सम्पादकीय

सत्ता पर काबिज होने की आरजेडी की क्या है तैयारी ? लालू के बिहार लौटने से राजनीति में उलटफेर के आसार

Shiddhant Shriwas
26 Oct 2021 12:03 PM GMT
सत्ता पर काबिज होने की आरजेडी की क्या है तैयारी ? लालू के बिहार लौटने से राजनीति में उलटफेर के आसार
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तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) आरजेडी के नेता के तौर पर पदस्थापित हो चुके हैं, लेकिन लालू प्रसाद की मौजूदगी से तेजस्वी के लिए पेचीदा राहें आसान हो जाती हैं.

पंकज कुमार आरजेडी (RJD) इन दिनों जश्न में डूबी हुई है. आरजेडी के बड़े नेता लगभग मान चुके हैं कि बिहार में सत्ता में वापसी लगभग तय है और उसे अमली जामा पहनाया जाना बाकी है. यही वजह है कि कल यानि सोमवार को तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने बिहार में हो रहे उपचुनाव के प्रचार में कहा कि परिणाम के बाद आरजेडी का सरकार बनना तय है. आरजेडी तारापुर में जीत लगभग तय मान रही है. आरजेडी को भरोसा है कि अरुण शाह को प्रत्याशी बनाए जाने के बाद वैश्य, यादव और मुस्लिम का गठजोड़ तारापुर में जीत सुनिश्चित कराने वाला है.

