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एक समय था जब विपक्ष (Opposition) से उम्मीद की जाती थी कि वह सरकार (Government) की नीतियों और उनके कार्यान्वयन की समीक्षा करे
अजय झा
एक समय था जब विपक्ष (Opposition) से उम्मीद की जाती थी कि वह सरकार (Government) की नीतियों और उनके कार्यान्वयन की समीक्षा करे, उसकी आलोचना करे और उनकी खामियां जनता के बीच रखे. विपक्षी दल आज भी चुनाव (Election) हारने के बाद रचनात्मक विपक्ष की भूमिका निभाने की बात करते हैं. पर अब यह सिर्फ कागज़ी बातें बन कर रह गयी हैं. इन दिनों कुछ विपक्षी दल सरकार के कामकाज और नीतियों की आलोचना करने की जगह भविष्यवाणी करने की होड़ में लग गए हैं. नित नए दिन कुछ ऐसी बाते करते हैं मानो सरकारी ख़ुफ़िया तंत्र सीधे उन्हें ही रिपोर्ट करती हों. कई ऐसी बातें करते हैं जिसकी जानकारी जनता को तो बिल्कुल नहीं है, शायद सरकार को भी नहीं.
इस गलत प्रथा को शुरू करने की होड़ में दो ऐसे क्षेत्रीय दल शामिल हैं, जिनका प्रभाव क्षेत्र अभी भी सीमित है. ये दल हैं शिवसेना और आम आदमी पार्टी. दोनों दल पिछले कुछ समय से कल्पना के आधार पर भविष्यवाणी कर रहे हैं और जब सच्चाई सामने आती है तो जनता के बीच उनका मजाक बन जाता है. जहां शिवसेना को यह डर हमेशा सताता रहता है कि कहीं महाराष्ट्र की खिचड़ी सरकार, जिसके मुख्यमंत्री शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे हैं, को केंद्र सरकार बर्खास्त ना कर दे, वहीं पंजाब में चुनाव जीतने के बाद आम आदमी पार्टी उतावली हो रही है कि यथाशीघ्र पार्टी को एक राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता मिल जाए, अधिक से अधिक राज्यों में चुनाव जीते ताकि 2024 के आम चुनाव के आते-आते वह सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी बन जाए और विपक्ष उनकी पार्टी के सर्वोच्च नेता अरविन्द केजरीवाल को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने को मजबूर हो जाए.
'आप' के सपने
जहां तक आम आदमी पार्टी की बात है तो सपने देखने और उसे पूरा करने की कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है. पहले दिल्ली में और अब पंजाब में भी सत्ता में आने के बाद पार्टी की नज़र अब इस वर्ष के अंत में होने वाले हिमाचल प्रदेश और गुजरात के चुनावों पर टिकी है. ये दो राज्य इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि दोनों प्रदेशों में वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. दिल्ली में और पंजाब में आम आदमी पार्टी, कांग्रेस पार्टी को हरा कर सत्ता हासिल करने में सफल रही थी. अगर वह बीजेपी को हरा कर किसी भी प्रदेश में सरकार बना सके तो फिर उनकी बल्ले-बल्ले हो जाएगी.
अभी पिछले दिनों दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, जो आम आदमी पार्टी में केजरीवाल के बाद पार्टी के अघोषित नंबर दो नेता माने जाते हैं, ने एक ऐसी ही भविष्यवाणी की कि बीजेपी हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को हटा कर केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर को मुख्यमंत्री बनाने वाली है. इस बात की सम्भावना पिछले वर्ष नवम्बर के महीने में बन गयी थी, जब प्रदेश में एक लोकसभा और तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में बीजेपी को कांग्रेस पार्टी के हाथों सभी चार सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा था.
जयराम ठाकुर की कुर्सी जाते-जाते बच गयी थी, क्योंकि बीजेपी एक समीक्षा के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंची कि हार का कारण कृषि आन्दोलन और पेट्रोलियम उत्पाद की बढती हुई कीमतें थीं, जिसके लिए जयराम ठाकुर को दोष नहीं दिया जा सकता है. अब जबकि प्रदेश में विधानसभा चुनाव नवम्बर के महीने में होना निर्धारित है तो मुख्यमंत्री बदलने का कोई खास औचित्य नहीं है. हिमाचल प्रदेश चुनाव की विधिवत घोषणा अक्टूबर में होने की सम्भावना है, ऐसे में अनुराग ठाकुर 6 महीने के लिए क्यों मुख्यमंत्री बनना चाहेंगे, जबकि केंद्र सरकार के मंत्री के रूप में उनकी साख बढ़ती जा रही है.
