सम्पादकीय

ओमिक्रॉन की सुनामी के बीच क्यों कराए जा रहे हैं चुनाव, क्या राजनीतिक दलों को नहीं है जनता की फ़िक्र

Rani Sahu
30 Dec 2021 3:33 PM GMT
ओमिक्रॉन की सुनामी के बीच क्यों कराए जा रहे हैं चुनाव, क्या राजनीतिक दलों को नहीं है जनता की फ़िक्र
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चुनाव आयोग (Election Commission) ने लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस करके तय वक्त पर ही उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) कराने का ऐलान कर दिया है

यूसुफ़ अंसारी चुनाव आयोग (Election Commission) ने लखनऊ में प्रेस कांफ्रेंस करके तय वक्त पर ही उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) कराने का ऐलान कर दिया है. तारीख़ों का ऐलान जनवरी के पहले-पहले हफ्ते में किया जाएगा. मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने बताया कि चुनाव टालने पर हुए विचार विमर्श के दौरान सभी राजनीतिक दलों ने तय वक़्त पर ही चुनाव कराने के हक़ में राय दी. एक भी दल ने चुनाव टालने के पक्ष में राय नहीं दी. लिहाज़ा पांचों राज्यों में तय वक़्त पर ही चुनाव कराने का रास्ता साफ हो गया है. कोरोना संक्रमण के मद्देनज़र चुनाव आयोग कुछ एहतियाती क़दम उठा सकता है.

बता दें कि हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने पिछले हफ्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और चुनाव आयोग को देश और उत्तर प्रदेश में तेजी से फैलते कोरोना के मद्देनजर कुछ महीनों के लिए चुनाव टालने पर विचार करने को कहा था. हाईकोर्ट ने कहा है कि संभव हो सके तो फरवरी में होने वाले चुनाव को एक-दो माह के लिए टाल दें, क्योंकि जीवन रहेगा तो चुनावी रैलियां, सभाएं आगे भी होती रहेंगी. जीवन का अधिकार हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में भी दिया गया है. हाईकोर्ट ने कोरोना के तेज़ी से फैलने और इसकी वजह से लगातार बढ़ते ख़तरे पर मीडिया में आई ख़बरों का हवाला भी दिया था. कोरोना की वजह से दुनिया भर में चुनाव टले हैं. इस लिए ऐसे लग रहा था कि चुनाव आयोग कुछ महीनों के लिए चुनाव टाल सकता है. लेकिन किसी भी राजनीतिक दल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के विचार से सहमति नहीं दिखाई
जनता की जान जोखिम में डालकर चुनाव क्यों कराए जा रहे हैं?
राजनीतिक दलों ने पहले ही इसके संकेत दे दिए थे कि वो तय वक़्त पर ही चुनाव कराने के हक़ में हैं. दो दिन पहले ही बीएसपी प्रमुख मायावती ने दो चुनाव आयोग से तय वक़्त पर ही चुनवा कराने की मांग की थी. वहीं छत्तीसगढ़ के कांग्रेसी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोप लगाया था कि बीजेपी हार से बचने के लिए यूपी समेत पांच राज्यों के चुनाव टालने की साज़िश कर रही है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की नसीहत के बाद चुनाव आयोग ने कहा था कि वो लखनऊ में कोरोना संक्रमण के ताज़ा हालात और इससे निपटने की तैयारियों के साथ ही चुनाव की तैयारियों का जायज़ा लेने के बाद ही इस पर कोई फैसला करेगा. दो दिन की माथापच्ची के बाद आयोग ने अपना फैसला सुना दिया. तय वक्त पर चुनाव कराने के फैसले के बाद ये सवाल उठना लाज़िमी है कि आख़िर जनता की जान को जोखिम में डालकर चुनाव क्यों कराए जा रहे हैं? ये सवाल भी अहम है कि क्या राजनीतिक दलों को जनता की कोई चिंता नहीं है?
ये सवाल अहम हो गया है भारत में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव टालने को लेकर हिचक क्यों हैं. दुनिया भर में कोरोना के कहर की वजह से दो तीन महीनों से लेकर साल भर तक चुनाव टाले गए हैं. ऐसे में ये सवाल भी पैदा होता है कि क्या देश की सरकार, चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को आम लोगों की जान की कोई परवाह नहीं है. पहले हम एक नज़र डालते हैं कि किन-किन देशों में कोरोना की वजह से चुनाव टाले गए हैं.
