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- कश्मीरियत की आवाज
कश्मीर घाटी में अल्पसंख्यकों को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, उसकी जितनी निंदा की जाए कम होगी। ऐसे कायर फिर सिर उठा रहे हैं, जो अब लगभग हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं। किसी भी मकसद में जब हिंसक ताकतें आम निहत्थे लोगों को निशाना बनाने लगती हैं, तब दरअसल वे अपनी बुनियादी हार का ही संकेत देती हैं। बुधवार को आतंकियों की कारस्तानी की चर्चा अभी शुरू ही हुई थी कि उन्होंने श्रीनगर में गुरुवार सुबह ईदगाह इलाके में स्थित एक सरकारी स्कूल में हमला कर दिया। इस हमले में स्कूल के प्रधानाध्यापक और शिक्षक की मौत हो गई है। गैर-मुस्लिमों को निशाना बनाने का मकसद साफ तौर पर समझा जा सकता है। जो लोग देश में बढ़ते सांप्रदायिक तनाव को लेकर चिंतित हैं, उनकी चिंता का स्तर अब और बढ़ गया है। घाटी में लगातार यह साबित करने की कोशिश होती रही है कि दो समुदाय मिलकर साथ नहीं रह सकते। समुदायों के बीच पिछले दिनों से देखे जा रहे सद्भाव पर प्रहार करने की यह नापाक कवायद जिन लोगों की दिमाग की उपज है, वे दरअसल इंसानियत के दुश्मन हैं। वे नहीं चाहते कि कश्मीर में अमन-चैन की बहाली हो। जिस तरह से कश्मीर में राष्ट्रीय महत्व के उत्सवों को मनाने की शुरुआत हुई है, जिस तरह कश्मीर के प्रति बाकी भारत में लगाव बढ़ा है, उससे आतंकियों को अपनी जमीन खिसकती लग रही है।
केडिट बाय हिन्दुस्तन