सम्पादकीय

भारतीय किसके भरोसे?

Rani Sahu
6 March 2022 7:01 PM GMT
भारतीय किसके भरोसे?
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रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान 5-6 घंटे के लिए युद्धविराम हुआ या नहीं अथवा कितनी देर तक हुआ

रूस-यूक्रेन युद्ध के दौरान 5-6 घंटे के लिए युद्धविराम हुआ या नहीं अथवा कितनी देर तक हुआ? कितना सार्थक और मानवीय रहा? इसकी सटीक जानकारी हमारे पास नहीं है, क्योंकि हम युद्धक्षेत्र में मौजूद नहीं हैं। जो सूचनाएं छन कर आ रही हैं, वे विरोधाभासी हैं। दोनों देश आरोप लगा रहे हैं कि युद्धविराम के दौरान भी बमबारी और मिसाइल के हमले जारी रहे। यूक्रेन विदेशी नागरिकों को निकलने नहीं दे रहा, बल्कि मानव-ढाल के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। सवाल यह भी हैै कि भारतीय छात्र और अन्य नागरिक रूस की सीमा पर पहुंच कर, रूस के जरिए ही, भारत क्यों नहीं लौट पाए? भारत के प्रधानमंत्री मोदी और रूस के राष्ट्रपति पुतिन के बीच संवाद होने के बाद यह तय हो जाना चाहिए था कि भारतीय नागरिक रूस के जरिए ही वापस जाएंगे। आखिर परस्पर दोस्ती का सवाल है! वैसे भी खारकीव और सुमी में जो छात्र और नागरिक फंसे हुए थे, उनके लिए रूस की सीमा ज्यादा करीब थी। उन्हें 1000 किलोमीटर से ज्यादा का रास्ता, वह भी युद्ध के दौरान, तय कर पोलैंड, हंगरी, रोमानिया की सीमाओं तक क्यों जाना पड़ा?

यदि चार केंद्रीय मंत्री इन देशों में भेजे जा सकते हैं, तो रूस के साथ बातचीत कर यह व्यवस्था क्यों नहीं की? आपदा या युद्ध के दौरान भारतीयों को बचाना या निकाल कर देश वापस लाना केंद्र सरकार का दायित्व है। बुनियादी दायित्व विदेश मंत्रालय और उससे जुड़े दूतावासों का है। भारत के मेडिकल छात्रों के जो वीडियो सामने आए हैं, उनसे स्पष्ट है कि दूतावासों के कर्मचारी और अधिकारी उन्हें कीट-मकौड़ा समझते रहे। बार-बार यह परामर्श दिया जाता रहा कि छात्र और नागरिक 1400 किलोमीटर तक का रास्ता पार कर बॉर्डर तक पहुंच जाएं। यह कैसे संभव था? बंकरों या बेसमेंट वाली जगहों से बाहर निकलना ही दुष्कर था। हमारे एक छात्र की मौत हो चुकी है और दूसरा छात्र गोलीबारी का शिकार होकर अस्पताल में है। भगवान ने उसे नई जि़ंदगी बख्शी है! हम पहले भी विश्लेषण कर चुके हैं कि राजनयिक संबंधों के मायने क्या होते हैं। छात्रों के बंकरों तक बसें या अन्य वाहन क्यों नहीं लाए जा सके? यदि दूतावासों के लिए हालात जानलेवा थे, तो छात्र घंटों पैदल चल कर सीमाओं तक आराम से कैसे पहुंच सकते थे।
लेकिन खतरों के बीच भारतीय सीमाओं तक गए और उन्हें भारतीय तथा वायुसेना के विमानों से स्वदेश वापस लेकर आए। कुल 20,000 छात्र और नागरिक लौटे या कितने वापस आए, वह संख्या सरकार और मीडिया के जरिए देश के सामने है, लेकिन तमाम कवायदों के बावजूद 700 से ज्यादा छात्र सुमी में अब भी फंसे हैं। यूक्रेन की राजधानी कीव में कितने भारतीय अब भी हैं, यह संख्या अब भी अस्पष्ट है। युद्ध 11वें दिन भी जारी रहा। हवाई हमले बंकरों और शरण-स्थलों पर भी किए जा रहे हैं। बंकरों के भीतर के हालात नारकीय और अमानवीय हो गए हैं। बिन पानी, खाना, बिजली के कोई भी कब तक जि़ंदा रह सकता हैै? यूक्रेन में आजकल तापमान माइनस में रहता है। उसमें भी बच्चे बर्फ को पिघला कर पानी पीने को विवश हैं, क्या इसीलिए वे पढ़ाई करने विदेश गए थे? अपने घर से पहली बार विदेश उच्च शिक्षा के लिए गए छात्र तनाव, भय और जि़ंदगी-मौत के बीच हैं। आखिर वे किसके और कब तक भरोसे रहेंगे? एक और तथ्य सामने आया है कि करीब 11,33,749 भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेशों में हैं। ऐेसी पढ़ाई पर हजारों करोड़ रुपए विदेशों के हिस्से जाता रहा है। यह 75 साल की आज़ादी की सबसे बड़ी शर्मिन्दगी है, जो हम आज तक भारत में ही उच्च शिक्षा का पूरा बंदोबस्त नहीं कर पाए। बहरहाल भारत सरकार ने 'ऑपरेशन गंगा' के तहत हजारों बच्चों को उनके परिजनों से मिलाया है। उसके लिए सरकार का आभार… लेकिन छात्रों का अंतिम, मार्मिक वीडियो भी ध्यान में रहना चाहिए कि यदि वे युद्ध में ही बाहर निकल जाते, तो कोई भी त्रासदी संभव थी। जिम्मेदारी भारत सरकार की होती और 'ऑपरेशन गंगा' भी नाकाम साबित होता, लिहाजा विदेश मंत्रालय में बैठे चेहरों को कुछ दूरगामी और विनम्र होना होगा। कमोबेश सरकार ऐसी कार्रवाई जरूर करे। यह हमारी सरकार है, हम करदाता हैं, तो दूतावास वालों की तनख्वाह भी हम देते हैं। वे अकड़बाज नहीं हो सकते।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

Rani Sahu

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