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उत्तर प्रदेश में परिवारवाद का आरोप झेल रही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने राज्यसभा के चुनाव में अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राज्यसभा नहीं भेजा
यूसुफ़ अंसारी
उत्तर प्रदेश में परिवारवाद का आरोप झेल रही समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने राज्यसभा के चुनाव में अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राज्यसभा नहीं भेजा. हालांकि उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में कई दिन से अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को राज्यसभा जाने की चर्चा थी. लेकिन अखिलेश यादव ने एक सीट राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) दूसरी सीट कांग्रेस छोड़ने वाले कपिल सिब्बल (Kapil Sibal) और तीसरी सीट अपने राज्यसभा में मौजूदा सदस्य जावेद अली को देकर इन अटकलों पर विराम लगा दिया. माना जा रहा है कि अखिलेश यादव ने परिवारवाद के आरोपों से छुटकारा पाने के लिए अपने परिवार के किसी भी सदस्य को राज्यसभा में नहीं भेजा. अहम सवाल यह है कि क्या अखिलेश यादव इस कवायद से परिवारवाद के आरोपों से मुक्त हो पाएंगे?
सियासी कैलकुलेशन करने पर उत्तर प्रदेश में राज्यसभा की 11 सीटों पर होने वाले चुनाव में बीजेपी को 8 और समाजवादी पार्टी को 3 सीटें मिलनी हैं. जनसत्ता दल लोकतांत्रिक और कांग्रेस के दो-दो और बीएसपी का एक विधायक है. जनसत्ता दल के दो विधायकों का समर्थन बीजेपी को मिल सकता है. जबकि कांग्रेस और बीएसपी का किसी भी दल से गठबंधन नहीं होने से दोनों दल चुनाव से बाहर रह सकते हैं. अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी कैसे की 3 सीटों में से एक अपने पास रखी है और तीन अपने समर्थकों या सहयोगियों को दे दी है. ऐसा करके उन्होंने बड़ा दिल दिखा दिखाया है. माना जा रहा है कि ऐसा करके अखिलेश ने राज्यसभा चुनावों की चुनौती को पार कर लिया है. क्योंकि इन 3 सीटों पर पार्टी के अंदर और सहयोगी दलों की तरफ से दावेदारी की वजह से उन पर काफी दबाव था.
समाजवादी पार्टी में परिवारवाद
उत्तर भारत में समाजवादी पार्टी परिवारवाद को लेकर सबसे ज्यादा बदनाम है. एक समय में इस पार्टी में परिवार से ही 16 चुने हुए सांसद, विधायक और जिला पंचायत के सदस्य और अध्यक्ष थे. उस वक्त इसे देश का सबसे बड़ा राजनीतिक परिवार पर कहा गया था. उसमें मुलायम सिंह यादव सपा के अध्यक्ष थे उनके बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और अखिलेश यादव की पत्नी कन्नौज से सांसद थीं. मुलायम सिंह के भाई रामगोपाल यादव राज्यसभा सदस्य, दूसरे भाई शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री और प्रदेश अध्यक्ष थे. इनके अलावा रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव और मुलायम सिंह के दूसरे भतीजे धर्मेंद्र यादव सांसद थे. बाद में मुलायम सिंह के भाई के पोते तेज प्रताप यादव भी सांसद बन गए थे. इनके अलावा परिवार के कई सदस्य इटावा मैनपुरी जिला पंचायत सदस्य थे. एक राष्ट्रीय पत्रिका ने देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार पर कवरस्टोरी छाप कर तहलका मचा दिया था. उसके बाद यह परिवार बीजेपी के सीधे निशाने पर आ गया.
बीजेपी ने बनाया परिवारवाद को बड़ा मुद्दा
बीजेपी ने 2017 के विधानसभा चुनाव में परिवारवाद को बड़ा मुद्दा बनाया था. उस समय पीएम मोदी के प्रभावशाली नेतृत्व में बीजेपी में प्रचंड जीत हासिल की थी. 2022 के विधानसभा चुनाव में भी परिवारवाद का मुद्दा खूब चला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगभग हर मंच से समाजवादी पार्टी को घोर परिवारवादी पार्टी कहकर संबोधित किया इससे व्यक्ति पर आए अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में अपने परिवार के सदस्यों को टिकट नहीं दिया यादव की शिवपाल यादव के बेटे का को टिकट नहीं दिया गया विधानसभा चुनाव के बाद विधान परिषद के चुनाव में भी अखिलेश यादव ने परिवार के लोगों को टिकट देने यह रवैया के चुनाव में दिखाया है. जाहिर है कि अखिलेश यादव खुद को परिवारवाद के आरोपों से मुक्त करना चाहते हैं. लेकिन यह उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती है.
