सम्पादकीय

युद्ध एक निरंकुश सनक

Rani Sahu
27 Feb 2022 6:58 PM GMT
युद्ध एक निरंकुश सनक
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यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को तीन दिन बीत चुके हैं

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण को तीन दिन बीत चुके हैं। रविवार को चौथा दिन था। रूसी सेना अभी तक राजधानी कीव पर कब्जा नहीं कर सकी है। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की शनिवार रात्रि तक मुक्त थे और कीव में ही डटे हुए थे। उन्होंने सैन्य मोर्चा भी संभाल रखा था। उनके आह्वान पर यूक्रेन के नागरिक लामबंद हुए हैं और गलियों, मुहल्लों तक पहुंची रूसी सेना पर घातक प्रहार कर रहे हैं। यहां रूस असहाय और असमंजस में लगता है। यदि वह नागरिकों पर सीधा जानलेवा प्रहार करता है, तो रूसी राष्ट्रपति पुतिन पर हमेशा के लिए 'नरसंहार' का कलंक चस्पा हो जाएगा। वैसे रूस ने अभी तक जो किया है, बेशक वह प्रत्यक्ष तौर पर 'नरसंहार' करार नहीं दिया जा सकता, लेकिन पुतिन की सनक और निरंकुशता ने यूक्रेन जैसे खूबसूरत देश का एक बड़ा हिस्सा तबाह कर दिया है। शहर-दर-शहर मलबे के ढेर हैं। रिहायशी इमारतों को ध्वस्त किया गया है। बेशक दावे और स्पष्टीकरण कुछ भी हों। यूक्रेनी आबादी बेघर और लावारिस हो रही है।

असंख्य लोग, जिनमें भारतीय भी शामिल हैं, बंकरों में छिपे हैं। न जाने कब तक जि़ंदगी है? अरबों के संसाधन और भौतिक विकास बर्बाद कर दिए गए हैं। हवाई हमले, बमबारी, मिसाइल और रॉकेट हमले जारी हैं। नुकसान रूस का भी हो रहा है। सैनिक उसके भी मर रहे हैं। बहरहाल काले धुएं के साथ-साथ ज्वालामुखी-से भी भड़क उठे हैं। नए, आधुनिक युग के तानाशाह ने अपनी जिद पूरी की है। लोकतंत्र पर तानाशाही और निरंकुशता ने बर्बर हमले किए हैं। आखिर रूस और पुतिन के हासिल क्या होंगे? उन्हें मलबे की शक्ल में एक भूखंड और तबाही नसीब होंगे। विशेषज्ञ और दार्शनिक, विचारकों का भरोसा था कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद उतना भयावह, विध्वंसक और इनसानी सभ्यता को नष्ट करने वाला नरसंहार फिर कभी नहीं होगा। रूस ने एक हद तक उस भरोसे को तोड़ा है। यूक्रेन की अपनी संप्रभुता और एकता-अखंडता है। जब उससे परमाणु हथियार लिए गए थे, तब उसे संप्रभुता की सुरक्षा की गारंटी रूस ने भी दी थी। यूक्रेन ने वह कार्रवाई अंतरराष्ट्रीय आणविक निरस्त्रीकरण के लिए की थी। अब रूसी राष्ट्रपति पुतिन सोवियत संघ वाली विस्तारवादी वापसी के मंसूबों को संजोए हैं। वह जॉर्जिया को तोड़ चुके हैं और क्रीमिया को छीन कर रूस के साथ मिला चुके हैं।
पुतिन यूक्रेन पर भी कब्जा कर, वहां अमरीकी सोच की सत्ता के बजाय, अपनी 'कठपुतली सरकार' स्थापित करना चाहते हैं। वह एक बार फिर पुराने सोवियत संघ को जीना चाहते हैं। उन्होंने यह एक साक्षात्कार के दौरान कहा था। दरअसल तानाशाह मानसिक तौर पर बेहद डरपोक होता है, लिहाजा पुतिन को भी भय है कि यूक्रेन के जरिए नाटो और पश्चिमी देशों की मिसाइलें रूस की सीमा तक आ सकती हैं! रूस की घेराबंदी की जा सकती है! यूक्रेन सरीखे छोटे देश पर युद्ध थोपना वाकई एक दानवी कृत्य है। किसी भी तरह उसका समर्थन नहीं किया जा सकता। क्या यह युद्ध का कालखंड माना जा सकता है? कल्पना भी नहीं की जा सकती। यह वैश्विक कुटुम्ब, भूमंडलीय, उदारीकरण, आपसी सहयोग-संचार-कारोबार और सभ्यता का दौर है। बेशक कई देशों के पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन उन्होंने उनका कभी यौद्धिक इस्तेमाल नहीं किया है, लिहाजा दुनिया आज भी सुरक्षित है। पाषाणकाल से मध्यकाल तक और आधुनिक युग में युद्ध की विभीषिका बेहद बर्बर और अमानवीय रही है। बर्बादी उसके बाद भी जारी रहती है। मानवीय त्रासदियों का शून्य नहीं भरा जा सकता। अच्छा है कि युद्ध की ऐसी निरंकुश सनक का जन-विरोध रूस के भीतर से ही शुरू हुआ है और लंदन, न्यूयॉर्क, पेरिस, टोक्यो, सिडनी, बर्लिन आदि बड़े शहरों तक पहुंच चुका है। बेशक इन विरोध-प्रदर्शनों से पुतिन की नींद नहीं खुलेगी, लेकिन एक दुनियावी सरोकार तो सामने आएगा। संयुक्त राष्ट्र पर भी दबाव महसूस किया जाएगा। पुतिन की निंदा होगी। बेशक रूस हमारा पुराना दोस्त रहा है, लेकिन निरंकुश सनक और युद्ध-पिपासु सोच का समर्थन भी नहीं किया जा सकता।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

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