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भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) इस वक्त जापान की राजधानी टोक्यो में हैं
प्रवीण कुमार |
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) इस वक्त जापान की राजधानी टोक्यो में हैं जहां वह 24 मई को क्वॉड देशों भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया (QUAD summit) के सम्मेलन में भाग लेंगे. चूंकि यह सम्मेलन रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia- Ukraine War) और लद्दाख में पैंगोंग झील पर पुल निर्माण कर भारत को उकसाने की चीनी हरकतों के बीच हो रही है, लिहाजा भारत की भूमिका क्वॉड सम्मेलन में किस रूप में सामने आती है इसपर सबकी निगाहें टिकी हैं. एक तरफ चीन और दूसरी तरफ रूस इस सम्मेलन में चर्चा के केंद्र बिन्दु होंगे और इन दोनों ही देशों से भारत के हित जुड़े हैं. ऐसे में चीन और रूस दोनों के ही खिलाफ अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच भारत अपनी जगह किस तरीके से बनाता है, यह देखना बेहद अहम होगा.
भारत के लिए क्यों अहम है यह QUAD समिट?
क्वॉड देशों की यह बैठक इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि रूस-यूक्रेन की जंग अब भी जारी है. दूसरी तरफ चीन ने समिट से ठीक पहले लद्दाख में पैंगोंग झील पर पुल बनाना शुरू कर दिया है. और इस सबके बीच चीन ने यह भविष्यवाणी भी कर दी है कि चूंकि इस समिट का सार विभाजन पैदा करना, टकराव को भड़काना और शांति को कमजोर करना है. कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह किस तरह से बना है या किस रूप में दिखाई देता है, दरअसल यह विफल होने के लिए ही गठित हुआ है. इन तमाम परिस्थितियों के बीच भारत को इस सम्मेलन में अपने वजूद को बनाए रखना चुनौती भी है और ऐतिहासिक तौर पर महत्वपूर्ण भी है क्योंकि चीन और रूस से भारत के हित सीधे तौर पर जुड़े हैं. हाल के वर्षों में चीन ने न केवल भारत पर दबाव बनाने के लिए हिंद महासागर में अपनी गतिविधियां बढ़ाई हैं, बल्कि पूरे साउथ चाइना सी पर अपना दावा जताया है. चीन के इन कदमों को सुपर पावर बनने की कोशिशों के तौर पर देखा जा रहा है. ऐसे में अमेरिका और भारत दोनों एक दूसरे के पूरक के तौर पर साथ मिलकर क्वॉड के विस्तार पर काम कर रहे हैं, ताकि चीन के इन मंसूबों पर पानी फेरा जा सके. भारत के लिए यह एक बढ़िया मौका होगा जब रूस के मुद्दे पर चर्चा होगी जिसमें वह अमेरिका, रूस और ऑस्ट्रेलिया की तिकड़ी से मोलभाव कर पाए. मालूम हो कि रूस-यूक्रेन जंग में अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया तीनों देश यूक्रेन के साथ खड़े हैं जबकि भारत अप्रत्यक्ष तौर पर रूस के साथ खड़ा है.
चीन QUAD को एशियाई नाटो तक कह चुका है
चीन शुरू से ही क्वॉड का विरोध करता रहा है, क्योंकि इसे वह अपने वैश्विक उभार को रोकने वाली रणनीति के तौर पर देखता है. विरोध का स्तर इस हद तक पहुंच चुका है कि चीन क्वॉड को एशियाई नाटो तक कह चुका है और इस बात की भविष्यवाणी करने से नहीं चूका कि इसका खत्म होना तय है. विशेषज्ञों की मानें तो चीन की सबसे बड़ी चिंता क्वॉड में भारत के जुड़े होने से है. चीन को इस बात का डर लगातार सता रहा है कि अगर भारत अन्य महाशक्तियों के साथ गठबंधन बनाता है तो वह भविष्य में उसके लिए बड़ी समस्या खड़ी कर सकता है. कई चीनी विश्लेषक, भारत की सैन्य ताकत को देखते हुए उसकी अमेरिका समेत अन्य क्वॉड देशों के साथ बढ़ती साझेदारी को बड़े संभावित खतरे के रूप में देखते हैं. चीन अंदरखाने इस बात को भी मानने लगा है कि अगर भारत इसी तरह से आगे बढ़ता रहा तो एक दिन वह सुपरपावर बन जाएगा. कई चीनी विश्लेषकों का मानना है कि भारत चीन के साथ सीमा पर चल रहे तनाव का इस्तेमाल अमेरिका के साथ सैन्य सहयोग बढ़ाने में कर रहा है. चीन इस बात से भी बेहद परेशान है कि आने वाले दिनों में दक्षिण कोरिया भी क्वॉड से जुड़ने की मंशा जाहिर कर चुका है. जो अमेरिका का करीबी देश होने के साथ-साथ भौगोलिक रूप से चीन के करीब स्थित है. यह परिस्थिति चीन की परेशानी को बढ़ाने के लिए काफी है.