राज्यसभा के लिए परिवार से थे कई कई दावेदार
बताया जा रहा है कि राज्यसभा की 3 सीटों के लिए परिवार से कई दावेदार थे सबसे बड़ी दावेदार थीं अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव. डिंपल यादव एक बार कन्नौज से सांसद रह चुकी हैं. राज्यसभा की तीनों सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा से पहले तक डिंपल यादव की उम्मीदवारी को लेकर राजनीति राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा थी. उनकी उम्मीदवारी लगभग तय मानी जा रही थी. इसी बीच मीडिया में इस पर जोरदार चर्चा हुई थी कि क्या अखिलेश यादव अपनी पत्नी डिंपल यादव को राज्यसभा भेजकर अपने ऊपर लगे रहे परिवारवाद के आरोपों को और पुख्ता करेंगे या फिर इन आरोपों से मुक्ति पाने के लिए डिंपल यादव के संसद जाने के अरमानों पर पानी भर देंगे? दूसरी बात सही साबित हुई. कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव ने दबाव में यह कदम उठाया है. यही बताया कि उन्होंने राज्यसभा में मौजूदा सदस्य जावेद अली की उम्मीदवारी को नहीं बदला. कहा जा रहा है कि अगर वह उन्हें बदलने का फैसला करते तो फिर परिवार से कई दावेदार सामने आ सकते थे.
जयंत चौधरी से वादा निभाया
अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी के सहयोगी दल रहे राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजने का फैसला बिल्कुल आखिरी वक्त पर किया. इससे पहले वह कपिल सिब्बल को चुनाव के लिए समर्थन देने का फैसला कर चुके थे. बताया जाता है कि जयंत को राज्यसभा भेजने का फैसला करने में अखिलेश यादव को कई पेच सुलझाने पड़े. हालांकि यह भी दावा किया जाता है कि चुनाव से पहले ही गठबंधन करते समय अखिलेश ने जयंत चौधरी से वादा किया था कि प्रदेश की उनकी सरकार बने या ना बने उन्हें राज्यसभा जरूर भेजेंगे. राजनीतिक हलकों में इस बात की भी चर्चा है कि अखिलेश जयंत को समाजवादी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा भेजना चाहते थे लेकिन इसके लिए जयंत तैयार नहीं थे. जयंत राष्ट्रीय लोक दल से 2009 में उत्तर प्रदेश की मांट विधानसभा लोकसभा से सांसद रह चुके हैं लिहाजा उनके लिए अपनी पार्टी का अध्यक्ष रहते दूसरी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा जाना किसी भी तरह अक़्लमंदी का फैसला नहीं होता. बाद में अखिलेश को ही अपने से छोड़कर जयंत को सपा के समर्थन से राज्यसभा भेजने का फैसला करना पड़ा.
कपिल सिब्बल का साथ
कपिल सिब्बल के रूप में अखिलेश यादव को राज्यसभा में एक प्रखर वक्ता और कानून और संविधान के मामलों का बेहतरीन जानकार मिल गया है कपिल सिब्बल ने कांग्रेस पार्टी तो थोड़ी लेकिन समाजवादी पार्टी की सदस्यता ग्रहण नहीं कि वह निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा चुनाव में खड़े हुए हैं. अखिलेश यादव ने उनका समर्थन किया है. पिछली बार भी कपिल सिब्बल समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के साझा उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा में गए थे. कपिल सिब्बल के सामने संसद में प्रवेश का कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था. कांग्रेस मौजूदा राजनीतिक हालात में कपिल सिब्बल को कहीं से भी राज्यसभा भेजने की स्थिति में नहीं है. हालांकि पहले वह दो बार कांग्रेस के टिकट पर राज्यसभा में रहे और दो बार कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव भी जीते. लेकिन लोकसभा के पिछले दो चुनाव वो हार गए थे. करीब दो साल से कांग्रेस आलाकमान के साथ कपिल सिब्बल के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे थे. उनका राज्यसभा का कार्यकाल भी हाल ही में खत्म हुआ था. कांग्रेस में अपना आगे कोई भविष्य ना देखते हुए उन्होंने कांग्रेस छोड़ने का फैसला किया. लेकिन किसी दूसरी पार्टी में शामिल नहीं हो कर उन्होंने कांग्रेस में वापसी का अपना रास्ता भी खुला रखा है.
कपिल सिब्बल केंद्र की राजनीति में समाजवादी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं. उन्हें राज्यसभा भेजकर अखिलेश यादव ने एक तीर से दो निशाने साधने की कोशिश की है. एक तो उन्हें केंद्र की राजनीति की समझ रखने वाला क़द्दावर नेता मिल गया है. दूसरा कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील हैं. इस नाते वह उनके और पार्टी दोनों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो सकते हैं. अखिलेश यादव ने यह साबित करने की भी कोशिश की है कि वह अपनी पार्टी का जनाधार बढ़ाना चाहते हैं. वहीं जयंत चौधरी को राज्यसभा भेजकर अखिलेश ने अपने गठबंधन को मजबूत रखने और इसे अगले चुनाव तक कायम रखने का संदेश दिया है. अखिलेश के इन फैसलों से उपर लगने वाले परिवारवाद के आरोप कुछ हल्के तो पड़ सकते हैं लेकिन पूरी तरह ख़त्म नहीं हो सकते. इन्हें पूरी तरह ख़त्म करने के लिए अखिलेश यादव को और मशक्कत करनी होगी.
सोर्स-tv9hindi.com
Rani Sahu
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