इतना ही नहीं तारापुर में आरजेडी दिवंगत नेता मेवालाल चौधरी के परिवार से किसी के मैदान में नहीं उतरने को एक अवसर के रूप में देख रही है और आरजेडी मान चुकी है कि तारापुर में आरजेडी की जीत को रोकने में एनडीए कामयाब नहीं हो सकेगा. आरजेडी का आत्मविश्वास दूसरे विधानसभा सीट कुशेश्वर स्थान के लिए भी पक्का है. इसके लिए मुसहर जाति के नेता को आरजेडी से टिकट दिया जाना बड़ी वजह है. आरजेडी मानती है कि 40 हजार मुसहर मतदाता आरजेडी प्रत्याशी गणेश भारती की जीत को सुनिश्चित करेगा और इस प्रकार आरजेडी की सीटों में दो और इज़ाफा होगा और जेडीयू की सीटें दो कम होंगी.
सत्ता का जादुई आंकड़ा कैसे छूने का सोच रही है आरजेडी
आरजेडी के एक बड़े नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि आरजेडी अपनी जीत की स्क्रिप्ट को तैयार कर चुकी है. आरजेडी के पास फिलहाल 110 एमएलए हैं और एनडीए के पास 125. आरजेडी को भरोसा है कि दो उपचुनाव के परिणाम के बाद एनडीए दो घटकर 123 हो जाएगा वहीं आरजेडी 112. तेजस्वी यादव के करीबी समझे जाने वाले ये नेता कहते हैं कि 6 अन्य विधायकों का समर्थन भी आरजेडी को मिलना तय हो चुका है और ऐसी परिस्थितियों में जीतन राम मांझी का साथ आना खेल को पूरी तरह से महागठबंधन के पक्ष में करने वाला है. इतना ही नहीं मुकेश सहनी की पार्टी भी मौके के इंत़जार में है और उसके तीन विधायक आरजेडी के साथ आने को तैयार हैं. कहा ये जा रहा है कि वीआईपी पार्टी के एक विधायक मुसाफिर पासवान पारस अस्पताल में अब और तब की स्थिति में हैं. वहीं राजू सिंह और मिश्री लाल यादव मंत्री बनने की चाहत में आरजेडी के संपर्क में हैं. ऐसे में वीआईपी पार्टी का एनडीए से मोहभंग लगभग तय माना जा रहा है.
आरजेडी के दूसरे नेता दावा करते हैं कि लालू प्रसाद के बिहार आने के बाद जेडीयू के 6 से सात विधायक इस्तीफा देकर पार्टी बदल सकते हैं जो बिहार में सत्ता परिवर्तन के आसार को सुनिश्चित करने वाला है. ज़ाहिर है सीटिंग एमएलए सत्ताधारी दल से नाता तोड़कर विपक्षी पार्टी का दामन क्यों थामेगा इसको लेकर सवाल पूछने पर नेताजी कहते हैं कि वजह लालू प्रसाद में भरोसा और मंत्रीपद की पक्की गारंटी है. इतना ही नहीं आरजेडी का एक धड़ा मानता है कि कई नेता अब तेजस्वी के उभरते नेतृत्व में भरोसा ज्यादा कर रहे हैं जबकि नीतीश कुमार की बढ़ती उम्र सीमा और जनता पर कमजोर होती पकड़ कई नेताओं को पाला बदलने के लिए सोचने पर मज़बूर कर रहा है.
फिलहाल दो उपचुनाव के परिणाम और जीतनराम मांझी का रुख आरजेडी को सत्ता की चाबी सौंप सकता है. आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी कहते हैं कि उपचुनाव में जीत नाराज छोटे दलों और विधायकों को महागठबंधन की ओर लाएगा और गैरवाजिब तरीके से सत्ता पर काबिज एनडीए सरकार औंधे मुंह गिरेगी इसमें कोई शक नहीं रह गया है.
जीतनराम मांझी के पाला बदलने की गुंजाइश में क्या दम है?
दरअसल लालू प्रसाद ने आरजेडी को सत्ता में वापस लाने के लिए जीतन राम मांझी को कई प्रकार का ऑफर दे चुके हैं. सूत्रों की मानें तो उपमुख्यमंत्री का ऑफर पहले ही दिया गया था लेकिन बात नहीं बनने पर उन्हें फिर से सीएम बनाया जा सकता है. ज़ाहिर है ऐसा कर आरजेडी सत्ता की चाबी अपने हाथों में रखेगी वहीं दलित को सीएम बनाने का सेहरा भी अपने सिर बांधेगी. वैसे बीजेपी की तरफ से भी जीतनराम मांझी को अपने पाले में रखने के लिए कई तरह के प्रयास ज़ारी हैं जिनमें उन्हें राज्यपाल पद दिया जाना भी एक है. हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के एक नेता कहते हैं कि उपचुनाव के परिणाम का इंत़जार करिए आप लोगों को कई सारी नई गतिविधियां सूबे की राज़नीति में होती दिखाई पड़ेंगी जो राजनीति की नई पटकथा लिख रही होंगी.
लेकिन हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के प्रवक्ता दानिश रिज़वान सधे हुए शब्दों में पूरी तरह से एनडीए के साथ होने का दम भरते हैं और कहते हैं कि आरजेडी सहित महागठबंधन सत्ता पर काबिज होने के सपने लगातार देख रहा है और सपने देखने की उन्हें आजादी भी है. खैर राजनीति में औपचारिक बयान और अनौपचारिक बातों में आसामान ज़मीन का फर्क होता है . वैसे भी जीतन राम मांझी कब किस करवट बैठेंगे इसको लेकर राजनीति समझने और करने वाले हतप्रभ भी नहीं होंगे. लेकिन जीतनराम मांझी के कदम से सत्ता में उलटफेर की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है.
माना ये जा रहा है कि चुनाव के परिणाम जेडीयू के पक्ष में नहीं आने पर जीतनराम मांझी का पैतरा बदल सकता है. वहीं पक्ष में आया तो 77 साल के जीतनराम मांझी गर्वनर पद से पुरस्कृत किए जा सकते हैं. ऐसे भी बीजेपी वर्तमान विधानसभा में संख्या के खेल को समझते हुए जीतन राम मांझी ही नहीं बल्कि उनके पुत्र संतोष मांझी पर भी लगातार डोरे डालती रहती है. बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व तक पिता और पुत्र की सीधी पैठ है जो इनके राजनीतिक कद की अहमियत को बखूबी बयां करती है.
लालू के पटना में होने से आरजेडी का खेल आसान
तेजस्वी आरजेडी के नेता के तौर पर पदस्थापित हो चुके हैं लेकिन लालू प्रसाद की मौजूदगी से तेजस्वी के लिए पेचीदा राहें आसान हो जाती हैं. लालू प्रसाद के कहने पर ही छोटे दलों में विश्वास और लालू की देख रेख में बनने वाली सरकार पर भरोसा नाराज दलों और विधायकों का हो सकता है. वैसे लालू फिलहाल अस्वस्थ हैं लेकिन पटना में उनकी मौजूदगी से तेजप्रताप द्वारा लगाए गए आरोपों को निराधार बताने की कोशिश की गई है कि लालू प्रसाद को बंधक बनाया गया है. दूसरे उपचुनाव के बाद राज्य में बदल रही परिस्थितियों में तेजी से फैसले और विपक्षी दलों के नाराज विधायकों और छोटे दलों में गहरा विश्वास पैदा करना आज भी महागठबंधन में लालू प्रसाद द्वारा ही संभव है.ज़ाहिर है लालू प्रसाद की मौजूदगी पटना में सियासी उथल पुथल करा सकती है इसका अंदाजा लालू प्रसाद की राजनीति को नजदीक से समझने वाले बखूबी समझते हैं.
लेकिन राजनीति के जानकार प्रो. अमेरन्द्र कुमार कहते हैं कि लालू राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी जरूर हैं परंतु परिस्थितियां उनके विपरीत है. इसलिए बहुमत जुटाने से लेकर सरकार बनाने में विधानसभा अध्यक्ष और राज्यपाल की भूमिका उनके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए काफी होगा. प्रो अमरेन्द्र कहते हैं कि सत्ता परिवर्तन के लिए डबल इंजन सरकार में मतभेद का होना बेहद जरूरी है वरना वर्तमान परिस्थितियों में आरजेडी के लिए सरकार बनाना आसान नहीं हो सकता है.
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