सिसोदिया ने जयराम ठाकुर की जगह अनुराग ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने की बात तो कर दी, जैसे कि उन्हें इसकी अंदरूनी जानकारी हो, पर उन्हें या आम आदमी पार्टी में किसी को भी इसका इल्म भी नहीं था कि हिमाचल प्रदेश में उनकी पार्टी का क्या हश्र होने वाला है. दो किश्तों में आम आदमी पार्टी के सभी नेता बीजेपी में शामिल हो गए और पार्टी इस तरह खोखली हो गई है कि पार्टी को हिमाचल में अपनी इकाई को भंग करना पड़ा. अब पार्टी को हिमाचल प्रदेश में नए सिरे से शुरुआत करने की नौबत आ गई है. ऐसे में आम आदमी पार्टी के लिए हिमाचल प्रदेश में चुनाव जीतना टेढ़ी खीर सबित होने वाला है.
शिवसेना के सपने
अब नज़र डालते हैं शिवसेना और उसके बड़बोले प्रवक्ता संजय राउत पर. राउत ने पिछले दिनों दो इसी तरह की भविष्यवाणी की. पहले उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार मुंबई को महाराष्ट्र से अलग करके केंद्र शासित प्रदेश बनाने वाली है. अभी तक किसी ने इस बारे में सुना भी नहीं था. शायद उन्हें इस बारे में सपना आया होगा. राउत वहीं रुकने वाले नहीं थे. इस बात पर उन्होंने केंद्र सरकार की जम कर आलोचना भी कर डाली. और सोमवार को फिर उन्होंने एक और इसी तरह की भविष्यवाणी की कि बीजेपी के पूर्व सांसद किरीट सोमैया, जिनपर शिवसेना ने एक घोटाले का आरोप लगाया है, सोमैया और उनके पुत्र के खिलाफ FIR दर्ज किया है, देश से भाग कर अपने मित्र, भगोड़े मेहुल चौकसी के पास दक्षिण अमेरिका के किसी देश में जाने वाले हैं.
सोमैया की अग्रिम जमानत की अर्जी एक कोर्ट ने खारिज कर दी है, देखना होगा कि क्या वह पुलिस के सामने आत्म समर्पण करेंगे या फिर मुंबई पुलिस उनको ढूंढ कर गिरफ्तार करेगी. सोमैया का कहना है कि उन्होंने मात्र 11,000 रुपया इकट्ठा किया था जिसे उन्होंने बीजेपी के कोष में जमा करवा दिया था, पर शिवसेना का आरोप है कि सोमैया ने 57 करोड़ रुपये इकठ्ठा किए थे जिसे वह हड़प गए. अभी यह सिर्फ आरोप हैं, उन्हें अपराधी करार नहीं दिया जा सकता. पर यह कहना कि वह देश से फरार होने वाले हैं, या तो संजय राउत को कोई ख़ुफ़िया जानकारी है या फिर सिर्फ उनकी कल्पना है.
हास्यास्पद है कि उन्हें सब कुछ मालूम है, मुंबई केंद्र शासित प्रदेश बनने वाला है और किरीट सोमैया देश छोड़ कर भागने वाले हैं. पर उनको इसकी कोई अग्रिम जानकारी नहीं थी कि एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट उनके खिलाफ छापा मारने वाली है. उनकी सैकड़ों करोड़ों की सम्पति जब्त हो गयी है, और उन्हें इसका जवाब अदालत में देना होगा कि इतनी सम्पति उनके पास आई कहां से. शिवसेना हो या आम आदमी पार्टी, इतना साफ होने लगा है कि मोदी सरकार की आलोचना करने के लिए उनके पास कुछ खास मुद्दा है नहीं, इसलिए अब वह भविष्यवाणी करके और मनगढ़ंत आरोप लगा कर ही राजनीति करने की कोशिश करने में लगे हैं. शायद यह विपक्ष का मुद्दा विहीन होना या फिर बीजेपी से खौफ खाने जैसा है. यह जो भी हो, पर रचनात्मक विपक्ष की भूमिका कदापि नहीं कही जा सकती.
Rani Sahu
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