सम्पादकीय

गरीबी-मुक्त भारत कब?

Rani Sahu
30 Nov 2021 6:48 PM GMT
गरीबी-मुक्त भारत कब?
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देश का एक बड़ा हिस्सा गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा में जीने को विवश है

देश का एक बड़ा हिस्सा गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा में जीने को विवश है। हमारा भुखमरी सूचकांक भी बेहद दयनीय है। कुल 116 देशों में भारत का स्थान 101वां है। यह स्थिति तब है, जब 30 फीसदी लोकसभा सांसद इन्हीं राज्यों से आते रहे हैं। ये देश के सबसे बड़े राज्यों में शामिल हैं, लेकिन आज भी ये राज्य 'बीमारू' की श्रेणी में मौजूद हैं। यह किसी निजी, पेशेवर अथवा अंतरराष्ट्रीय एजेंसी के सर्वेक्षण के निष्कर्ष नहीं हैं। यह भारत सरकार के नीति आयोग की हालिया रपट के सारांश हैं। बिहार की करीब 52 फीसदी आबादी गरीब है। उप्र में यह औसत करीब 38 फीसदी है। झारखंड में करीब 42 फीसदी और मप्र में करीब 37 फीसदी है। झारखंड को छोड़ कर शेष राज्यों में भाजपा-एनडीए की सरकारें हैं। सर्वेक्षण के दौर में झारखंड में भी भाजपा सरकार ही थी। मप्र में तो 2003 से, बीच में डेढ़ साल को छोड़ कर, भाजपा ही सत्ता में रही है। वहां दावा किया जाता रहा है कि राज्य 'बीमारू' की जमात से बाहर आ चुका है, लेकिन यथार्थ कुछ और ही है।

यही नहीं बच्चों में कुपोषण की स्थिति अफ्रीकी देशों से भी बदतर है। औसत कुपोषण आज भी 32 फीसदी के करीब है, लेकिन भारत में ही दक्षिण क्षेत्र ऐसा है, जहां गरीबी नहीं है अथवा नगण्य है। केरल में मात्र 0.7 फीसदी आबादी ही गरीब है। तमिलनाडु में करीब 4 फीसदी लोग गरीब हैं और दूरदराज के छोटे-से राज्य सिक्किम में करीब 3 फीसदी आबादी ही गरीब है। देश की आज़ादी के 75 साल बाद जब हम 'अमृत महोत्सव' मना रहे हैं, तो ये शर्मनाक, कलंकित और भयावह आंकड़े हमें झकझोरते हैं। ये स्थितियां हमारे गाल पर तमाचा हैं, क्योंकि हम 5 ट्रिलियन डॉलर, अर्थात् 350 लाख करोड़ रुपए, की अर्थव्यवस्था बनने का सपना पाले बैठे हैं। देश में 35 करोड़ से अधिक लोग गरीबी-रेखा के नीचे हैं। योजना आयोग के दौर में गरीबी-रेखा का जो पैमाना तेंदुलकर कमेटी ने दिया था, आज नीति आयोग में भी वही है। कोई नई परिभाषा या नया अध्ययन सामने नहीं आया है। उसके आधार पर गरीब की आय प्रतिदिन, प्रति व्यक्ति 41 रुपए है। यानी जो व्यक्ति इससे भी कम कमा पा रहा है, वह गरीबी-रेखा के नीचे है। आखिर कब गरीबी-मुक्त होगा भारत? अनुसूचित जनजाति यानी आदिवासी की 50 फीसदी से ज्यादा आबादी गरीबी में जी रही है और एक-तिहाई दलित भी गरीब हैं। यह स्थिति भी तब है, जब बीते सात दशकों से उन्हें आरक्षण दिया जा रहा है। नौकरियों और शिक्षा में उनके लिए आरक्षण है, उसके बावजूद आज भी समानता का स्तर नहीं है। गरीबी और कुपोषण के अलावा, स्कूल में बिताए गए वर्ष, खाना बनाने का ईंधन, बिजली, पक्का मकान, स्वच्छता, औसत घर की संपत्तियां आदि मानकों पर भी भारत का यह हिस्सा गरीब है।
बेशक सरकार उज्ज्वला, शौचालय, जन-धन आदि अनेक योजनाओं की गिनती कराती रहे, लेकिन देश विपन्न ही रहा है। अभी इस सर्वेक्षण में कोरोना-काल की मुश्किलें, बेरोज़गारी, भुखमरी आदि शामिल नहीं है। अलबत्ता आंकड़े आते रहे हैं कि करीब 23 करोड़ लोग गरीबी-रेखा की श्रेणी में शामिल हुए हैं। अभी तो भारत सरकार बीते काफी वक्त से 80 करोड़ लोगों में निःशुल्क खाद्यान्न बांट रही है और इस योजना को मार्च, 2022 तक बढ़ा दिया गया है। जरा कल्पना कीजिए कि यदि यह योजना नहीं होती, तो भुखमरी के क्या हालात हो सकते थे! रपट में यह भी खुलासा किया गया है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य योजना के मुताबिक, देश में करीब 60 फीसदी महिलाएं और बच्चे कुपोषित हैं। भारत एक जन कल्याणकारी देश रहा है। देश में करोड़ों लोगों को आयुष्मान भारत योजना के तहत स्वास्थ्य और इलाज की मुफ्त सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं, कई राज्यों में तो स्वास्थ्य सुविधाएं बिल्कुल निःशुल्क हैं, उनके बावजूद देश का बड़ा हिस्सा बीमार और कुपोषित है। इन अभावों की तरफ किसी ने स्थायी तौर पर ध्यान नहीं दिया। सरकारों और विधायकों/सांसदों के लिए आलीशान आवास हैं, चमचमाती कारें हैं, मोटे वेतन-भत्ते हैं, लेकिन लोकशाही में ही आम आदमी गरीब है।

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