सम्पादकीय

विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्त को लेकर राज्यपालों की शक्तियां क्यों कम की जानी चाहिए

Rani Sahu
30 April 2022 9:47 AM GMT
विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्त को लेकर राज्यपालों की शक्तियां क्यों कम की जानी चाहिए
x
किसी भी लोकतंत्र (Democracy) का आधार लोगों के प्रति उसकी जवाबदेही होती है

वी एस पांडे :- किसी भी लोकतंत्र (Democracy) का आधार लोगों के प्रति उसकी जवाबदेही होती है. हमारे देश में दशकों तक शासन करने वाले ही उन कारणों को बेहतर जानते हैं कि इस आधार को समय-समय पर क्यों दरकिनार किया गया. दरअसल, ऊंचे पदों पर तैनात उन लोगों को कार्यकारी जिम्मेदारियां दी गई जो लोगों के प्रति जवाबदेह नहीं थे. यही कारण है कि तमिलनाडु विधानसभा (Tamil Nadu Legislative Assembly) में एक कानून पास किया गया जिसके तहत अब मुख्यमंत्री को राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति को नियुक्त करने का अधिकार प्राप्त होगा. इसमें राज्य के खजाने से चल रहे विश्वविद्यालय शामिल हैं. तमिलनाडु विधानसभा ने सोमवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित किया. इस प्रस्ताव के तहत एम के स्टालिन (MK Stalin) के नेतृत्व वाली सरकार को राज्य के विभिन्न विश्वविद्यालयों में कुलपति नियुक्त करने का अधिकार दिया गया था. इस प्रस्ताव का मुख्य उद्देश्य इस मामले में राज्यपाल के अधिकारों पर अंकुश लगाना था.