दुनिया में कहां-कहां टले कोरोना के चलते चुनाव
'इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंट' (IDEA) ने कोरोना की दस्तक के बाद दुनियाभर में चुनावों पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया है. ये अध्ययन 21 फरवरी 2020 से 21 नवंबर 2021 के बीच किया गया है. इसमें ये जानने की कोशिश की गई कि कोरोना काल में किस देश में चुनाव हुए और कहां टाले गए. ये अध्ययन इंस्टीट्यूट की आधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है. इसके मुख्य निष्कर्ष निम्नलिखित हैं-
1- दुनिया भर में 79 देशों ने कोरोना की वजह से राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय चुनाव टाले हैं. 42 देशों में राष्ट्रीय चुनाव और जनमत संग्रह टाला गया है.
2- कोरोना के बावजूद 146 देशों में चुनाव कराए गए हैं. इनमें से 124 देशों में राष्ट्रीय चुनाव या जनमत संग्रह हुआ है.
3- 57 देशों में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चुनाव हुए हैं. हालांकि पहले इन्हे कोरोना के चलते टाला गया था. 29 देशों में राष्ट्रीय चुनाव या जनमत संग्रह हुआ है.
4- रूस में संवैधानिक राष्ट्रव्यापी जनमत संग्रह 22 अप्रैल 2020 को होना था. इसे 1 जुलाई 2020 तक टाला गया. रूस के केंद्रीय चुनाव आयोग ने 3 अप्रैल 2020 को 5 अप्रैल से 23 जून के बीच होने वाले सभी चुनाव स्थगित कर दिए. रूस में इस दौरान स्थानीय और क्षेत्रीय स्तर पर होने वाले 94 चुनावों को टाल गया.
5- बोलीविया में आम चुनाव 3 मई 2020 को होने थे. पहले इन्हें 6 सितंबर 2020 तक के लिए और फिर 18 अक्टूबर 2020 तक टाला गया. क्षेत्रीय चुनाव मार्च 2020 से टालकर आम चुनावों के साथ कराए गए.
6- ईरान में संसदीय चुनावों का दूसरा दौर 17 अप्रैल 2020 से 11 सितंबर 2020 तक टाला गया.
7- सीरिया में संसदीय चुनाव 13 अप्रैल 2020 से 19 जुलाई 2020 तक टाले गए.
8- श्रीलंका में संसदीय चुनाव अप्रैल 2020 में होने थे. लेकिन अगस्त 2020 में कराए गए.
9- ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स राज्य के चुनाव पहले सितंबर 2020 से सितंबर 2021 तक और फिर दिसंबर 2021 तक और अब मई 2022 तक के लिए टाल दिए गए.
10- इंडोनेशिया में स्थानीय चुनाव सितंबर 2020 से दिसंबर 2020 तक टाले गए.
11- चिली में संवैधानिक जनमत संग्रह 26 अप्रैल 2020 को होना था. पहले इसे 25 अक्टूबर 2020 चाला गया. संविधान आयोग के चुनाव 10-11 अप्रैल 2021 से 15-16 मई 2021 तक के लिए टाले गए.
12- सोमालिया में संसदीय चुनाव 27 नवंबर 2020 को और राष्ट्रपति का चुनाव 8 फरवरी 2021 से पहले होना था. इन्हें कई बार टालकर 25 जुलाई और 10 अक्टूबर 2021 को कराया गया.
13- ब्राजील में नगरपालिका चुनाव अक्टूबर 2020 को होने थे. इन्हें नवंबर 2020 तक टाला गया.
भारत में क्यों नहीं टल सकते चुनाव?
