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- बहा जात है पानी
विलास जोशी: मानसून अब अपनी पूरी रौ में है। सावन जाने और भादों आने को है। देश भर में वर्षा की अमृत बूंदें बरस रही हैं। सही मायने में यही समय है इन अमृत बूंदों को सहेजने का। अभी देश की सभी बड़ी-छोटी नदियां वर्षा जल से भरी-पूरी हैं। फिर जल से ही हमारा आज है और कल भी। पृथ्वी पर जल स्वयं अपने आप में 'अमृत' है। जल के बिना हम 'जीवन' की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।
ऋगवेद में बताया गया है कि जल ही औषधि है, जल रोगों का शत्रु है, यही सभी रोगों का नाश करता है। इसीलिए कहते हैं कि 'अजीर्ण होने पर जल दवा है, पच जाने पर जल शक्ति देता है। भोजन के समय जल 'अमृततुल्य' है।' आज भी गांवों में कुछ लोग पीने के पानी के बर्तन के पास 'दीपक' लगाते हैं। कुछ शोधकर्ताओं ने बहुत मेहनत करके पानी पर शोध किए और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि- 'जल यानी जीवन। जल की स्वयं अपनी स्मरण शक्ति होती है। जब हम जल पीते हैं और उस समय जो विचार हमारे मन में चल रहे होते हैं, उसका बहुत गहरा प्रभाव जल और हम पर पड़ता है।'
किसी ने सच कहा है कि 'रिश्ते चाहे कितने ही बुरे क्यों न हों, उन्हें तोड़ना नहीं चाहिए और जल कितना ही गंदा क्यों न हो, अगर वह प्यास नहीं बुझा सकता तो भी यकीनन 'आग' तो बुझा ही सकता है। यानी जल कैसा भी क्यों न हो, उसकी उपयोगिता बनी रहती है। जल की एक बहुत बड़ी विशेषता यह है कि उसमें बाहर से आने वाली हर प्रकार की ऊर्जा के अनुसार परिवर्तन होता रहता है।
शोधकर्ताओं का विचार है कि जब हम जल पीते हैं, उसकी तरफ देखते हैं, उस समय वातावरण में जो ध्वनियां गुंजित होती रहती हैं, उन सबका जल पर प्रभाव पड़ता है, जिसे सूक्ष्मदर्शी से देखा भी जा सकता है। जब-जब हम जल ग्रहण करते हैं और उस समय उसके साथ जैसा बर्ताव करते हैं, जल भी उससे प्रभावित होता है और उसका प्रभाव भी हमारे शरीर पर पड़ता है। अगर हमें कोई अच्छी बात साध्य करनी है, तो उसको ध्यान में रख कर जल का प्याला हाथ में लेकर मन ही मन उस बात को बोल कर जल ग्रहण करने से साध्य पूरा होता है। डाक्टर मासारू इमोटो ने जल पर विविध शोध किए हैं और अब भी कर रहे हैं।
'जल में दिव्य शक्ति होती है'- इसमें कोई संदेह नहीं। हम भारतीय लोग जल के बारे में ऐसी बहुत-सी बातें जानते है, जिन तक अभी शोधकर्ता नहीं पहुंच पाए हैं। जल ग्रहण करने के विषय में एक बात बहुत महत्त्वपूर्ण है कि जब प्यास लगे, तभी जल ग्रहण करना चाहिए। बेवजह जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। कुछ लोगों ने ऊपर बताए तरीके से जल ग्रहण किया, तो उनको चामत्कारिक लाभ देखने को मिले।
कुछ लोग करीब हर छह माह में बीमार हुआ करते थे, उनका बीमार होना थम गया। कुछ लोग 'मानसिक' और शारीरिक रूप से परेशान थे, उनकी दोनों तरह की परेशानियां दूर हो गर्इं। कुछ लोग अम्लता यानी एसीडिटी से परेशान रहते थे, उनकी भी परेशानी दूर हो गई। जल को एक नीति की तरह पीने के प्रभाव के चलते कई लोग अपने आप को ऊर्जावान महसूस करने लगे हैं।
समूचे विश्व के सामने 'जलसंकट' एक भीषण समस्या बना हुआ है। हमारे देश की नदियों में बहता जल हमारा जीव यानी प्राण है। जल अमृत है, उसकी एक-एक बूंद की कीमत समझ कर उसका उपयोग करने की आवश्यकता है। एक दुखद सत्य यह है कि अब भी हमारे देश में जल का बहुत दुरुपयोग हो रहा है। दूसरे, हमारे देश में वर्षा के मौसम में, बादलों से होने वाली 'अमृत वर्षा' का बहुत बड़ा हिस्सा ऐसे ही व्यर्थ बह जाता है, जबकि उसको सही ढंग से सहेज कर उसका संरक्षण करने की नितांत आवश्यकता है।
हमारे देश के महानगरों, बहुत से शहरों, गांवों और छोटे-छोटे कस्बों में हर साल गर्मी के मौसम में जल समस्या भीषण रूप से देखने को मिलती है। छोटे-छोटे गांव और कस्बों में रहने वाली स्त्रियां दो-दो, चार-चार किलोमीटर दूर से जल भर कर अपने सिर पर घड़े रख कर लाती हैं। इससे भी हमें जल की भीषण समस्या का पता चलता है। इसलिए हम जल की एक-एक बूंद की कीमत समझें और उसे सहजने में अपना अमूल्य योगदान दें।
वर्षा का मौसम ही जल संरक्षण ओैर उसे सहेजने के लिए एकदम सही समय है। आज देश को ऐसी योजनाओं की आवश्यकता है, जिनसे वर्षा के मौसम में नदियों से व्यर्थ बह जाने वाले पानी को भी सहेजा जा सके। अगर हम ऐसी योजनाएं और उनके अनुरूप नीतियों को लागू करने में सफल हो जाएं तो यकीनन हमें गर्मी के मौसम में भी जल समस्या का सामना नहीं करना पड़ेगा।