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राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उत्तर भारत के कई शहर जहां खराब वायु गुणवत्ता से जूझ रहे हैं
एस श्रीनिवासन। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और उत्तर भारत के कई शहर जहां खराब वायु गुणवत्ता से जूझ रहे हैं, तो वहीं दक्षिण में और पूर्वी तट के कुछ इलाकों में भारी बारिश हो रही है। अखबार और टीवी चैनल ईमानदारी से दिन-प्रतिदिन की घटनाओं की रिपोर्ट कर रहे हैं, पर कोई भी दीर्घकालिक समाधान के बारे में बात नहीं कर रहा। क्या इसका यह मतलब है कि लोगों के पास इसको चुपचाप सहने के अलावा कोई विकल्प नहीं है?
दिल्ली में बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों को अंतहीन परेशानी हो रही है, क्योंकि खराब आबोहवा के कारण उनके फेफड़े पूरी तरह से काम नहीं कर रहे। इसी तरह, देश के दक्षिणी हिस्से में कमजोर समूह अचानक आई बारिश और बाढ़ से विस्थापित होकर असंख्य कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं। जिन किसानों से अपेक्षा होती है कि वे लोगों के पेट भरेंगे, वे बुरी तरह प्रभावित हुए हैं, क्योंकि वे असहाय होकर अपनी मेहनत को जाया होते देखने को अभिशप्त हैं। क्या कोई और रास्ता है?
पिछले कुछ दशकों से उत्तर भारत के लोग जानते हैं कि नवंबर में हवा की सेहत बिगड़ने लगती है, जो अगले दो महीनों तक बनी रहती है। मार्च से स्थिति सुधरने लगती है। इसके कई कारण हैं। कुछ प्राकृतिक हैं, पर ज्यादातर मानव-निर्मित। इसी तरह, दक्षिण भारत और पूर्वी तट के किनारे रहने वाले लोग जानते हैं कि जाता हुआ मानसून बरसता है। पर उनकी मुश्किलें साल बीतने के साथ बढ़ती जाती है, क्योंकि वे यह भी जानते हैं कि इन सबके लिए कुसूरवार आंशिक रूप से प्रकृति है, तो व्यापक तौर पर मानव। क्या हम इसे ठीक कर सकते हैं?
दुर्भाग्य से एक समाज के रूप में हम ऐसी सोच से काफी दूर हैं, हालांकि, इस मुद्दे पर सामूहिक प्रयास वास्तव में हमारी जीवन की गुणवत्ता सुधारने में मददगार हो सकते हैं। राजनीतिक वर्ग कभी भी ऐसे मसलों को उठाएगा नहीं, क्योंकि वह धर्म और जातिगत समीकरणों के रंगीन चश्मे से लोगों को देखने में व्यस्त है। विडंबना है कि इन राज्यों के लोग दिल्ली के नागरिकों को कहीं अधिक शक्तिशाली और प्रभावशाली मानते हैं, लेकिन दिल्ली वाले भी इस तरह के मुद्दों पर प्रखर नहीं दिखते।
नवंबर के मध्य में चेन्नई में अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिले। शहर का दिल टी नगर पानी से भर गया। सभी प्रमुख सड़कों पर घुटने तक जलभराव था। लोगों के घरों में पानी घुस गया, जिससे काफी सामान बर्बाद हुए। गैस सिलेंडर, बर्तन और बच्चों की किताबें पानी में तैरती नजर आईं। बारिश के पानी में सीवेज का पानी मिल जाने से चारपाई, गद्दे और इलेक्ट्रॉनिक सामान बेकार हो गए। लोग अपनी कारों को पार्क करने के लिए नजदीकी फ्लाईओवर की ओर भागे। नतीजतन, सभी बड़े फ्लाईओवर रातोंरात कारों से पट गए।
इससे स्मार्ट शहर परियोजना की भी कलई खुल गई। चमकदार सैरगाह और नवनिर्मित पैदल मार्ग बहते पानी में डूब गए। हालांकि, योजनाकारों ने फुटपाथों को पक्का करने के लिए बेहतरीन पत्थरों का इस्तेमाल किया है, पर वे जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था करना भूल गए, जिससे इस पूरी परियोजना पर सवाल उठने लगे हैं। बढ़ते बवाल को भांपते हुए द्रमुक सरकार ने पिछले अन्नाद्रमुक शासन के तहत स्मार्ट सिटी परियोजना में हुए कामकाज की जांच के आदेश दे दिए हैं।