क्या है चार देशों का QUAD गठबंधन?
क्वॉड शब्द 'क्वाड्रीलेटरल सुरक्षा वार्ता' के क्वाड्रीलेटरल (चतुर्भुज) से लिया गया है. क्वाड्रीलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग यानी क्वॉड चार देशों- अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक रणनीतिक गठबंधन है जिसका इसका गठन 2007 में हुआ था. हालांकि इस समूह को बनाने की बात पहली बार 2004 की सुनामी के बाद हुई थी जब भारत ने अपने और अन्य प्रभावित पड़ोसी देशों के लिए बचाव और राहत के प्रयास किए थे. लेकिन इस आइडिया का श्रेय जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे को दिया जाता है. 2006-07 के बीच आबे क्वॉड की नींव रखने में कामयाब हुए और पहली अनौपचारिक बैठक वरिष्ठ अधिकारीयों के स्तर पर अगस्त 2007 में मनीला में आयोजित की गई. शुरू में चीन के विरोध की वजह से भारत भी थोड़े असमंजस में था. ऑस्ट्रेलिया भी 2010 में चीन की वजह से ही क्वॉड से हट गया था, हालांकि जल्दी ही वह फिर इससे जुड़ गया.
मनीला में QUAD अस्तित्व में आया
दस साल बाद 2017 में मनीला में आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान 'भारत-ऑस्ट्रेलिया-जापान-अमेरिका' संवाद के साथ क्वाड वापस अस्तित्व में आया. इसके बाद क्वाड देशों के विदेश मंत्री अक्टूबर 2020 में टोक्यो में मिले और कुछ ही महीनों बाद बीते साल मार्च में जो बाइडन के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के कुछ ही हफ्तों बाद अमेरिका ने क्वॉड के वर्चुअल शिखर सम्मलेन की मेज़बानी की थी. क्वॉड का मुख्य मकसद हिंद-प्रशांत क्षेत्र में महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों को किसी भी सैन्य या राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना है. इसे मुख्य तौर पर ड्रैगन के दबदबे को कम करने के लिए बनाए गए एक रणनीतिक समूह के तौर पर ही देखा जाता है. लेकिन असल में इसका उद्देश्य हिंद-प्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र, खुला और समृद्ध बनाने की दिशा में काम करना है. क्वॉड न केवल सुरक्षा बल्कि आर्थिक से लेकर साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा, मानवीय सहायता, आपदा राहत, जलवायु परिवर्तन, महामारी और शिक्षा जैसे वैश्विक मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करता है.
बहरहाल, क्वाड समिट से ठीक पहले एक तरफ अमेरिका-चीन के बीच वाक् युद्ध छिड़ गया है जिसमें दोनों देश एक दूसरे के खिलाफ शब्दों के तीर छोड़ रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ अमेरिकी एनएसए जेक सुलिवियन ने भारत में मानवाधिकारों के हनन और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के मुद्दे को द्विपक्षीय वार्ता में उठाए जाने की बात कहकर खलबली मचा दी है. सुलिवन ने कहा कि राष्ट्रपति जो बाइडेन का प्रशासन शुरुआत से ही इस बात को लेकर स्पष्ट है कि जब हम बुनियादी सिद्धांतों, मौलिक अधिकार, मानवाधिकार, लोकतांत्रिक संस्थानों के मूल्यों और कानून के राज का उल्लंघन देखेंगे तो अपनी आवाज उठाएंगे. ऐसा कई देशों के साथ है. भारत को लेकर भी हमारा रुख अलग नहीं है. यूक्रेन जंग के बीच ताइवान को डराने में जुटे चीन को अमेरिकी राष्ट्रकपति जो बाइडेन ने पहली बार खुली चेतावनी दी है. क्वाड बैठक में हिस्साअ लेने जापान पहुंचे बाइडेन ने कहा कि अगर चीन की ओर से ताइवान पर हमला किया जाता है तो अमेरिका मिलिट्री एक्शन लेगा. बाइडेन ने कहा कि ताइवान की सीमा पर घुसपैठ करके चीन बड़ा खतरा मोल ले रहा है. तो इन तमाम परिस्थितियों के बीच यह देखना अहम होगा कि क्वॉड समिट और मोदी-बाइडेन के बीच द्विपक्षीय वार्ता में भारत अपने हित को किस रूप में बरकरार रख पाता है.
सोर्स- tv9hindi.com
Rani Sahu
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