सरकारी पक्ष द्वारा दिए गए तर्क में इस बात पर जोर दिया गया कि लोगों द्वारा चुनी गई सरकार अगर राज्य द्वारा संचालित विश्वविद्यालय में कुलपति नियुक्त नहीं कर पाती है तो विश्वविद्यालय के समग्र प्रशासन में बहुत सारे मुद्दे आ खड़े होते हैं. सरकारी पक्ष ने यह भी कहा कि ये लोकतांत्रिक सिद्धांतों के भी खिलाफ है. तमिलनाडु विधानसभा में इस विधेयक पर बहस के दौरान यह बताया गया था कि 2007 में केंद्र ने एक पुंछी आयोग का गठन सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश के नेतृत्व में किया था. इस आयोग ने राज्यपाल द्वारा कुलपतियों की नियुक्ति के खिलाफ सिफारिश की थी. आयोग ने कहा था कि एक पद, "जो संविधान द्वारा प्रदत्त नहीं है," उसे इतने शक्ति दे देने से विवाद ही खड़े होंगे.
विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल अपने विवेक से कार्य करता है
आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि राज्यपाल को इस तरह की शक्ति दे देने से अनिवार्य रूप से राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच कार्यों और शक्तियों का टकराव होगा, जिससे एक विषम और अनुचित स्थिति पैदा होगी. पुंछी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में राज्य के विश्वविद्यालयों में राज्यपालों को कुलाधिपति नियुक्त करने की प्रथा पर भी सवाल उठाया था. आयोग ने कहा है, "हालांकि ऐसी कोई न्यायिक घोषणा नहीं हुई है जो राज्यपाल को इस तरह की शक्ति देने से उपजे अन्य पहलूओं से निपटने के बारे में बताती हो. ऐसे कई मामले हैं जो यह मानते हैं कि एक विश्वविद्यालय के कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल अपने विवेक से कार्य करता है न कि मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने बहस के दौरान सदन को अवगत कराया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृह राज्य गुजरात में भी कुलपतियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा नहीं बल्कि राज्य द्वारा की जाती है. सीएम ने आगे कहा कि तेलंगाना और कर्नाटक सहित अन्य राज्यों में भी ऐसा ही होता है.
निस्संदेह विश्वविद्यालयों में कुलपति की नियुक्ति के बाबत राज्यपाल की शक्तियों को समाप्त करने के तमिलनाडु सरकार द्वारा लिए गए निर्णय के पक्ष में मजबूत तर्क दिए गए हैं. न तो राज्यपाल और न ही भारत के राष्ट्रपति अपने आधिकारिक कर्तव्यों का निर्वहन करते समय किसी भी भूल-चूक के लिए अदालतों के प्रति जवाबदेह होते हैं क्योंकि उन पर किसी भी अदालत में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है. वे यहां तक कि जनता की अदालत के प्रति भी जवाबदेह नहीं हैं. इसलिए यदि वे किसी विश्वविद्यालय का नेतृत्व करने के लिए किसी गलत या अयोग्य व्यक्ति को चुनते हैं और यदि संबंधित कुलपति मनमाने ढंग से और भ्रष्ट तरीके से कार्य करने लग जाते हैं तो उनके कार्यों के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए? यह एक गंभीर सवाल है जिसका जवाब मांगा जा रहा है.
कुछ समय पहले ऐसी ही एक विचित्र स्थिति उत्पन्न हुई थी. एक केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाध्यक्ष के रूप में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ने तत्कालीन मानव संसाधन विकास मंत्री की सलाह को ठुकराते हुए उस विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में एक व्यक्ति का चयन किया था. उस वीसी पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने काफी अनियमितताएं कीं. साथ ही वीसी के रूप में नियुक्त होने की उनकी पात्रता को लेकर भी संदेह व्यक्त किए गए थे. यह मामला देश के उच्चतम न्यायालय तक गया जहां विजिटर के रूप में कार्य करने वाले राष्ट्रपति को पक्षकार बनाया गया था और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा उन्हें नोटिस भेजे गए थे.
प्रधानमंत्री ही संसद के माध्यम से लोगों के प्रति जवाबदेह होते हैं
बिना वक्त गंवाए तत्कालीन राष्ट्रपति सचिवालय ने जवाब दिया कि चूंकि राष्ट्रपति के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है इसलिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ही याचिका में उठाए गए मुद्दों पर अदालत को जवाब दे और मामले पर अपने विचार रखे. चूंकि सरकार नियुक्ति का विरोध कर रही थी और राष्ट्रपति ने बतौर विज़िटर संबंधित व्यक्ति को नियुक्त करने के लिए चुना था, इसलिए मंत्रालय का मानना था कि वे इस कारण से अवगत नहीं थे कि उन्हें विज़िटर द्वारा संबंधित विश्वविद्यालय के प्रमुख के लिए क्यों चुना गया था. बहरहाल, विवादास्पद मुद्दों को खुले में बिना घसीटे इस समस्या का समाधान तलाश लिया गया था. लेकिन एक स्पष्ट राय सामने आई थी कि इन मुद्दों को संविधान में निर्धारित ढांचे के अनुसार सख्ती से संबोधित करने की आवश्यकता है.
पुंछी आयोग की रिपोर्ट और मौजूदा संवैधानिक प्रावधानों के मद्देनज़र देश भर में एक समान नीति अपनाने की जरूरत है. इस नीति के तहत राज्य के विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर राज्यपालों और एक विजिटर के रूप में भारत के राष्ट्रपति की शक्ति को समाप्त करने की आवश्यकता है. इस कदम से हमारे देश में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में जवाबदेही तय होगी. "किसी के साथ सत्ता और किसी और की जिम्मेदारी" की मौजूदा व्यवस्था को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहिए. सीबीआई निदेशक, मुख्य सतर्कता आयुक्त और इसी तरह के अन्य पदों पर नियुक्ति का मामला भी ऐसा ही है जहां विपक्ष के नेता और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश चयन समिति का हिस्सा होते हैं.
सिर्फ प्रधानमंत्री ही संसद के माध्यम से लोगों के प्रति जवाबदेह होते हैं जबकि दूसरों को उनके फैसलों के लिए जवाबदेह नहीं बनाया जा सकता है. जब जवाबदेही केवल सरकार की होती है, तो सरकार के महत्वपूर्ण पदाधिकारियों की चयन प्रक्रिया के दौरान दूसरों को बैठने की अनुमति क्यों दी जानी चाहिए? कुछ परिस्थितियों और अदालती हस्तक्षेपों की वजह से समय-समय पर हमारी व्यवस्था में जो ये विसंगतियां आ गई हैं उन्हें तत्काल ठीक करने की आवश्यकता है. हमारी राजनीतिक प्रक्रिया में गड़बड़ी की वजह से अयोग्य शासन, व्यापक भ्रष्टाचार और गैर-जवाबदेह सत्ता संरचनाओं की समस्या पैदा हुई है. दरअसल ये जाति, धर्म और अवैध धन के जंजाल में फंसी व्यवस्था है. "जवाबदेही के साथ अधिकार" की एक सफल प्रणाली के साथ छेड़छाड़ करने से मदद मिलने के बजाय हमारे देश को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा है. इस द्वंद्व को जल्द ही समाप्त किया जाना चाहिए.
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story