- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- क्या चन्नी की सिद्धू...
x
पंजाब की राजनीति ना हुई मानो टेलीविज़न का सीरियल चल रहा हो जिसमे रोज कहानी में एक रोचक बदलाव होता है
अजय झा पंजाब की राजनीति ना हुई मानो टेलीविज़न का सीरियल चल रहा हो जिसमे रोज कहानी में एक रोचक बदलाव होता है ताकि दर्शक उस सीरियल से जुड़े रहे. नवनियुक्त एडवोकेट जनरल एपीएस देओल ने इस महीने की शुरुआत में इस्तीफा दे दिया और फिर नवजोत सिंह सिद्धू ने पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा वापस ले लिया. सिद्धू की जीत हुई और मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी को सिद्धू के सामने झुकना पड़ा. लगने लगा था कि अब सब कुछ सुलझ गया है और प्रदेश में पार्टी और सरकार साथ मिल कर चुनाव की तैयारी में लग जाएंगे. पर वह सीरियल ही क्या जिसमे बिना ड्रामा के कहानी का अंत हो जाए. अब पंजाब की कहानी में नया ट्विस्ट बृहस्पतिवार को देखने को मिला.
केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार ने मंगलवार को पंजाब चुनाव के मद्देनजर करतारपुर कॉरिडोर खोलने का निर्णय लिया. शुक्रवार को पाकिस्तान स्थित दरबार साहिब गुरूद्वारे में गुरुपर्व मानाया जाएगा. केंद्र सरकार ने पंजाब में मुख्यमंत्री चन्नी के नेतृत्व में एक 50 सदस्यों वाले जत्थे को करतारपुर कॉरिडोर के जरिए दरबार साहिब जाने कीअनुमति भी दे दी. पंजाब सरकार ने सिद्धू से उनका नाम उस जत्थे में शामिल करने के लिए जरूरी कागजात भी लिया. पर बुधवार को सिद्धू को बताया गया कि उस जत्थे में वह नहीं जाएंगे और वह शनिवार को दरबार साहिब में मत्था टेकने जा सकते हैं. यानि गुरु पर्व गुरु नानक देव के जन्मस्थान में चन्नी मनाएंगे और सिद्धू को भारत में ही रहना होगा.
करतारपुर की यात्रा में साथ नहीं ले गए सिद्धु को
बृहस्पतिवार को चन्नी जत्थे के साथ निकल गए और पीछे छोड़ गए सिद्धू को. अब अगर सिद्धू को गुस्सा आ जाए तो उनकी गलती नहीं है. वह प्रदेश के सत्ताधारी दल के अध्यक्ष हैं. तो क्या उन 50 लोगों के जत्थे में जिसमे मुख्यमंत्री, अन्य मंत्री, कांगेस के विधायक और कुछ सरकारी अधिकारी भी थे, सिद्धू को शामिल नहीं किया जा सकता था? सिद्धू के नजदीकी लोगों ने कहा कि केंद्र सरकार ने सिद्धू के नाम की स्वीकृति दे दी थी, पर राज्य सरकार की तरफ से उन्हें यह नहीं बताया गया की वह बृहस्पतिवार को क्यों नहीं जा सकते हैं और क्यों उन्हें शनिवार को जाने की अनुमति दी गयी है. सिद्धू को गुस्सा दिलाना आ बैल मुझे मार वाली बात हो गयी. चन्नी ने सिद्धू को चैलेंज किया है, और सिद्धू इस का जवाब अपने ही अंदाज़ में जरूर देंगे. चन्नी ने ऐसा क्यों किया यह बात समझी जा सकती है, पर सिद्धू की अनदेखी कर के उन्होंने रिस्क क्यों लिया उसका औचित्य समझ से परे है.
चन्नी और सिद्धू की जंग फिर होगी तेज
सिद्धू को चुनौती देने का रिस्क पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने भी किया था और उसका परिणाम भी उन्हें भुगतना पड़ा. कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धू को खुश करने के लिए अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने का रिस्क लिया. अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस पार्टी छोड़ कर अपनी खुद की पंजाब लोक कांग्रेस पार्टी का गठन किया है और वह सभी 117 सीटों पर उम्मीदवार उतारेंगे. अमरिंदर सिंह को चुनाव से कुछ ही महीने पहले मुख्यमत्री पद से हटाने का रिस्क तो कांग्रेस पार्टी ने ले लिया और अब पार्टी को इसका खमियाजा भी भुगतना पड़ सकता है. वह भी तब जबकि पंजाब में एक त्रिशंकु विधानसभा चुने जाने की बात सभी ओपिनियन पोल में सामने आ रही है. अमरिंदर सिंह कांग्रेस पार्टी का नुकसान करने में सक्षम हैं, भले ही वह फिर से मुख्यमंत्री ना बन पाए. और ऐसी स्थति में जबकि दूसरे दलों से कांग्रेस पार्टी को कड़ी टक्कर मिलती दिख रही है, चन्नी ने सिद्धू को चुनौती दे दी है जो उनके लिए हानिकारक साबित हो सकता है.
सिद्धू ने भी शायद ठान ली है कि उनका सारा किया हुआ काम बेकार साबित हो जाएगा अगर चन्नी ज्यादा सफल और शंक्तिशाली बन गए. सिद्धू ने अमरिंदर सिंह से पंगा चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कतई नहीं लिया था. वह खुद मुख्यमत्री बनना चाहते थे पर पार्टी आलाकमान ने उन्हें अध्यक्ष पद थमा दिया और चन्नी को मुख्यमंत्री बना दिया ताकि उनके जरिए पार्टी पंजाब में दलितों का वोट हासिल कर पाए. सिद्धू मान गए पर हमेशा के लिए नहीं.
चन्नी भी कच्छे खिलाड़ी नहीं
सिद्धू चन्नी को सिर्फ चुनाव परिणाम आने तक ही मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहते हैं. अगर कांग्रेस पार्टी चुनाव जीतने में सफल हो गई तो सिद्धू मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा पेश करने की योजना पर काम कर रहे हैं. अगर पार्टी चुनाव हार गयी तो उनके रास्ते से चन्नी रूपी कांटा खुद ही हट जाएगा. चन्नी भी वैसे कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं. उनकी भी मंशा है कि सिद्धू के पंख क़तर दिए जाएं ताकि वह भविष्य में उनके लिए चुनौती नहीं बन सकें.
दुर्भाग्यवश विपक्ष से टकराने की जगह कांगेस पार्टी के पंजाब के दो सबसे बड़े नेता आपस में टकरा रहे हैं और कांग्रेस आलाकमान अंधी, गूंगी और बहरी हो कर बैठी है. बस देखना यही होगा कि गुरु पर्व की आड़ में खेली जा रही राजनीति से कांग्रेस पार्टी की कितनी क्षति होगी.
Next Story