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लखनऊ में अब इस बात का शक किसी को नहीं कि शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) नाराज़ हैं
उत्पल पाठक
लखनऊ में अब इस बात का शक किसी को नहीं कि शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) नाराज़ हैं, नाराज़ तो वे पिछले काफी सालों से हैं लेकिन अब उनकी नाराज़गी खुल कर सामने आ रही है. यह नाराज़गी अब सोशल मीडिया के माध्यम से बाहर आ रही है और उसके बाद के कड़ियों में नई कड़ियां जुड़ रहीं हैं. शिवपाल यादव बीजेपी में कब जा रहे हैं से ज्यादा अब इस बात की चर्चा ज़ोरों पर है कि शिवपाल आखिर क्या करेंगे और कैसे करेंगे? बहरहाल, फिलहाल शिवपाल यादव की नाराज़गी का प्रमुख कारण यह है कि विधानसभा चुनाव से पहले एसपी की सदस्यता लेकर एसपी के टिकट से चुनाव लड़ने के बाद एसपी के 111 विधायकों में से एक होने के बावजूद उन्हें एसपी विधान मंडल दल की बैठक में नहीं बुलाया गया.
अखिलेश (Akhilesh Yadav) से इस बाबत पूछे जाने पर उन्होंने शिवपाल को गठबंधन के दलों के साथ होने वाली बैठक में आने की बात कही. शिवपाल का कहना है कि उनका एसपी (Samajwadi Party) के साथ कोई गठबंधन नहीं हुआ था, और उन्होंने एसपी में शामिल होकर चुनाव लड़ा था. साथ ही वह इस बात पर भी सवालिया निशान लगाते हैं कि यदि अखिलेश उन्हें गठबंधन का हिस्सा मानते थे तो चुनाव से पहले गठबंधन की बैठकों में उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया?
अखिलेश का हाल 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' जैसा हो गया है.
शिवपाल यादव ने हाल ही में एक प्रमुख हिन्दी अखबार को दिए गए एक साक्षात्कार में खुले तौर पर कुछ अन्य महत्वपूर्ण पहलू भी उजागर किए हैं. शिवपाल ने विधानसभा चुनाव से ठीक पहले निकाली गयी रथयात्रा के दौरान प्रदेश भर में स्थानीय नेताओं एवं कार्यकर्ताओं से हुए वार्तालाप के बाद यह पाया कि ज़मीन पर कार्यकर्ताओं का यह मानना है कि एसपी एवं प्रएसपी के एक हो जाने से बीजेपी को आसानी से हराया जा सकता है. बकौल शिवपाल वे जनता की आवाज़ पर एसपी में शामिल हुए और उन्होंने अखिलेश को सर्वसम्मति से अपना नेता मान लिया. लेकिन उनका राजनीतिक उपयोग नहीं किया गया और न ही उन्हें स्टार प्रचारकों में शामिल किया गया और न पार्टी में उन्हें कोई पद दिया गया. बीते विधानसभा चुनाव में शिवपाल यादव की एक तस्वीर वायरल हुई है जिसमें वे अखिलेश के प्रचार वाहन में नेताजी मुलायम सिंह यादव के पीछे खड़े हैं. शिवपाल के चेहरे की भाव भंगिमा और उस तस्वीर का स्वरुप कई दिनों तक चर्चा में था.
शिवपाल को इस बात की भी कसक है कि विपक्ष के नेताओं में सबसे बड़ी जीत पाकर विधानसभा में निर्वाचित होने के बावजूद उनकी उपेक्षा हो रही है और एसपी में उन्हें अपमान के सिवा कुछ नहीं मिला. शिवपाल मानते हैं कि अखिलेश अगर उनकी पार्टी के नेताओं व संगठन का चुनाव में इस्तेमाल करते तो आज सरकार में होते. लेकिन उल्टे उन्होंने शिवपाल के समर्थक नेताओं का अपमान किया. शिवपाल ने इस साक्षात्कार में यह भी कहा है कि "2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को हटाने का अच्छा मौका था, लेकिन अखिलेश का हाल 'विनाश काले विपरीत बुद्धि' जैसा हो गया है."
इस साक्षात्कार में शिवपाल यादव ने वह भी उजागर किया जो अब तक सिर्फ उत्तर प्रदेश के राजनैतिक गलियारों के अलावा कहीं भी प्रचारित नहीं हुआ था. साक्षात्कार में शिवपाल ने बताया कि चुनाव से पहले जब एक साथ होने के बाबत उनकी मुलाक़ात अखिलेश यादव से हुई तो उन्होंने 100 सीटों की मांग की थी लेकिन अखिलेश ने फौरन इस मांग को अस्वीकार कर दिया था. उसके बाद उन्होंने 35 सीटों की सूची दी जहां उनके प्रत्याशी जीतने की स्थिति में थे, लेकिन अखिलेश ने इस मांग को भी अस्वीकार कर दिया, अंत में शिवपाल ने आख़िरी बार 15 सीटों की मांग की लेकिन अखिलेश ने इस मांग को भी अस्वीकार करते हुए उन्हें मात्र एक सीट उनके खुद के लिए दी.
