी को हार के बाद हार मिल रही है. इस हार से उबरने के लिए कांग्रेस में परिवर्तन की जरूरत है. पार्टी को एक नई रणनीति और नए नेतृत्व की जरूरत है. लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है. भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के दबाव में कांग्रेस कई दशकों से परिवर्तित होती आ रही है. पार्टी की विचारधारा में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है. 70 साल से जालीदार टोपी पहनते रहे कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को मंदिर (Temple) भी जाना पड़ रहा है. गंगा जल का आचमन करना पड़ रहा है. जनेऊ पहनना पड़ रहा है. महादेव के दर्शन करने पड़ रहे हैं.
अगर नेहरूवियन नेतृत्व को आज के कांग्रेसी विचारधारा के बगल में रखकर देखा जाए तो दोनों में कहीं से भी समानता नजर नहीं आती. अब सवाल ये उठता है कि कांग्रेस का हार्डवेयर-सॉफ्टवेयर तो अपडेट हुआ है, लेकिन क्या पार्टी ने गलत सॉफ्टवेयर इंस्टॉल कर लिया है. क्या कांग्रेस में से गांधी परिवार निकल जाए तो पार्टी एक बार फिर खड़ी हो सकती है? अतीत में कांग्रेस पार्टी से गांधी परिवार कई बार हटा है, लेकिन क्या वजह रही कि गांधी परिवार मुक्त कांग्रेस की हर कोशिश फेल हो गई?
पांच राज्यों के चुनाव और जी-23 के चुभते सवाल
उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर. इन पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजे 10 मार्च को आए. इन चुनावों में करारी हार को लेकर CWC की मीटिंग में घंटों तक महामंथन चला. पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बैठक की अध्यक्षता की. बैठक में फैसला किया गया कि सोनिया गांधी के ही नेतृत्व में पार्टी आगे बढ़ेगी. बताया जाता है कि इस CWC की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि कुछ लोगों को लगता है कि गांधी परिवार की वजह से पार्टी कमजोर हो रही है. अगर आप लोगों को ऐसा लगता है तो हम किसी भी प्रकार का त्याग करने के लिए तैयार हैं. यानी अब सोनिया गांधी भी कांग्रेस की कमजोर कड़ी को स्वीकार करने लगी हैं, लेकिन इस स्वीकारोक्ति का क्या फायदा. गांधी परिवार और कांग्रेस के बीच एक ऐसा फेवीकोल जोड़ है, जो ना तो अतीत में टूटा है. ना आगे टूटने वाला है. कांग्रेस का नेतृत्व ज्यादा से ज्यादा राहुल गांधी को आगे लाने की मांग कर सकता है और राहुल गांधी के इनकार के बाद सोनिया गांधी को पद पर बने रहने की मांग स्वीकार कर लेने की मजबूरी रहेगी.
कांग्रेस को आगे ले जाने का G-23 में कितना दम है?
10 मार्च को पांच राज्यों के चुनाव के जो नतीजे आए, उनमें कांग्रेस की करारी हार हुई. प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो अकेले यूपी में ही 209 रैलियां की. लड़की हूं लड़ सकती हूं की नई थ्योरी दी. लखीमपुर खीरी का मामला उठाया. लेकिन उत्तर प्रदेश की 403 में से कांग्रेस के खाते में सिर्फ दो सीटें आईं. पंजाब में कांग्रेस की सरकार थी जो कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में चल रही थी. उनकी जगह पार्टी चरण जीत सिंह चन्नी को ले आई, कांग्रेस से जुड़ने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू भी खूब जोर लगाए. लेकिन 117 में से सिर्फ 18 सीटें आईं. उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी सारी सरकारें नाकारा रही हैं. हर पांच साल पर सरकारें बदलती रही हैं. उत्तराखंड में ट्रेंड के हिसाब से कांग्रेस अपनी पारी मानकर बैठी थी. लेकिन उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी सरकार रिपीट हो गई. गोवा, मणिपुर में भी कांग्रेस को हार ही मिली.
G-23 का हिस्सा हैं गुलाम नबी आजाद
पार्टी के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद कहते हैं- ये देखकर दिल बैठ जाता है. दरअसल गुलाम नबी आजाद भी उस G-23 के हिस्सा हैं, जो पार्टी के नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं. G-23 जितना ही जोर लगा रहे हैं, गांधी परिवार के भक्त उन्हें उतना ही अलग-थलग कर रहे हैं. हालत ये हो गई है कि CWC की मीटिंग में G-23 वाले नेताओं को कहना पड़ा कि उनका अपमान बंद किया जाए. वह पोलिटिकल टूरिस्ट नहीं, पार्टी में हैं और बने रहेंगे. इस मीटिंग में गुलाम नबी आजाद के अलावा आनंद शर्मा और मुकुल वासनिक भी थे. मुकुल वासनिक ने कांग्रेस की हाहाकारी तस्वीर दिखाई और कहा कि नागपुर से जम्मू तक कांग्रेस के सिर्फ 14 सांसद हैं, ऐसे में कांग्रेस को जरूरी कदम उठाने चाहिए, ताकि हम जनता का विश्वास जीत सकें.
