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किसी नेता के खिलाफ, वह भी चुनाव के दो महीने पहले प्राथमिकी दर्ज होना राजनीति से प्रेरित कदम ही माना जाता है
अजय झा किसी नेता के खिलाफ, वह भी चुनाव के दो महीने पहले प्राथमिकी दर्ज होना राजनीति से प्रेरित कदम ही माना जाता है. पंजाब पुलिस द्वारा पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया (Bikram Singh Majithia) के खिलाफ ड्रग्स के मामले (Drug Case) में कल प्राथमिकी दर्ज करने से मजीठिया सिर्फ आरोपी बने हैं, मुजरिम नहीं. इससे मजीठिया को चुनाव लड़ने से भी नही रोका जा सकता है. एक तरीके से यह पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) की जीत मानी जा सकती है, क्योंकि सिद्धू और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह (Captain Amarinder Singh) के बीच खाई बढ़ने का यह एक बड़ा कारण था.
सिद्धू का आरोप था कि अमरिंदर सिंह की बादल परिवार से मिलीभगत है और वह जानबूझकर बादल परिवार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं. लड़ाई में जीत सिद्धू की हुई और अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा. अमरिंदर सिंह की जगह चरणजीत सिंह चन्नी के मुख्यमंत्री बनने के ठीक तीन महीने बाद मजीठिया के खिलाफ सात साल पुराने आरोप की फाइल खुली है. इसके लिए सिद्धू को चन्नी से भी लड़ाई लड़नी पड़ी और सिद्धू के दबाव में ही पंजाब पुलिस के डायरेक्टर जनरल और एडवोकेट जनरल को हटाना पड़ा, तब जा कर मजीठिया के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की शुरुआत हुई है. सम्भव है कि अगले एक-दो दिनों में मजीठिया से पूछताछ के लिए उन्हें हिरासत में भी लिया जाएगा जिससे पंजाब की राजनीति में भूचाल आ सकता है
क्या अकाली दल को एक लाइफलाइन मिल जाएगी?
मजीठिया के खिलाफ ड्रग्स के तस्करों को संरक्षण देने का आरोप जब भी लगा था जबकि वह अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी की सरकार में मंत्री थे. पर चूंकि मजीठिया के जीजा सुखबीर सिंह बादल उपमुख्यमंत्री थे और मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल थे, मामले को रफा दफा कर दिया गया था. इस केस की फाइल तब ही खुलनी चाहिए थी जब कि 2017 कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी. अब जिस तरह से अमरिंदर सिंह खुल कर सामने आए हैं और कहा है कि यह केस राजनीति से प्रेरित है और उन्हें इसकी पूरी जानकारी है, कि यह केस गलत है, सिद्धू का आरोप कि अमरिंदर सिंह और बादल परिवार की मिलीभगत है, साबित करता है.
हो सकता है कि अमरिंदर सिंह सही कह रहे हों कि मजीठिया पर लगा आरोप गलत है, पर मजीठिया के लिए अमरिंदर सिंह का सर्टिफिकेट काफी नहीं है, अब उन्हें अदालत से क्लीनचिट लेना पड़ेगा. यह सम्भव नहीं है कि जांच की कार्रवाई और अदालत में मुकदमा अगले दो महीनों में ख़त्म हो जाए. संभव है कि या तो इसके बाद शिरोमणि अकाली दल जिसके सुखबीर सिंह बादल अध्यक्ष हैं और मजीठिया महासचिव, पूरी तरफ से बर्बाद हो जाएगी या फिर अकाली दल को एक लाइफलाइन मिल जाएगी. जो भी हो, पंजाब सरकार का यह एक सही फैसला है जो गलत समय में लिया गया है, जिसका असर फरवरी के महीने में होने वाले विधानसभा चुनाव पर साफ़ दिखेगा.
2007 से 2017 के बीच पंजाब भारत का ड्रग कैपिटल बन गया था
संभव है कि मजीठिया पर लगा आरोप गलत हो, पर इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अकाली दल के शासनकाल में पंजाब में भ्रष्टाचार का बोलबाला था और हमेशा शक की सुई बादल परिवार के आसपास ही जा कर रुकती थी. जिसमें मजीठिया का नाम सबसे ऊपर होता था. 2007 से 2017 के बीच जबकि पंजाब में बादल सरकार थी, पंजाब भारत का ड्रग कैपिटल बन गया था. पंजाब की युवा पीढ़ी को नशे की लत लग गई थी. आरोप था कि सीमा पार से ड्रग्स की तस्करी और वितरण सरकार के बड़े नेताओं के संरक्षण में चल रहा था. बादल परिवार भ्रष्टाचार के दूसरे के पूरक बन गए थे, जिसका खामियाजा अकाली दल को 2017 के चुनाव में हुआ, जबकि अकाली दल 68 सीटों से लुढ़क कर 18 सीटों पर आ गई.
बादल परिवार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे
भ्रष्टाचार भी कई तरीके का होता है. एक होता है कि किसी भी टेंडर को रिश्वत ले कर ही पास किया जाता है. यह सबसे सरल और दिखने वाला भ्रष्टाचार होता है जिसमें अमूमन 10 प्रतिशत की कम से कम राशी दी जाती है. याद हो कि बेनजीर भुट्टो के शासनकाल में पाकिस्तान में भुट्टो के पति आसिफ अली ज़रदारी को Mr 10 Percemt के नाम से जाना जाता था. भ्रष्टाचार का दूसरा तरीका होता है सरकार में बैठे लोग इस तरह का निर्णय लें जिससे उनके स्वयं के व्यापर को लाभ मिले. अकाली दल सरकार के समय पंजाब में केबल टीवी का मामला भी लगातार उछलता रहता था. बादल परिवार भी इस व्यवसाय में था और सरकारी तंत्र द्वारा दूसरी कंपनियों को परेशान किए जाने का आरोप लगता था, ताकि आमजन बादल की कंपनी का कनेक्शन लें.
