सम्पादकीय

जब मलबा गिरता है

Rani Sahu
29 Aug 2022 6:59 PM GMT
जब मलबा गिरता है
x
भले ही ट्विन टावर हिमाचल से मीलों दूर नोएडा में गिराए गए, लेकिन विस्फोट की कहानी यहां तक पहुंची है
By: divyahimachal
भले ही ट्विन टावर हिमाचल से मीलों दूर नोएडा में गिराए गए, लेकिन विस्फोट की कहानी यहां तक पहुंची है। अब वहां शांत मलबे के भीतर कई रिकॉर्ड और सबक दिखाई दे रहे हैं। नव निर्माण की गाथाओं में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद व व्यवस्था के नासूर नोएडा में दिखाई दिए गए, तो कानूनी तौर पर सारे देश को कड़ा सबक मिला। ये इमारतें इसलिए उगीं क्योंकि हमारे आसपास ऐसा तंत्र विकसित हो चुका है, जो योजना की मूल भावनाओं से खिलवाड़ कराने की महारत में शहरी जंगल उगा रहे हैं। योजना में जहां पार्क बनना था, वहां कंक्रीट की तहें बिछाई गईं और इनसानी जिंदगी के लिए खतरे इस कद्र बढ़ाए गए कि नवनिर्माण की फेहरिस्त में सुकून व सुरक्षा चारों खाने चित हो गईं। खैर नोएडा में गगनचुंबी निर्माण के जो भी खलनायक थे, उन्हें करारा सबक मिल गया, लेकिन ऐसे घटनाक्रम से हिमाचल जैसे प्रदेश को भी सीखना होगा।
यहां भी विकास का आदर्श नियमों सेे द्वंद्व बढ़ा है, जहां समाज का अनैतिक चरित्र और विभागीय निरीक्षण का टूटता पहरा अकसर खतरनाक साबित होगा। कमोबेश हर शहर और लगातार कई गांव से कस्बों में गिरता हुआ मलबा चीख-चीख कर बता रहा है कि ऐसे निर्माण के कान पकडऩे होंगे। हिमाचल में 'लैंड यूज' के मायने केवल निजी हठधर्मिता या सरकार की अनदेखी के कारण गौण हो गए हैं। नतीजतन बिना किसी 'निर्माण आचार संहिता' के सारा प्रदेश या तो किसी खेत या किसी पहाड़ को खोद रहा होता है। आश्चर्य यह कि जहां शहरी विकास योजना के खाके भी बने, वहां या तो 'ग्रीन बैल्ट' की पाबंदियां राजनीतिक कारणों से हटा दी गईं या समूचे राज्य ने आवासीय मांग व आपूर्ति के सुरक्षित व भविष्यगामी विकल्प ही विकसित नहीं किए। नतीजतन पिछले चार दशकों में हुआ अधिकांश निर्माण प्रकृति विरोधी, अवैज्ञानिक व पर्वतीय परिवेश के खिलाफ होता आ रहा है। राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने थोड़ी सी सख्ती दिखाई थी, तो हमें मालूम हो गया कि पर्यटक व धार्मिक स्थल किस कद्र निर्माण का खंजर चुभो रहे हैं। हर बरसात और तूफान में टूटते पहाड़ और पहाड़ की कोख को लूटते निर्माण से जब धरती खिसक जाती है, तो हमें मालूम होता है कि इस सत्यानाश के पीछे कुछ हमारी भी खता है। क्या हिमाचल के अधिकांश इलाकों में सारी निर्माण गतिविधियां नोएडा के ट्विन टावर की शक्ल में नहीं खड़ी हैं। शिमला को ही देख लें कि कहां तक अतीत नए शिमला से रहम की भीख मांग रहा है। हिमाचल में सरकारी इमारतों के गुनाह चिन्हित हैं और शिमला में ही हाईकोर्ट की तरह निर्माण के ऊंचे शिखर पर सारी हिफाजत नजऱअंदाज है।
प्रदेश में इमारतों के गिरने की तबाही आइंदा न हो, इसके लिए निर्माण की राज्य स्तरीय आचार संहिता तथा प्रदेश को नगर नियोजन कानून के तहत आदर्श अनुपालना शुरू करनी होगी। आवासीय बस्तियों और उपग्रह नगरों की स्थापना करके मानवीय गतिविधियों को निरंकुश होने से रोकना होगा। प्रदेश की संपत्तियों यानी सरकारी भवनों का निर्माण किसी केंद्रीय एजेंसी के तहत करना होगा ताकि जमीन का सदुपयोग अधिकतम किया जा सके। राज्य स्तरीय एस्टेट अथारिटी या विभाग बना कर सरकारी भवन निर्माण के आदर्श बनाए जा सकते हंै। नगर विकास योजनाओं व साडा के तहत आए क्षेत्रों के निर्माण मानकों में सुधार करना होगा, न कि हर बार राजनीतिक कारणों से नियमों की धज्जियां उड़ा कर शहरी क्षेत्रों से कुछ इलाकों को बाहर करने का मकसद परवान चढ़ता रहे। हिमाचल ने पिछले तीन दशकों में अपने ऊपर जो कंक्रीट चढ़ाया है, उसके मलबे में तबदील होने की आशंकाओं पर गौर होना चाहिए।
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story