सवाल ये पैदा होता है कि अगर दुनिया भर में कोरोना के चलते चुनाव टाले जा सकते हैं तो फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है. इसकी रक्षा के लिए अगर चुनाव टालना जरूरी हो तो ये फैसला करने में हिचकना नहीं चाहिए. लेकिन जिस तरह चुनाव और राजनीतिक दलों ने तय वक्त पर ही चुनाव कराने के हक़ में राय दी है उसे देखते हुए लगता है कि इन्हें जनता की कोई चिंता ही नहीं है. देश में कोरोना की तीसरी लहर दस्तक दे चुकी है. ज्यादातर राज्यों में भीड़भाड़ करने के लिए रात का कर्फ्यू और दिन में भी कई तरह की पाबंदियां लगाई जा चुकी हैं. चुनाव वाले पांच राज्यों में सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश को कोरोना प्रभावित राज्य घोषित किया जा चुका है. ऐसे हालात में चुनाव कराना लोगो का जीवन ख़तरे में डालना है.
क्या हैं देश में कोरोना के हालात?
स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने गुरुवार को बताया कि पिछले 24 घंटे में देश में 13,154 कोरोना केस दर्ज किए गए हैं. 25 दिसंबर के बाद लगातार रोज़ाना 10,000 से ज्यादा मामले आ रहे हैं. देश में पॉज़िटिविटी रेट बढ़कर 2.54 प्रतिशत हो गया है. नए आने वाले कोरोना के मरीज़ों में क़रीब आधे ओमिक्रॉन से संक्रमित हैं. देश के कई हिस्सों में इसका कम्युनिटी ट्रांसमिशन भी शुरू हो चुका है. देश और विदेश के एक्सपर्ट लगातार भारत में ओमिक्रॉन की सुनामी आने की चेतावनी दे रहे हैं. संक्रमण रोकने के लिए कोरोना प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन कराने की ज़रूरत महसूस की जा रही है. तमाम एहतियाती क़दम उठाए जा रहे हैं. ऐसे में चुनाव होने से इसमें और इज़ाफा हो सकता है. पिछले चुनाव में ऐसा ही हुआ था.
नहीं सीखा ग़लतियों से सबक़
लगता है हमने पिछली गलतियों से कोई सबक़ नहीं सीखा है. इसी साल के शुरू में पांच राज्य़ों में हुए चुानव के दौरान कोरोना संक्रमण बहुत तेज़ी से फैला था. इस एक याचिका पर सुनवाई करते हुए मद्रास हाईकोर्ट ने कोरोना के दौरान चुनाव कराए जाने के चुनाव आयोग के फैसले को ग़ैर ज़िम्मेदाराना करार दिया था. उसने चुनाव आयोग के अधिकारियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराने की चेतावनी थी. बता दें कि उस समय चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़ की वजह से चुनाव वाले राज्यों में सैकड़ों प्रतिशत कोरोना के मामले बढ़े थे. बड़े पैमाने पर लोगों की मौत भी हुई थी. इसे देखते हुए माना जा रहा था कि शायद केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को कुछ समय के लिए टाल दे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
क्या हुआ था पिछले विधानसभा चुनावों में
इसी साल मार्च-अप्रैल मे हुए पांच राज्यों के विधानसभा और यूपी में पंचायत चुनाव कोरोना की दूसरी लहर के दौरान हुए थे. चुनाव वाले राज्यों में रैलियों में उमड़ी भीड़ की वजह से कोरोना तेज़ी से फैला था. चुनाव शुरू होने के दो हफ्तों के भीतर इन राज्यों में 100 से लेकर पांच सौ फीसदी से ज्यादा मामले बढ़े थे. उस समय के आंकड़े बेहद डरावने हैं. चुनाव 1 से 14 अप्रैल तक असम में 532 फीसदी, पश्चिम बंगाल में 420 फीसदी, पुडुचेरी में 165 फीसदी, तमिलनाडु में 159 फीसदी, और केरल में 103 फीसदी कोरोना के मामले बढ़ गए थे. पांचों राज्यों में मौत का आंकड़ा भी औसतन 45 फीसदी तक बढ़ा था.
