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गुजरात दंगों के मामले में विशेष जांच दल की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई इस टिप्पणी के बाद तीस्ता सीतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार को गिरफ्तार कर लिया गया कि इन्होंने इन दंगों को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुनियोजित साजिश सिद्ध करने के लिए फर्जी दस्तावेज गढ़ने के साथ झूठे गवाह भी तैयार किए
राजीव सचान।
गुजरात दंगों के मामले में विशेष जांच दल की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गई इस टिप्पणी के बाद तीस्ता सीतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार को गिरफ्तार कर लिया गया कि इन्होंने इन दंगों को तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की सुनियोजित साजिश सिद्ध करने के लिए फर्जी दस्तावेज गढ़ने के साथ झूठे गवाह भी तैयार किए। तीस्ता कथित तौर पर सामाजिक कार्यकर्ता हैं और आरबी श्रीकुमार गुजरात के पुलिस महानिदेशक रह चुके हैं। अहमदाबाद में उनकी गिरफ्तारी पर सुदूर केरल के 79 वर्ष के नंबी नारायण ने प्रसन्नता प्रकट करते हुए कहा कि यह आदमी फर्जी कहानी गढ़ने, किसी मामले को सनसनीखेज बनाने और निर्दोष को दोषी बताने में माहिर है। उन्होंने ऐसा क्यों कहा, यह जानना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है।
वैज्ञानिक नंबी नरायाण इसरो की उस टीम के निदेशक थे, जो क्रायोजेनिक इंजन बनाने का काम कर रही थी। इसलिए कर रही थी, क्योंकि अमेरिका के दबाव में रूस ने भारत को यह इंजन और उसकी तकनीक देने से मना कर दिया था। सोवियत संघ के विघटन से उबर रहा रूस तब आज जैसा शक्तिशाली नहीं था। इसके बाद रूस से बिना तकनीक क्रायोजेनिक इंजन लेने का एक सौदा हुआ। भारत विरोधी किसी ताकत को लगा कि नंबी की टीम इस इंजन को देखकर स्वयं ऐसे इंजन तैयार कर सकती है। उन दिनों श्रीकुमार प्रतिनियुक्ति पर केरल में इंटेलिजेंस ब्यूरो के उप निदेशक थे। उन्होंने केरल पुलिस के उन अधिकारियों को यह सनसनीखेज कहानी बयान की कि नंबी और उनके साथी क्रायोजेनिक इंजन की तकनीक बेचने का षड्यंत्र रच रहे हैं, जो न तो तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणाकरण को पसंद करते थे और न ही उनके करीबी समझे जाने वाले पुलिस अफसर रमन श्रीवास्तव को।
केरल पुलिस ने अक्टूबर 1994 में मालदीव की एक महिला मरियम रशीदा को पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आइएसआइ के एजेंट के तौर पर त्रिवेंद्रम से गिरफ्तार किया और उससे यह कहलवाया कि उसके नंबी से अंतरंग रिश्ते हैं और इन्हीं रिश्तों और पैसे के लालच में वह क्रायोजेनिक इंजन की गोपनीय तकनीक उसे सौंपने को तैयार हैं। कुछ दिनों बाद नंबी, उनके एक सहयोगी शशिकुमारन के साथ कुछ और लोगों को भी गिरफ्तार किया गया। इसी के साथ इसरो जासूसी कांड सबसे बड़ी खबर बन गया। नंबी को देशद्रोही-धोखेबाज बताया जाने लगा। उनका और उनके परिवार वालों का जीना दूभर हो गया। वे जहां भी जाते, उन्हें लोगों के ताने सुनने पड़ते।
केरल पुलिस ने नंबी से पूछताछ के दौरान उनकी कई बार पिटाई भी की। ऐसे वक्त खुद श्रीकुमार भी उपस्थित रहते और नंबी की दयनीय दशा देखकर प्रसन्न होते। उनकी प्रसन्नता का कारण यह था कि एक समय नंबी ने उनके एक रिश्तेदार को इसरो में नौकरी देने से मना कर दिया था। इस इन्कार के बाद वह नंबी को धमकाने उनके आफिस जा पहुंचे थे। इस पर नंबी ने उनसे कहा था कि चुपचाप निकल जाएं, नहीं तो पुलिस बुला लेंगे। श्रीकुमार निकल तो गए, लेकिन यह धमकी देकर कि एक दिन उन्हें पछताना पड़ेगा। कथित इसरो जासूसी कांड ने जब ज्यादा तूल पकड़ा तो उसकी जांच सीबीआइ को सौंपी गई। 1996 में सीबीआइ ने यह रिपोर्ट दी कि जासूसी की यह पूरी कहानी नितांत फर्जी और मनगढ़ंत है। अदालत ने सीबीआइ की रिपोर्ट को सही पाया और मामले को खारिज कर दिया, लेकिन तब तक केरल में वाम मोर्चे की सरकार आ गई थी। उसने इस कथित कांड की फिर से जांच कराने का फैसला लिया। हाई कोर्ट ने इसकी अनुमति दे दी। इसके विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील हुई तो उसने दोबारा जांच कराने की अनुमति नहीं दी।
इसके बाद 1999 में नंबी मानवाधिकार आयोग पहुंचे और अपनी प्रताड़ना के एवज में मुआवजे की मांग की। आयोग ने 2001 में उन्हें दस लाख का मुआवजा देने को कहा। केरल सरकार टालमटोल करती रही। आखिरकार 2012 में केरल हाई कोर्ट ने नंबी को दस लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश जारी करते हुए यह भी कहा कि राज्य सरकार चाहे तो उन पुलिस अफसरों के खिलाफ कार्रवाई करे, जिन्होंने नंबी को झूठे मामले में फंसाया। केरल सरकार इन अफसरों को बचाने में तो जुटी ही, उसने नंबी को मुआवजा भी नहीं दिया।
अपने जीवन का कीमती समय और मान-सम्मान गंवाने वाले नंबी 2017 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सुप्रीम कोर्ट ने सिंतबर 2018 को उनके पक्ष में फैसला सुनाया, उन्हें मुआवजा देने का आदेश जारी किया और केरल सरकार से उन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा, जिन्होंने उन्हें फंसाया था। नंबी ने केवल 22 साल प्रताड़ना ही नहीं झेली, बल्कि उनके साथ जो षड्यंत्र हुआ, उसके चलते इसरो जो कुछ बहुत पहले हासिल कर लेता, उसमें करीब एक-डेढ़ दशक की देरी हुई। यदि अप्रतिम मेधा के धनी नंबी इसरो में बने रहते तो शायद उसके प्रमुख बनकर रिटायर होते। नंबी के साथ जो अन्याय हुआ, उसे मोदी सरकार ने समझा और 2019 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। अब उनके जीवन पर एक फिल्म 'राकेट्री-द नंबी इफेक्ट' रिलीज होने जा रही है। आर माधवन की यह फिल्म यह बताएगी कि नंबी कितने प्रतिभाशाली वैज्ञानिक थे और उनके साथ जो घोर अन्याय हुआ, उसकी उनके साथ-साथ देश को कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी। इसी के साथ हमें यह भी याद रखना चाहिए कि श्रीकुमार जैसे लोग एक गिरोह की तरह काम करते हैं और ऐसे देशघाती गिरोहों पर अभी लगाम नहीं लगी है।
सोर्स- जागरण
Rani Sahu
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