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- हिमाचली फलों को क्यों...
घरेलू और प्रदेश के बाहर की मंडियों में हिमाचली सेब, खासकर कुल्लू घाटी से जाने वाले सेब को अच्छे मूल्य क्यों नहीं मिल पाते, यह वर्षों से होता आया है, जब से दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में हिमाचल से ले जाए जाने वाले सेब की बोली लगाई जाती थी, हाथ पर रुमाल रख कर। मैंने कई बार सुबह मंडी जाकर इस पूरे गणित को समझने की कोशिश की, लेकिन व्यर्थ। सैकड़ों ट्रकों में मुश्किलों का सामना करते हुए सेब दिल्ली या पंजाब की मंडियों में ले जाया जाता था। उसके दाम उचित मोल-भाव कर नहीं लगाए जाते थे। सब आढ़तियों की मनमानी और समझ से होता था। बागवान ज्यादा दिन तक सेब को मंडी या ट्रक में नहीं रख सकता था क्योंकि उसके खराब होने का भय बना रहता था। इसलिए जो भी दाम मिले, लेकर घर वापस। कुछ बागवान शुरू में ही इन आढ़तियों से अग्रिम राशि (एडवांस) ले लेते थे ताकि सेब को मंडी तक पहुंचाने में सारे खर्चे उठाए जा सकंे, तो उनसे आढ़ती मनचाहे भाव से सेब खरीद लेते थे।