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- हम सब सांड हैं
पता नहीं दुनिया अक्सर सांडों तक आकर ही क्यों रुक जाती है। हिलता हुआ लाल कपड़ा देख कर सांड तो क्या गाय या जिसे हम आदमी कहते हैं, भी सींग मार सकता है। यह बात दीगर है कि आदमी के सींग मुँह खोलने पर ही दिखते हैं। कई बार तो बिना मुँह खोले भी आदमी अपनी ज़ात बता जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सांडों को लाल कपड़ा दिखाना भी ज़रूरी नहीं। वे हिलता हुआ कपड़ा देख कर भी अपना आपा खो बैठते हैं, चाहे वह किसी भी रंग का क्यों न हो। जहां तक आदमी की बात है, वह तो सारी उम्र हिलता ही रहता है। इसीलिए मनुष्य कभी अपने आप में नहीं मिलता। शायद आदमी की इसी नियति को देखते हुए मुनियों ने आत्म-साक्षात्कार के लिए स्थिप्रज्ञता का मंत्र दिया है। जहां तक सांडों की बात है, उन्हें तभी तक क़ाबू किया जा सकता है जब तक देश में लोकतंत्र क़ायम रहे। नहीं तो सांड मुँह उठाए यूक्रेन क्या पूरी दुनिया कहीं भी घुस सकते हैं। इसका अर्थ हुआ कि सांड केवल लोकतंत्र से ही डरते हैं।