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- मौत के रास्ते
Written by जनसत्ता; सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के ताजा आंकड़ों के अनुसार 2016 से 2020 के बीच सड़क पर गड्ढों के कारण हुई दुर्घटनाओं में सालाना लगभग तेईस सौ लोगों की मौत हुई। 2020 में भी सड़कों के गड्ढे डेढ़ हजार जिंदगियां लील गए। सड़क दुर्घटनाओं के लिए आमतौर पर वाहन चालकों को सबसे ज्यादा दोष दिया जाता है। लेकिन घटिया, गड्ढेदार, दोषपूर्ण डिजाइन वाली सड़कें भी दुर्घटनाओं के लिए कम जिम्मेदार नहीं हैं।
कुछ महीने पहले तक केंद्र सरकार सड़कों के विकास के लिए पेट्रोल पर अठारह रुपए और डीजल पर पंद्रह रुपए प्रति लीटर तक उपकर वसूल रही थी। राज्य सरकारें भी वाहन की कीमत का आठ से दस प्रतिशत तक रोड टैक्स लेती हैं। इसके बाद जनता सड़कों के विकास के नाम पर टोल टैक्स, यात्री कर, निगम कर आदि भी चुकाती है। मगर इतने सारे टैक्स देकर भी जनता को सड़कों के नाम पर गड्ढे और मौत मिलना चिंताजनक है।
इन हालात में जरूरी है के सड़कों के विकास के लिए अलग-अलग टैक्सों से जमा हुआ धन सिर्फ और सिर्फ सड़कों के निर्माण और रखरखाव पर खर्च किया जाए। सड़क के रखरखाव की जिम्मेदार एजेंसी या विभाग को गड्ढों के कारण हुई हर मौत पर पीड़ित परिवार को मुआवजा देने को बाध्य किया जाए।
कृषि में लगातार रासायनिक खाद पदार्थों के प्रयोग से खेती योग्य भूमि मरुस्थल मे तब्दील हो रही और मिट्टी की उपजाऊ क्षमता कम होती जा रही है। मृदा वैज्ञानिकों की रिपोर्ट के अनुसार सूखे की स्थिति का बड़ा कारण कृषि योग्य भूमि का औद्योगिक उपयोग, कृषि में पानी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल तथा मवेशियो को चरागाहों में अत्यधिक चराना है। कई आकलनों से पता चला है कि वर्तमान समय में एक चौथाई मृदा सूखे का सामना करेगी, लेकिन हालात के दयनीय अवस्था मे पहुंचने से पूर्व ठोस कदम उठाया जाएं, तो इस खतरे से बचा जा सकता है।