क्या हुआ था यूपी के पंचायत चुनाव में
यूपी में पंचायत चुनाव टालने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. तब हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को 30 अप्रैल से पहले हर हाल में चुनाव कराने का आदेश दिया था. इन चुनावों में ड्यूटी करने वाले सरकारी कर्मचारी बड़े पैमाने पर कोरोना से संक्रमित हुए थे. बड़े पैमाने पर उनकी मौत भी हुई थी. अकेले यूपी के शिक्षक संघ ने 1621 शिक्षकों की मौत का दावा किया था. बाक़ी सरकारी कर्मचारियों को मिलाकर ये आंकड़ा दो हज़ार से ऊपर पहुंचता है. हाई कोर्ट की फटकार के बाद यूपी सरकार ने ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वालों के परिवार वालों को 30-30 लाख रुपए का मुआवजा देने का फैसला करना पड़ा. हालांकि सरकार ने मौतों का कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया.
चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़ ने बढ़ाई चिंता
हाल ही में यूपी में चुनावी रैलियों में उमड़ रही हज़ारों-लाखों की भीड़ ने चिंता बढ़ाई है. कुछ दिन पहले पीएम मोदी ने अपनी एक रैली में भीड़ को देखकर ख़ुशी जताई थी. शाम को उन्हें ओमिक्रॉन से बिगड़ते हालात का जायज़ा लेने के लिए अहम बैठक की थी. ऐसा पश्चिम बंगाल के चुनाव के दौरान भी हुआ था. हाईकोर्ट ने चुनाव टालने की नसीहत देते वक़्त याद दिलाया था कि कोरोना की दूसरी लहर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और यूपी के पंचायत चुनाव के दौरान लाखों लोग कोरोना संक्रमित हुए थे. बड़े पैमाने पर मौतें भी हुई थीं. अब चुनाव होने पर दोबारा भी ऐसा हो सकता है. हाई कोर्ट ने कहा है कि रैलियों में उमड़ती भीड़ को समय से नहीं रोका गया तो नतीजे दूसरी लहर से भी ज्यादा भयावह हो सकते हैं.
किन परिस्थितियों में टाले जा सकते हैं चुनाव?
जनप्रतिनिधित्व क़ानून में चुनाव टालने या रद्द करने के कई प्रावधान हैं. किसी उम्मीदवार की मौत, पैसों के दुरुपयोग और बूथ कैप्चरिंग होने पर किसी भी सीट पर चुनाव रद्द हो जाता है. चुनाव के दौरान अगर कहीं दंगा-फसाद या प्राकृतिक आपदा की स्थिति पैदा हो जाए तो वहां चुनाव टाला जा सकता है. जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 57 के में यह प्रावधान है. इसके तहत अगर दंगा-फ़साद या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में पीठासीन अधिकारी चुनाव टालने का फैसला ले सकते हैं. अगर पूरे राज्य में या बड़े स्तर पर ऐसे हालात पैदा हो जाएं तो चुनाव आयोग ये फैसला ले सकता है.
पहले कब-कब टले चुनाव?
देश में पहले कई बार अलग-अलग कारणों से चुनाव टले हैं. 1991 में पहले चरण की वोटिंग के बाद भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई थी. इसके बाद चुनाव में आयोग ने अगले चरणों मतदान क़रीब एक महीने के लिए टाल दिया था. 1991 में ही पटना लोकसभा में बूथ कैप्चरिंग होने पर आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया था. 1995 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बूथ कैप्चरिंग के मामले सामने आने के बाद 4 बार तारीखें आगे बढ़ाई गई थीं. बाद में बड़े पैमाने पर अर्ध सैनिक बलों की निगरानी में कई चरणों में चुनाव हुए थे.
अगर कोरोना की दूसरी लहर के बीच चुनाव कराना ग़लती थी तो तीसरी लहर की दस्तक के बाद इस ग़लती को दोहराना अक़्लमंदी नहीं है. अभी चुनावों के तारीख़ों का ऐलान नहीं हुआ है. लिहाज़ा चुनाव टालने का रास्ता निकाला जा सकता था. विशेष परिस्थितियों में कुछ महीनों के लिए चुनाव को टाल सकता था. लेकिन तमाम राजनीतिक दलों का सहमति से चुनाव आयोग ने अगर तय वक़्त पर ही चुनाव कराने का फैसला कर ही लिया हो तो चुनाव के दौरान कोरोना से होने वाले संक्रमण में इज़ाफे और होने वाली मौतों की ज़िम्मदेरी भी चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों को लेनी चाहिए.
Rani Sahu

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