सम्पादकीय

ये हिंसा क्यों

Subhi
14 Jun 2022 5:15 AM GMT
ये हिंसा क्यों
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आज देश में जिस तरीके से बेतुकी बयानबाजी हो रही है, जो आपत्तिजनक बोल बोले जा रहे हैं, वह बेहद दुखद है। लग रहा है कि वाणी पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है।

Written by जनसत्ता: आज देश में जिस तरीके से बेतुकी बयानबाजी हो रही है, जो आपत्तिजनक बोल बोले जा रहे हैं, वह बेहद दुखद है। लग रहा है कि वाणी पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है। इस तरह व्यवहार के कारण देश और समाज में किस तरीके से अशांति और अराजकता का माहौल पैदा हो जाता है, यह सामने है। इसका नुकसान किसी एक क्षेत्र या एक समुदाय तक सीमित नहीं रहता, बल्कि इसका पूरा प्रभाव देश की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और धार्मिक-सांस्कृतिक व्यवस्था पर पड़ता है।

नेताओं के बिगड़ते बोल और भाषा का गिरता स्तर आज कबीर की कुछ पंक्तियां याद दिलाता है जिनकी प्रासंगिकता आज कहीं ज्यादा बढ़ गई है। कबीर सदियों पहले लिख गए हैं कि ऐसी 'वाणी बोलिए जा में मन का आपा खोए औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय'। लेकिन लगता है कि आज कोई कबीर की इन पंक्तियों को कोई आत्मसात करने के लिए तैयार नहीं है।

हमने देखा कि किस तरीके से पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में हिंसक घटनाएं हुर्इं जो यह बताती हैं कि सरकारों और पार्टियों ने भड़काऊ गलत बयान बाजी करने वालों पर कोई ठोस कार्रवाई पूर्व में नहीं की। उसी का नतीजा आज दिख रहा है। अब हमें समझना होगा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं न घटें, इसके लिए कुछ हमें सुधार करने चाहिए।

पहला कदम तो यह कि ऐसे बयानवीरों की पहचान कर उन पर सख्त कार्रवाई की जाए। दूसरा, मीडिया विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया को अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी और ऐसे लोगों को अपने कार्यक्रमों में बुलाने से परहेज करना होगा जो बिना सोचे-समझे भड़काऊ बयान देते हैं और देश को हिंसा की आग में झोंकते हैं। सभी समुदायों के धर्मगुरुओं को भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझनी होगी।

साथ ही, देश की राजनीतिक पार्टियों और उनके शीर्ष स्तर के नेताओं को लोगों को शांति बनाए रखने की अपील करनी चाहिए और अपने कार्यकर्ताओं का नैतिक मार्गदर्शन करते रहना चाहिए। इसके अलावा नागरिक भी अपनी जिम्मेदारी समझें और किसी के उकसावे में आकर हिंसा का रास्ता अपनाने से बचें। देश में संविधान अपनी बात रखने का पूरा अधिकार देता है। नागरिकों को याद रखना चाहिए कि संविधान में नागरिकों के कुछ कर्तव्य भी हैं जिनका नैतिकता के साथ पालन करना जरूरी है।

पिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश, बंगाल, झारखंड आदि राज्यों में पत्थरबाजी, उत्पात जैसी हिंसा की घटनाएं देखने को मिल रही हैं। जैसा कि कहा जा रहा है कि पैंगबर मोहम्मद के खिलाफ एक भाजपा प्रवक्ता की आपत्तिजनक टिप्पणी से एक समुदाय विशेष के लोग भड़के हुए हैं। पश्चिम बंगाल के नदिया जिले में प्रदर्शनकारियों ने एक लोकल ट्रेन पर हमला कर दिया, जिससे रेलवे की संपत्ति को भारी नुकसान पहुंचा।

ऐसी घटनाओं के कारण जम्मू-कश्मीर के कुछ जिलों के कुछ इलाकों में कर्फ्यू तक लगाना पड़ा। सवाल है कि ऐसी हिंसा को क्या जायज ठहराया जाना चाहिए? जब भाजपा ने आपत्तिजनक टिप्पणी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें पार्टी से निलंबित कर दिया तो फिर ऐसी घटनाओं को अंजाम देकर अशांति फैलाने का क्या मतलब है? भारत जैसे शांतिप्रिय देश में ऐसी अराजकता फैलाना लज्जा की बात है।


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