ऐसा ही कुछ हाल पंजाब से दिल्ली रूट पर बस चलाने का भी था. पंजाब से हजारों लोग प्रतिदिन दिल्ली हवाईअड्डा आते और जाते हैं. इस रूट पर सरकारी बसों की संख्या कम कर दी गयी, पुरानी बसों को इस रूट पर लगाया गया और उनकी टाइमिंग ऐसी रखी गयी जो हवाई यात्रिकों को सूट नहीं करता था. उसकी जगह बादल परिवार की ट्रांसपोर्ट कम्पनी की आधुनिक बसें चलने लगीं और दूसरे ट्रांसपोर्ट कंपनियों को इस रूट से दूर रखा गया. सरकार को प्रतिदिन लाखों रुपयों का घाटा होता रहा और बादल परिवार की कंपनी को भारी मुनाफा. बादल परिवार हरेक व्यापर पर मोनोपोली स्थापित करने का आरोप लगा.
गैरकानूनी धंधों में मजीठिया का नाम सबसे ऊपर
पंजाब भारत का एकमात्र ऐसा राज्य था जहां रेत की कीमत सीमेंट से अधिक होती थी. रेत का कानूनी और गैरकानूनी खुदाई और व्यापर वही कर सकते थे जिसके सिर पर बादल परिवार का हाथ हो. यही हाल कमोबेश शराब के व्यापर का भी था. पंजाबी समुदाय जम कर परिश्रम करने और शाम में थकान मिटने के लिए शराब का सेवन करने के लिए विख्यात हैं. भारत में सबसे महंगी शराब पंजाब में ही बिकती थी और वह भी न्यूनतम मूल्य से अधिक कीमत पर. शराब व्यापारी कहते थे उन्हें ऐसा इसलिए करना पड़ता है क्योंकि उन्हें सरकार में बड़े लोगों को प्रतिमाह एक मोटी रकम देनी होती थी. अब जब शराब महंगी हो तो लोग देसी शराब पिएंगे खासकर गरीब और मजदूर तबका. पर देसी शराब भी इतनी महंगी की उसे खरीदना भी संभव ना हो. तो फिर अवैध शराब बनता था जिसको पी कर अक्सर लोग मर भी जाते थे. और अवैध शराब बनाने और बेचने के व्यापर को संरक्षण देने का आरोप भी सरकार और सरकारी मंत्रियों पर लगता था. ड्रग्स हो, रेत हो या शराब, सभी के गैरकानूनी धंधे में मजीठिया का नाम सबसे ऊपर रहता था.
बादल परिवार यूं ही नहीं भारत के सबसे धनाढ्य राजनीतिक परिवारों में गिना जाता है. अधिकारिक तौर पर उनकी कुल संपत्ति सैकड़ों करोड़ में है पर असलियत में यह हजारों करोड़ में है. 2003 में पंजाब विजिलेंस कमीशन के एक अनुमान के अनुसार बादल परिवार की कुल संपत्ति 4326 करोड़ थी. उसके बाद 2007 से 10 वर्षों तक लगातार बादल परिवार सत्ता में रहा और यह वह समय था जब पंजाब में भ्रष्टाचार का नंगा तांडव दिख रहा था. अब बादल परिवार की कुल संपत्ति कितनी होगी इसका अनुमान लगाना आसान नहीं है.
मजीठिया के खिलाफ कानूनी कार्रवाई चुनाव में मुद्दा बनेगा
बादल सरकार के दौरान पंजाब कंगाली के कगार पर पहुंच गया था और बादल परिवार की संपत्ति दिन दोगुनी और रात चौगुनी बढ़ती जा रही थी. यह आलम पंजाब की जनता ने भी देखा जो भ्रष्टाचार से त्रस्त थी, जिसका अंजाम हुआ कि ना सिर्फ अकाली दल को सत्ता से हाथ धोना पड़ा बल्कि वह आम आदमी पार्टी से भी कम सीट जीत पायी.
चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में अनुसार अकाली दल के लिए इस बार 18 सीट जीतना ही काफी चुनौतीपूर्ण साबित होने वाला है. और शायद यही कारण है कि जब अकाली दल ने कृषि कानून के विरोध में बीजेपी के साथ अपना वर्षों पुराना गठबंधन तोड़ दिया तो बीजेपी विचलित नहीं हुई. अब चूंकि कृषि कानून वापस ले लिया गया है, बीजेपी ने पलट कर भी अकाली दल की तरफ नहीं देखा. बादल परिवार ने जिस तरह से कांग्रेस के बाद भारत की सबसे पुरानी पार्टी पर कब्ज़ा किया और फिर उनकी लोकप्रियता का नाजायज उपयोग धन बटोरने के लिए किया, उसका ही नतीजा है कि पंजाब की राजनीति में अकाली दल की साख कमजोर पड़ती जा रही है. सिद्धू की जिद के आगे सरकार को झुकना पड़ा और मजीठिया के खिलाफ कानूनी कार्रवाई चुनाव के ठीक पहले करना किसी जुए से कम नहीं है. यह चुनाव में एक बड़ा मुद्दा तो बनेगा ही, बस देखना यह है कि क्या इससे अकाली दल बर्बाद हो जाएगी या फिर उनकी वापसी होगी.
Rani Sahu
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