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भारतीय रेल में यात्रा करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कुछ रियायतें बहाल की थीं
by Lagatar News
Dr. Pramod Pathak
भारतीय रेल में यात्रा करने के लिए तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कुछ रियायतें बहाल की थीं. जाहिर है उसके पीछे सरकार की कुछ सोच रही होगी, कुछ तर्क रहा होगा. ऐसा नहीं है कि उन्होंने रेलवे के लेखा जोखा पर मंथन नहीं किया होगा. लेकिन हर चीज बैलेंस शीट यानी तुलन पत्र के नजरिए से ना तो देखी जाती है और ना ही देखी जानी चाहिए. कुछ बातें लाभ हानि की परिधि से ऊपर होती हैं. नागरिकों को रेल यात्रा में दी जाने वाली सुविधाएं भी उसी श्रेणी में आती हैं. ना जाने क्यों वर्तमान केंद्र सरकार के विचारक एवं सलाहकार हर चीज को प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट की कसौटी पर ही रखते हैं.
वरिष्ठ नागरिकों का महत्व समझना जरूरी: आइंस्टाइन ने एक बार कहा था कि हर वह चीज जो गिनी जा सकती है वह गिनती के योग्य नहीं होतीऔर हर वह चीज जो गिनती के योग्य होती है उसे गिना नहीं जाना चाहिए. यह बात वरिष्ठ नागरिकों के संदर्भ में अक्षरशः लागू होती है. एक पुरानी बोध कथा से इस संदर्भ की व्याख्या की जा सकती है. उस जमाने में शादी ब्याह में वर वधू के पक्ष के बीच शास्त्रार्थ का चलन था. उसका अपना अलग महत्व था. ऐसी ही एक शादी में वधू पक्ष ने एक शर्त रखी कि वर पक्ष बारात में किसी भी वरिष्ठ व्यक्ति को नहीं लाएंगे. अब वर पक्ष पसोपेश में था. लेकिन उन्होंने एक युक्ति लगाई. एक बुजुर्ग को तैयार कर उसे एक टोकरी में छुपा कर ले आए. शास्त्रार्थ शुरू हुआ. इस दौरान एक प्रश्न उठा कि गांव में जो नदी है उसे दूध की नदी बनाने की तरकीब बताई जाए. किसी को उत्तर नहीं समझ आया, तब वह लोग बुजुर्ग की शरण में गए. बुजुर्ग ने कहा कि दूध की नदी तो बन जाएगी, लेकिन इसके लिए पहले नदी का सारा पानी खाली करना पड़ेगा. जब यह उत्तर वधू पक्ष को सुनाया गया तो उन्होंने तत्काल ही भांप लिया कि जरूर कोई वृद्ध व्यक्ति वर पक्ष में आया होगा. कथा का सार बड़ा स्पष्ट है.
शारीरिक रूप से क्षीण बुजुर्गों के अनुभव बेशकीमती : दरअसल बुजुर्ग शारीरिक रूप से भले ही क्षीण हों लेकिन उनके अनुभव बेशकीमती होते हैं और उसका सम्मान होना चाहिए. सरकारी उपक्रम कोई वाणिज्यिक संस्था नहीं है कि उनका एकमात्र उद्देश्य मुनाफा हो. फिर आजकल तो वाणिज्यिक उपक्रम में भी निगमित सामाजिक दायित्व की बात हो रही है. कैसी विडंबना है कि व्यापारिक औद्योगिक प्रतिष्ठानों पर निगमित सामाजिक दायित्व का दबाव देने वाली सरकार खुद ही अपने दायित्व को नफा नुकसान की कसौटी पर तौलने लगी है. यह तो हमारी भारतीय परंपरा और संस्कृति की कसौटी पर सही नहीं है और ना ही राज धर्म की मर्यादा के अनुरूप.
रामराज्य के समर्थक राज धर्म का करें पालन :आज भगवान राम की प्रशासनिक व्यवस्था की चर्चा जोर शोर से हो रही है. लेकिन स्वयं भगवान राम ने भरत को राजधर्म का मर्म समझाते हुए कहा था कि पिता समान वृद्ध पुरुषों का आदर राजा को करना चाहिए और इनका सम्मान आंतरिक अनुराग, मधुर वचन एवं धन दान द्वारा किया जाना चाहिए. वाल्मीकि रामायण के अयोध्या कांड में राम भरत संवाद ऐसे कई राज धर्म से जुड़े सवालों पर चर्चा की गई है.
