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जि़ंदगी में सुविधाएं बढ़ती जा रही हैं लेकिन समस्याएं कम नहीं होती, बिल्कुल उसी तरह जैसे दवाइयां बढ़ती जाती हैं मगर बीमारियां कम नहीं होती। परेशानियों के आकार और प्रकार बढ़ते जा रहे हैं। दुखी करने वाली किसी भी तरह की व्यवस्था को पटरी पर समझने का उचित प्रयास यही है कि अपनी आंखें उस तरफ न ले जाएं, अपने मन को शांत रखने का प्रयास करें या फिर अगर हो सके तो कुछ दिनों के लिए घूमने चले जाएं। वैसे भी हमारे समाज के लोग दीर्घकालीन समाधान की प्रतीक्षा नहीं करते। उनकी यह प्रवृत्ति अभी तक बदली नहीं है। अगर इस आदत को बदलने की कोशिश की गई और गलती से बदल दिया गया तो भविष्य, बदबू भरी मुश्किलों के ढेर जैसा हो सकता है। इसलिए जब भी मौका मिले, कुछ दिनों की छुट्टी कर लेनी चाहिए। गरमी, बरसात, सर्दी या पतझड़ हो, छुट्टी की घोषणा व्हाट्सऐप से भेज देनी चाहिए। थोड़ी परेशानी तो है कि एक बार में केवल पांच लोगों को सूचित कर सकते हैं। इसके लिए एक बंदा या बंदी रख लें ताकि राष्ट्रीय बेरोजगारी भी कुछ कम हो। सामाजिक सहयोग करना चाहें तो शहर में पानी की कमी के दौरान पार्षद के माध्यम से सभी घरों में पानी की एक-एक बोतल भिजवा दें। स्कूल में कम उम्र के विद्यार्थियों की क्लास की छुट्टी कर दें। इससे अध्यापक भी खुश होंगे और बच्चे जल्दी घर पहुंच जाने से अभिभावक भी। शहर में बार-बार जाम लगता हो तो सबसे पहले आपातकालीन बैठक बुलाएं, उसमें भी चाय-पानी-खाने का प्रबंध बढिय़ा करें ताकि विचार विमर्श बेहतर हो।
बैठक में सबसे पहले यह फैसला कर लें कि अगली बैठक कब और कहां होनी है ताकि जिस व्यक्ति ने उस बैठक में न आना हो, योजना बना ले। बैठकों में फालतू नेता को अध्यक्ष जरूर बनाते रहें ताकि अखबारों और सोशल मीडिया में कवरेज अच्छी हो जाए। जऱा जरा सी बात पर छुट्टी कर देने का बड़ा फायदा रहता है। ट्रैफिक कम तो गाडिय़ां कम, यानी जाम कम। बंदे लेट नहीं होंगे बॉस खुश। ड्राइवर्स को भी आराम। रोज़ दबाव सहने वाली, बेचारी सडक़ों और ज़ख्मी गड्ढों को राहत रहेगी। पुलिसवालों को भी थोड़ा आराम मिलेगा। कुल मिलाकर सरकार को खुशी मिलेगी कि सब ठीक चल रहा है। कई बार फौरी राहत ज्यादा उपयोगी नहीं होती, दूर की सोचनी चाहिए। जो सरकार ज्यादा छुट्टियां देती है उसे उतनी ही ज्यादा वोटें मिलती हैं। छुट्टियां सबको बहुत ज्यादा पसंद होती हैं और अचानक मिली छुट्टी बहुत खुशी देती है। छुट्टी होने से लगता है समस्या की ही छुट्टी कर दी गई है, ठीक वैसे ही जैसे बरसात में खराब हुई सडक़ों पर मिट्टी और रोड़े डालकर उनकी मरम्मत निबटा दी जाती है। किसी विशेषज्ञ ने समझाया है कि काम करो या न करो, काम करने का जिक्र ज़रूर करो। इस सन्दर्भ में किसी अनुभवी प्रेस विज्ञप्ति बनाने वाले से प्रभावशाली प्रेस नोट बनवाकर देना चाहिए। यदि छुट्टी घोषित करने से समस्या की छुट्टी न हो पा रही हो तो छुट्टी ले लेनी चाहिए, चाहे इसके लिए झूठा चिकित्सा प्रमाण पत्र लेना और देना पड़े। फिर भी दिक्कत हो तो इलज़ाम लगा देना चाहिए और जांच शुरू करवाने का आवेदन दे देना चाहिए।
प्रभात कुमार
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu
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