सुखद है कि चेन्नई प्रशासन ने 2016 की बाढ़ से सबक लेते हुए यह सुनिश्चित किया कि शहर के भीतरी तालाब या झीलें और इसके आसपास के इलाकों में बाढ़ न आए। अतिरिक्त पानी को बाहर निकालने की अनवरत कोशिश की गई। मगर इतनी अधिक बारिश हुई कि इनमें से कुछ सावधानियां काम न आ सकीं। मगर नुकसान अपेक्षाकृत कम हुआ। मगर कुड्डालोर और तंजौर जैसे तटीय जिलों में रहने वाले किसानों के लिए वह दुखद समय था, क्योंकि उनकी खड़ी फसलें डूब गईं।
पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में भगवान वेंकटेश्वर के निवास तिरुपति की हालत ज्यादा खराब थी। लोगों ने सोशल मीडिया पर पहाड़ियों से पानी गिरने और भूस्खलन के दृश्य साझा किए। विश्व प्रसिद्ध बालाजी मंदिर के देवता को 'एझुमालयन' या सात पहाड़ियों की चोटी को सुशोभित करने वाला भगवान कहा जाता है। तिरुपति देवस्थानम या मंदिर वाली जगह पर अचानक बारिश से बाढ़ आ गई। मंदिर के मुख्य द्वारों को बंद कर दिया गया और दर्शन रोक दिए गए, क्योंकि पहाड़ियों के बीच बसे इस मंदिर शहर में पानी घुस आया था।
चेन्नई हो, तिरुपति हो या कोई अन्य जगह, विशेषज्ञों ने एक ही बात कही कि शहरों के अनियोजित विस्तार और पुरानी झीलों, जल निकायों और निचले इलाकों में बेलगाम निर्माण-कार्यों ने जल निकासी के पारंपरिक रास्ते बंद कर दिए हैं, जिसके कारण बाढ़ आने लगी है। चेन्नई में सदियों पुरानी जल निकासी व्यवस्था या तो मानसून को झेलने में सक्षम नहीं है या अचानक पानी के बहाव से निपटने के लिए तैयार नहीं है।
तिरुपति में विशेषज्ञों का अब कहना है कि आपदा ने यह जाहिर कर दिया है कि घरों के निर्माण-कार्य में इंसान कितना लालची हो गया है और शहरों की योजना बनाने में सरकारें कितनी विफल हैं। इसके कारण विजयनगर साम्राज्य के राजा कृष्णदेवराय के शासनकाल के ऐतिहासिक तालाब लुप्त हो गए हैं। शहर की जल निकासी की बदहाल व्यवस्था ने बारिश के दौरान स्थिति और खराब कर दी। जबकि, तिरुपति को स्मार्ट सिटी का नाम दिया गया है और इसे देश का चौथा सबसे बड़ा विकासशील शहर माना जाता है।
निस्संदेह, जलवायु परिवर्तन एक कटु सच्चाई है। ग्लासगो में हाल ही संपन्न कोप-26 की बैठक में इसे दोहराया भी गया, जहां तमाम राष्ट्रों ने अपने-अपने यहां पर्यावरण की देखभाल का संकल्प लिया। मगर ऐसा लगता है कि यह चिंता शायद ही जमीनी रूप ले सकी है, क्योंकि स्थानीय निकायों में बहुत कम जागरूकता है, जबकि वे शहरों की देखभाल की प्राथमिक इकाई हैं।
जहां भारी या अचानक बरसात एक वास्तविकता है, वहीं इसके पानी के बेरोकटोक बहाव को सुनिश्चित न कर पाना इंसानी विफलता। मानव जाति के रूप में हमने न केवल धरती का खूब दोहन किया है, बल्कि संसाधनों को (विशेषकर समृद्ध राष्ट्रों ने) इस कदर जमकर लूटा है कि वे संकट के स्तर तक पहुंच गए हैं। अविवेकपूर्ण निर्माण-कार्य और खराब शहरी नियोजन ने संकट को और बढ़ा दिया है। हम किसी पर दोष नहीं दे सकते, क्योंकि दोषी तो हम सब खुद हैं। जाहिर है, सावधान होने का समय अब बीत चुका है, हम तो अब एक गहरे संकट के बीच में फंसे हैं।
Rani Sahu
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