क्या घोटालों से नहीं बढ़ता है आर्थिक बोझ :आज सरकारी आंकड़े रेलवे पर आर्थिक बोझ बढ़ने की दुहाई देकर वरिष्ठ नागरिक रियायत हटाने की आवश्यकता पर बल दे रहे हैं. उन्हीं आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017 से 2020 के बीच औसतन करीब प्रतिवर्ष 15 सौ करोड़ का बोझ रेलवे पर वरिष्ठ नागरिक रियायतों के चलते पड़ा था. यदि हम महज दो-तीन छोटे घोटालों की ही बात करें तो भारतीय अर्थव्यवस्था को कई हजार करोड़ की चोट पहुंच चुकी है. अगर नीरव मोदी और मेहुल चोकसे जैसे तमाम तत्वों का योग करें तो कुछ लाख करोड़ बैठेगा. यानी वरिष्ठ नागरिक रियायतों से अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा कुछ नुकसान नहीं होने वाला है. सरकार की मंशा साफ होनी चाहिए
वरिष्ठ नागरिकों का योगदान राष्ट्र हित में कम नहीं: दुनिया के कई देशों में वरिष्ठ नागरिक सुविधाएं दी जाती हैं. जाहिर है कुछ आर्थिक बोझ तो पड़ता ही होगा. तय यह करना होता है कि प्राथमिकताएं क्या है. हम कैसे समाज की वकालत कर रहे हैं जो उन वरिष्ठ नागरिकों के परित्याग की बात करता है, जिनका योगदान राष्ट्र हित में कम नहीं आंका जा सकता. क्या जब उन्हें सबसे ज्यादा आवश्यकता है, उस वक्त हम उनका परित्याग कर दें. फिलीपींस जैसे छोटे देश में भी इस तरह की सुविधाएं बहाल हैं. हम तो 5 खरब डालर की अर्थव्यवस्था बनने की बात कर रहे हैं. क्या इन हजार पंद्रह सौ करोड़ से वह प्रभावित हो जाएगी.
दुविधा में रेल मंत्रालय : रेल मंत्रालय अभी दुविधा में है. कोरोना की आड़ में यह सुविधाएं पूरी तरह से हटा ली गई थी. बहाल करने में मुनाफा का मुद्दा आ जा रहा है. लेकिन बहाल न करने में भी जोखिम है. करीब-करीब हर परिवार में 60 साल से ऊपर के एक व्यक्ति तो जरूर मिलेंगे. तो सरकार को लोकप्रियता पर बट्टा लगने का खतरा भी दिख रहा है.
बीच का रास्ता ढूंढ रही है सरकार : यानी रहिमन दुविधा कठिन है, दोनों टेढ़े काम, सीधे से जग ना मिले, उल्टे मिले ना राम. तो कुछ बीच का रास्ता सरकार ढूंढ रही है. जैसे वरिष्ठ नागरिक की आयु को 70 वर्ष कर दिया जाए और उच्च श्रेणियों में यह रियायत न दी जाए. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जहां औसतन जीवन प्रत्याशा 69 वर्ष है, वहां वरिष्ठता का पैमाना 70 वर्ष करना कितना तर्कसंगत है. वही बात है जैसे 80 वर्ष की आयु के बाद आयकर रिटर्न नहीं भरना. इसी तरह स्वयं रेल मंत्रालय मानता है कि यदि उच्च श्रेणी से रियायत हटा ली जाए और अन्य श्रेणियों में बहाल की जाए तो 70 फ़ीसदी लोग दायरे में आ जाएंगे. तो आखिर 30 फ़ीसदी लोगों को वंचित कर हम कितना बचा लेंगे.
विमान में रियायत तो रेल में क्यों नहीं : आज कल तो विमानों में भी वरिष्ठ नागरिक रियायतें दी जा रही हैं. यह नीयत का दोष है. पुरानी मान्यता है कि बरकत तो नीयत से ही होती है. रामायण की सीख है कि जहां सुमति तहां संपत्ति नाना. सुविधा देना भी नहीं है और उसका भ्रम भी बनाए रखना है. यह तो अपने देश के लोगों के साथ छल है.
क्या सरकार कोई ट्रेडिंग कारपोरेशन है: सबसे जरूरी है समझना कि क्या सरकार कोई ट्रेडिंग कारपोरेशन है. यदि नहीं तो फिर हर फैसले में वाणिज्यिक पक्ष की दलील क्यों दी जा रही है. इतना ही नहीं कई जगह तो अनावश्यक मद में पैसे डाले भी जा रहे हैं. यह तो विवेक से तय करना चाहिए कि कहां मुनाफा देखा जाए कहां नहीं. सरकार के लोग खुद ही बोलते हैं कि सरकार का काम व्यापार करना नहीं है. तो फिर व्यापारी वाली मानसिकता क्यों? प्रशासन का नजरिया व्यापारी के नजरिए से अलग होना चाहिए. राजधर्म का पालन ही राजा का कर्तव्य होता है और राज धर्म की बड़ी ही सरल किंतु विस्तृत व्याख्या रामायण के अयोध्या कांड में राम भरत संवाद में की गई है. लेकिन उसे पढ़ना और समझना होगा. राम की सार्वभौमिकता शाश्वत है. बस उनकी नीतियां और उनके विचार अपनाने होंगे. लोकहित का पैमाना अलग होता है और व्यापार हित का पैमाना अलग. सरकार का तो व्यापार ही लोकहित है.
Rani Sahu
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