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विश्व टीकाकरण सप्ताह मनाने का उत्साह इस साल चारों ओर दिखाई दे रहा है
अलका आर्य ।
विश्व टीकाकरण सप्ताह मनाने का उत्साह इस साल चारों ओर दिखाई दे रहा है। इसका मुख्य कारण बीते दो वर्षों में सबसे अधिक फोकस कोविड महामारी के संक्रमण की रोकथाम पर था। लेकिन अब बाल टीकाकरण पर फिर से फोकस करने का समय आ गया है। अर्थात टीकाकरण की गति को तेज करना है और जो इससे वंचित रह गए, उन तक पहुंचना है।
इस संदर्भ में यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि अब दुनिया में 25 से अधिक बीमारियों के लिए प्रभावशाली और सुरक्षित टीके उपलब्ध हैं। बीते 20 वर्षों में एक अरब से अधिक बच्चों का टीकाकरण हुआ है। जब से टीका बना है, तब से इसने जितनी जिंदगियां बचाई हैं, उनकी संख्या चिकित्सा नवाचारों के जरिए बचाई गई जिंदगियों से अधिक है, यह महान उपलब्धि कही जा सकती है।
विश्व में 80 प्रतिशत से अधिक बच्चे जीवन रक्षक वैक्सीन लेते हैं, परंतु दो करोड़ 30 लाख ऐसे बच्चे हैं, जो वैक्सीन नहीं लगवा पाते। ऐसे अधिकांश बच्चे संघर्षरत क्षेत्रों, गरीब बस्तियों और दूर-दराज इलाकों में रहते हैं। गौरतलब है कि दुनियाभर में बच्चों की जिंदगी और उनके भविष्य को बचाने व स्वस्थ और सुरक्षित समुदायों के निर्माण के वास्ते टीकाकरण सबसे प्रभावी व किफायती तरीकों में से एक है।
इस साल लोगों को टीकों के महत्व के बारे में बताने के लिए बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली अंतरराष्ट्रीय संस्था यूनिसेफ (यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रंस इमरजेंसी फंड) जो दुनिया के 45 प्रतिशत बच्चों के टीकाकरण के लिए जिम्मेदार है, उसने एक धन्यवाद पत्र जारी किया है। इस धन्यवाद पत्र में टीकों की खोज करने वाले विषाणु विज्ञानियों और इनके निर्माण स्थलों में काम करने वाले कर्मचारियों समेत इनकी ढुलाई में संलग्न लोगों का आभार व्यक्त कर यह संदेश देने की कोशिश की है कि टीकाकरण की इस महायात्रा में हरेक का योगदान महत्वपूर्ण है।
दरअसल टीकाकरण उच्च संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए जरूरी है और ऐसे रोग शिशुओं व किशोरों की जिंदगी को जाखिम में डाल सकते हैं, क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता उस समय तक पूरी विकसित नहीं हुई होती। विश्व टीकाकरण सप्ताह का उद्देश्य विश्वभर में जिन रोगों की टीकाकरण से रोकथाम संभव है, उसके बारे में आम जन को बताना और ऐसे टीकाकरण की दर में वृद्धि करना है। उल्लेखनीय है कि इसका आयोजन वर्ष 2012 से किया जा रहा है और इसकी उपलब्धियां भी दुनिया ने देखी हैं। इस कारण विश्व में टीकाकरण दर में वृद्धि हुई, लेकिन बीते दो वर्षों में कोविड महामारी के कारण टीकाकरण भी काफी हद तक प्रभावित हुआ।
एक अनुमान है कि इस दरम्यान दुनियाभर में एक साल से कम आयु के करीब दो करोड़ 30 लाख बच्चे मूलभूत टीके नहीं लगवा सके। जहां तक भारत का सवाल है, इस संदर्भ में विश्व स्वास्थ्य संगठन व यूनिसेफ के एक अध्ययन (2020-2021) के मुताबिक करीब 32 लाख बच्चे नियमित टीकाकरण सेवाओं के तहत लगने वाले मूलभूत टीके लगवाने से छूट गए। भारत को बाल टीकाकरण का लंबा अनुभव है और उसके पास एक विजन भी है। इसी के मद्देनजर भारत सरकार के स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने मार्च-अप्रैल 2020 में राज्य सरकारों को कोविड महामारी के कड़े प्रोटोकाल का पालन करते हुए टीकाकरण सेवाओं को फिर से शुरू करने बाबत दिशानिर्देश जारी किए। देश में हर साल सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लगभग तीन करोड़ गर्भवती महिलाओं व लगभग इतने ही नवजातों को टीके लगाए जाते हैं।
भारत सरकार ने टीकाकरण की दर को गति देने के लिए 25 दिसंबर 2014 को मिशन इंद्रधनुष नामक महत्वाकांक्षी योजना शुरू की और इसके अंतर्गत टीकाकरण की दर में भी वृद्धि हुई। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि देश में 12-23 माह के बच्चों के पूर्ण टीकाकरण की राष्ट्रीय औसत दर 62 प्रतिशत से बढ़कर 76 प्रतिशत हो गई है। सात फरवरी 2022 को मिशन इंद्रधनुष 4.0 लांच हुआ। इसके तहत लक्ष्य हर गर्भवती महिला व शिशु का टीकाकरण करना है। फोकस ऐसे शिशुओं पर भी है जिन्हें नियमित टीकाकरण के तहत एक भी टीका नहीं लगा है यानी जिन्हें डिप्थीरिया, टेटनेस व काली खंासी वाली वैक्सीन की पहली खुराक भी नहीं दी गई है। ऐसे 'जीरो डोजÓ बच्चों की जान खतरे में पड़ सकती है। ये बच्चे प्राय: वंचित तबकों से आते हैं, जिनमें ग्रामीण घर, सबसे गरीब परिवार, हाशिए पर रहने वाले समूह और कम शिक्षित महिलाएं शमिल हैं।
मिशन इंद्रधनुष 4.0 की प्राथमिकता ऐसे बच्चों की पहचान करना व उनके टीकाकरण को प्राथमिकता देना है। ऐसे बच्चों को सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत सभी टीके लगे, यह सुनिश्चित करना भी लक्ष्य है।
टीकाकरण हर बच्चे का अधिकार है और हर बच्चे तक इसकी पहुंच होनी चाहिए। बाल अधिकार कन्वेंशन इस बात की वकालत करती है कि सभी बच्चों की पर्याप्त स्वास्थ्य सेवाओं तक एक समान पहुंच होनी चाहिए, हर बच्चे के पास वैक्सीन से रोकथाम वाले रोगों से संरक्षण का बुनियादी अधिकार है।
इस सप्ताह के दौरान विभिन्न देशों की सरकारों का फोकस अपने-अपने यहां टीकाकरण की दर को रफ्तार देना है, ताकि दुनिया का कोई भी बच्चा पीछे न छूटे। लांग लाइफ फार आल को अमली जामा पहनाने के लिए शहरी-ग्रामीण, अमीर-गरीब बस्तियों के टीकाकरण की दर में नजर आने वाले फासले को पाटना बहुत जरूरी है। जागरूकता अभियान के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक बेहतर बनाने, निवेश करने, राजनीतिक प्रतिबद्धता, समाजिक विषमता को दूर करने की दिशा में भी प्रयासों को और अधिक तेज करना होगा।
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