आखिर क्यों खोला यह राज़?
इस तथ्य का गोपनीय पहलू यह है कि शिवपाल यादव ने कई स्रोतों से अपने लिए पहले 36 सीटों का चुनाव किया था जो बाद में घटकर 35 हो गयीं थीं. इनमें से अधिकांश सीटें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की थीं लेकिन कुछ चुनिंदा सीटें पूर्वांचल की थीं. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिवपाल यादव चुनावी रणनीतिकारों, शोधार्थियों एवं पेशेवर चुनाव संचालन करने वाली एजेंसियों के माध्यम से सूचना एकत्रित कर के अपने कार्यकर्ताओं के माध्यम से पुष्टि भी कर रहे थे. इन 35-36 सीटों के अलावा शिवपाल की नज़र प्रदेश भर के चुनावी माहौल पर थी और वे कई बार इन विषयों पर रणनीतिकारों, स्वतंत्र शोधार्थियों एवं राजनीति के जानकारों के साथ लखनऊ से बाहर दिल्ली एवं अन्य महानगरों में बैठक और मुलाकात कर रहे थे. इन मुलाकातों का विवरण सार्वजनिक नहीं था और न ही उनकी यह गतिविधियां बीजेपी से सम्बंधित थीं.
उत्तर प्रदेश में भी शिवपाल के करीबियों के सिवा इस बात की जानकारी उन दिनों किसी को नहीं थी ऐसे में इस गंभीर विषय को साक्षात्कार में खुले तौर पर उजागर करना भी शिवपाल की सोची समझी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है. दूसरी तरफ इस साक्षात्कार के कुछ ही दिन बाद आज लोक सभा चुनाव से ठीक दो साल पहले शिवपाल यादव ने ऐसे "विस्तृत" ट्वीट के लिये ईद और अक्षय तृतीया का दिन भी किसी ख़ास कारण से चुना होगा, यह कह पाना मुश्किल नहीं है. लेकिन इस ट्वीट के जानिब से उनके विचार स्पष्ट हैं.
संगठनात्मक राजनीति के मंजे हुए खिलाड़ी शिवपाल यादव कभी भी अपने पुत्र के राजनैतिक भविष्य को अमली जामा पहनाए बगैर कोई बड़ा कदम उठाना नहीं चाहेंगे, ऐसे में अब सोशल मीडिया पर चल रही इस जुबानी जंग के अंत में क्या होना है की बहस में पड़ने से पहले भविष्य के संकेतों पर नज़र डालना आवश्यक है. शिवपाल प्रएसपी के साथ जाएंगे या सिर्फ व्यक्तिगत रूप से बीजेपी में जायेंगे या फिर वे कांग्रेस और आज़म खान के साथ मिल कर एक नया मोर्चा बनाएंगे. आने वाले कुछ महीनों में इन तीन में से किसी एक संभावना के होने के आसार स्पष्ट हैं और इन तीनों में से किसी भी एक संभावना के होने या किसी चौथी संभावना के भी होने में सबसे ज्यादा नुक्सान अखिलेश यादव को ही होना है, क्यूंकि दूसरी तरफ बीजेपी का खेमा शिवपाल के लिये हाथ पसारे खड़ा है.
बीजेपी और शिवपाल
शिवपाल ने पिछले महीने ही लोहिया जी की जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में लोहिया जी एवं आंबेडकर का हवाला देते हुए समान नागरिक संहिता की वकालत की है और इसके लिये आन्दोलन तक करने का वक्तव्य दिया है. ऐसे में बीजेपी की राह और आसान होती जा रही है. संघ और बीजेपी संगठन इस बात को लेकर एकमत है कि शिवपाल यादव के आने से न सिर्फ पार्टी को मिलने वाले यादव वोटों के मत प्रतिशत में 25-30 प्रतिशत का इज़ाफ़ा होगा, बल्कि कुछ प्रतिशत अन्य समुदायों के वोट भी शिवपाल को पसंद करने वाले स्थानीय नेताओं एवं कार्यकर्ताओं की वजह से बढ़ेंगे.
ऐसे में बीजेपी शिवपाल के सहारे कुछ इलाकों में मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण की चेष्टा भी करेगी. शिवपाल के आने से पश्चिम उत्तर प्रदेश का यादव बाहुल्य इलाका और कानपूर मंडल समेत रूहेलखंड के कुछ इलाकों में भी बीजेपी को सीधी बढ़त मिलेगी. साथ ही बीजेपी के लिए फिलहाल परेशानी का सबब बने पूर्वांचल के गाज़ीपुर आजमगढ़ और जौनपुर जैसे जनपदों की लोकसभा सीटों को मजबूत करने का मौका मिलेगा. शिवपाल पहले से हालिया बीजेपी सरकार के प्रति नरम हैं और बीजेपी के नेतृत्व को भी उन्हें समाजवादी पार्टी में सम्मान न मिलने का बड़ा मलाल है, ऐसे में यह प्रेम जल्द ही किसी रिश्ते की शक्ल अख्तियार करने के रास्ते पर है.
Rani Sahu
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