अप्रैल में कांग्रेस करेगी चिंतन शिविर
पार्टी को मजबूत करने के लिए अप्रैल में पार्टी चिंतन शिविर करेगी. सवाल उठता है कि क्या इस चिंतन में भी कांग्रेस को गांधी परिवार मुक्त करने की मांग उठेगी? लेकिन इससे भी बड़ा सवाल ये है कि गांधी परिवार को हटाकर कांग्रेस में ये जगह कौन लेगा? क्या G-23 के नेता? 23 ऐसे नेता, जो खुद ही महात्वाकांक्षा पाले हुए हैं, इस लोकतंत्र में 23 प्रधानमंत्री या कांग्रेस के 23 अध्यक्ष वाला फॉर्मूला कहां फिट होता है?
कांग्रेस का गांधी परिवार मुक्त अतीत क्या है?
इंदिरा गांधी ने अपना वर्चस्व कायम रखने के लिए 1969 में कांग्रेस को दो हिस्सों में बांटा था. उसके बाद 1971 में आम चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी ने क्लीन स्वीप किया, जबकि आधिकारिक कांग्रेस पार्टी सिर्फ 16 सीटें जीत पाई थी. इसके बाद 1975 में इमरजेंसी लगी, गांधी परिवार मुक्त कांग्रेस की हिमायत करते रहे मोरारजी देसाई ने विरोधी खेमा चुना, जनता पार्टी के अगुवा बने, 1977 के चुनाव में जनता पार्टी की जीत के बाद वो प्रधानमंत्री भी बने. तब कांग्रेस के दिग्गजों को लगने लगा कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी पार्टी पर बोझ बन गए हैं. देवराज उर्स के नेतृत्व में कांग्रेस (यू) पार्टी बनी तो इंदिरा गांधी ने फिर कांग्रेस (आई) बनाई. विडंबना ये है कि तीन साल के अंदर जनता पार्टी बिखर गई, 1980 में दोबारा चुनाव हुए, इंदिरा गांधी प्रचंड बहुमत के साथ 353 सीटें ले आईं, कांग्रेस (यू) सिर्फ 13 सीटों पर मन मसोसकर रह गई.
1988 में वीपी सिंह ने तोड़ दी पार्टी
1988 में वीपी सिंह ने एक तरह से पार्टी तोड़ दी. राजीव गांधी और बोफोर्स का मुद्दा उठाया. पार्टी के तमाम दिग्गजों ने जनता दल बनाया, जो एक तरह से गांधी परिवार मुक्त कांग्रेस ही था. 1989 के चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह परास्त हुई. जनता दल ने माइनॉरिटी सरकार बनाई, लेकिन वो भी जनता पार्टी से अलग साबित नहीं हुई. एक साल के अंदर जनता दल में फूट पड़ गई. इसके बाद 1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी ने राजनीति में आने से मना कर दिया. तब एक बार फिर कांग्रेस को गांधी परिवार से मुक्त होने का मौका मिला. एक लाइटवेट नेता पीवी नरसिंहा राव को कमान सौंपी गई, कई हैवीवेट के लिए वो कतई खतरा नहीं थे. 1991 के चुनाव में कांग्रेस जीतने में विफल रही, लेकिन किसी तरह माइनॉरिटी गवर्नमेंट बना ली. लेकिन हर दिन, हर घंटे लगता रहा कि नरसिंहा राव की सरकार अब गिरी कि तब गिरी. बाद में नरसिंहा राव को हटाकर एक और लाइटवेट नेता सीताराम केसरी को कमान सौंपी गई. लेकिन 1998 चुनाव आते-आते ये कहा जाने लगा कि सोनिया गांधी ही पार्टी की तारणहार बन सकती हैं. सोनिया गांधी ने जिम्मेदारी ली और पार्टी 141 सीटें जीती. इसके बाद सोनिया गांधी 2004, 2009 में पार्टी को जीत की ओर ले गईं.
कांग्रेस ने अपने सॉफ्टवेयर में कितने बदलाव किए?
1989 से ही कई कांग्रेसी दिग्गज कहते आ रहे हैं कि उनके नेता ने ही बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाया. इसलिए राम मंदिर बनवाने में उनका भी श्रेय है. यहीं से नेहरूवियन कांग्रेस की विचारधारा में डिलीट का बटन दब गया, तब से अब तक पार्टी की विचारधारा में डिलीट-डीलीट का बटन ऑन है. हैरान करने वाला बदलाव तो तब आया, जब 2002 में गुजरात में कांग्रेस ने तब सीएम रहे नरेंद्र मोदी के खिलाफ शंकर सिंह वाघेला को मैदान में उतारा. गोधरा कांड पर छाती पीट रही कांग्रेस के लिए ये फैसला आश्चर्यजनक रहा. वाघेला को कोई कामयाबी नहीं मिली, लेकिन पुरानी वाली सेक्युलर की लकीर पार्टी छोड़ चुकी थी. यहां तक कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने गौहत्या में एक मुस्लिम आरोपी को गिरफ्तार भी करवाया. बावजूद इसके 2019 में भी हारे.
कांग्रेस के खिलाफ आप ठोक रही दम
अब कांग्रेस के खिलाफ AAP दम ठोक रही है, TMC भी ताल ठोक रही है. भारतीय राजनीति में कांग्रेस रिक्तता की ओर जा रही है और इस रिक्त स्थान को भरने के लिए तमाम पार्टियां सामने आ रही हैं. इसलिए कांग्रेस के पास समय बहुत कम है. पार्टी को गलत हार्डवेयर रिप्लेस करने होंगे, गलत सॉफ्टवेयर अन इंस्टॉल करना होगा. और इसे समझने के लिए बहुत ज्यादा दिमाग की जरूरत तो कतई नहीं है.
Rani Sahu
Next Story