- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- उत्साह आए ही क्यों
वह उत्साहित है, क्योंकि उसके उत्साह से देश को कोई खतरा महसूस नहीं होता। हालांकि नागरिक उत्साह से देश डरता है और इसीलिए हर व्यक्ति के लिए उत्साह की मात्रा तय है। चुनाव के वक्त उत्साह में छूट देकर अपनी सरकार या डबल इंजन सरकार बनाई जा सकती है, लेकिन जनता के उत्साह में सरकार चलाई नहीं जा सकती। हर आदर्श दरअसल उत्साह का दुष्परिणाम है, जबकि ठंडे दिमाग से सोचें तो कोई भी आदर्श स्थापित करना मुमकिन नहीं है। उत्साह में आदर्श बीवी या पति ढूंढने वाले अक्सर मात खाते हैं। उत्साह में ली गई डिग्री बताती है कि नौकरी के पापड़ बेलना कोई उत्साह नहीं। उत्साह में पूजा नहीं हो सकती अलबत्ता हनुमान चालीसा पढ़ा जा सकता है। यही उत्साह अजान दे सकता है, लेकिन खुदा को नहीं पा सकता। उत्साह अपने भीतर भी छोटा-बड़ा, अगड़ा-पिछड़ा, धर्म-जाति चुन लेता है। इसलिए हमने आजादी के उत्साह में भले ही आरक्षण चुन लिया, लेकिन यही उत्साह जाति और वर्ण व्यवस्था के कायम पहलुओं को नहीं हटा पाया। आजादी के उत्साह में कांग्रेस खुद को देश बनाते हुए कुछ कर पाती, तो आज इसी उत्साह पर भाजपा का कब्जा न होता।