सम्पादकीय

युवा शक्ति से नव राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना

Rani Sahu
24 April 2023 2:02 PM GMT
युवा शक्ति से नव राष्ट्र निर्माण की परिकल्पना
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देश की युवा शक्ति ही देश के भावी भविष्य, प्रगति व उत्थान का मजबूत स्तंभ होती है, चाहे कोई भी देश हो, यह हर उस देशवासी के संदर्भ में होती है। युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा ही देश और समाज को नए शिखर पर ले जाते हैं। युवा देश का वर्तमान है तो भूतकाल और भविष्य काल के सेतू भी हैं। युवा देश और समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। युवा हमारे राष्ट्र भविष्य हैं तथा जनसंख्या के सबसे गतिशील खंड का प्रतिनिधित्व भी करते हैं। दुर्भाग्यवश आज की नौजवान युवा पीढ़ी पर अगर हम दृष्टिपात करें तो पता लगेगा कि अधिकतर फेसबुक, व्हाट्सएप तथा ऐसे और भी सोशल मीडिया पर चैटिंग करने में व्यस्त तथा मस्त हैं तो कोई अपनी जिंदगी घर-परिवार और कुछ नौकरी की तलाश में तथा कुछ शादी जैसे परिणय सूत्र में बंधने की तलाश में तथा कुछ नशे की लत का सहारा लेकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने की भागदौड़ में व्यस्त हैं। देश तथा समाज के बारे में सोचना तो दूर, ऐसे विषय पर चर्चा परिचर्चा करने के लिए फुर्सत तक नहीं है। ऐसे गंभीर विषय पर सोचना अपना कीमती समय बर्बाद करने जैसा समझते हैं। उनके लिए देश सेवा और समाज सेवा जैसे शब्द कहानी जैसे प्रतीत होते हैं। आखिरकार ऐसा वातावरण और सोच क्यों? पूरे राष्ट्र के लिए एक चिंतनीय विषय है। जहां राष्ट्र निर्माता इस गतिशील खंड को माना जाता है, उनमें राष्ट्रभक्ति के प्रति भावना का ह्रास होना निश्चित ही चिंताजनक और गंभीर विचारणीय विषय है। हमें याद रखना चाहिए कि इतिहास के पृष्ठ युवकों की वीरताओं और कुर्बानियों से भरे पड़े हैं, जहां भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान देने वाले युवाओं में सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव, सुभाष चंद्र बोस, महारानी लक्ष्मी बाई, अशफाक उल्ला खान, सरोजिनी नायडू और ऐसे असंख्य वीरों ने अपनी जवानी को बलिवेदी पर न्यौछावर किया था।
आज बड़ी गंभीर समस्या है, लोग चाहते तो हैं देश में क्रांति लाने के लिए, बुराई का अंत करने के लिए भगत सिंह व आजाद पैदा हों, पर उनके अपने घर में नहीं, पड़ोसी के यहां क्योंकि क्रांति बलिदान मांगती है और मरना कोई नहीं चाहता। इसलिए जो कुछ भी आसपास घटित हो रहा है, उसको बस मूक, बेबस जानवर की तरह सहकर बर्दाश्त किया जा रहा है। भारत विश्व का सबसे युवा देश है और पूरी दुनिया की जनसंख्या का 25 फीसदी भाग युवा शक्ति का ही है। यह भाग देश की दिशा और दशा को पूरी तरह बदलने का सामथ्र्य रखता हैआवश्यकता इस बात की है कि कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्र जैसे शिक्षा, उद्योग-धंधे, सैन्य क्षमता, कृषि एवं राजनीति में युवा अपनी संपूर्ण शक्ति एवं क्षमता से कार्य करें तथा लोकतंत्र के कहे जाने वाले चार स्तंभ जिसमें कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका और मीडिया के क्षेत्र में युवा वर्ग अपनी सेवाएं ईमानदारी और निष्ठा से देकर राष्ट्र को एक अच्छे मुकाम पर पहुंचा सकता है। आज के नौजवानों में यदि कहीं आक्रोश है तो यह निराधार भी नहीं है क्योंकि जिस गति से आज देश में युवाओं की फौज खड़ी हो रही है, इससे उन्हें बेरोजगारी, निर्धनता, गरीबी और कई अन्य मानसिक यातनाओं का दंश झेलना पड़ रहा है। युवाओं के लिए देश में संसाधनों तथा संभावनाओं की कमी नहीं है। यदि कमी है तो युवा शक्ति के लिए उन संसाधनों के सही दोहन के लिए सुनियोजित ढंग से रूपरेखा तैयार करने की मानी जा सकती है। आजकल के युवकों के चेहरों में निराशा, हताशा और व्यथा देखी जा सकती है। यह हताश युवक अपराध के मार्ग पर चल पड़ते हैं और फिर अपने नशे की लत को पूरा करने के लिए अपराध भी कर बैठते हैं। इस तरह अपना जीवन नष्ट कर लेते हैं। देश में हो रही 70 फीसदी आपराधिक गतिविधियों में युवाओं की संलिप्तता रहती है। इस चकाचौंध और भोग-विलास तथा ऐशो-आराम की जिंदगी जीने के लिए कठिन परिश्रम करने के बजाय शॉर्टकट्स खोजते हैं। जब वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं तो उनमें चिड़चिड़ापन आ जाता है। कई बार वे मानसिक तनाव का भी शिकार हो जाते हैं और फिर बड़े से बड़ा अपराध करने से भी गुरेज नहीं करते।
युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत स्वामी विवेकानंद जी ने युवाओं को आह्वान करते हुए कठोपनिषद का एक मंत्र कहा था : ‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य बरा निंबोधित’ अर्थात उठो, जागो और तब तक न रुको जब तक कि अपने लक्ष्य तक न पहुंच जाओ। युवाओं को सही दिशा की ओर ले जाने में उनके माता-पिता व परिवेश का बहुत बड़ा प्रभाव रहता है। युवाओं के प्रथम मार्गदर्शक उनके माता-पिता होते हैं। बहरहाल, बच्चों को शुरू से ही सही संस्कार घर से ही दिए जाने चाहिए ताकि नैतिक तथा शैक्षिक मूल्यों के साथ देशभक्ति की भावना पैदा कर अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के बारे में सही अवधारणा लेकर राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे सकें। दूसरा, युवाओं को सोशल मीडिया, जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप जैसी चीजें भी निकम्मा बना रही हैं और समय बर्बाद करने की ओर धकेल रही हैं। ऐसी चीजों पर भी प्रतिबंध होना चाहिए। युवाओं की ऊर्जा का सही दोहन हो, इसके लिए खेल नीति में सुधार किया जाना चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में युवाओं को वो सुविधाएं सरकार मुहैया नहीं करवा पाती जिससे वे पिछड़ जाते हैं। इसके लिए यदि हर पंचायत स्तर पर एक खेल का मैदान युवाओं को खेलने के लिए बनाया जाए तो नि:संदेह ग्रामीण क्षेत्रों से भी ऐसे खिलाड़ी उभर कर सामने आ सकते हैं जो राज्य, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का प्रतिनिधित्व कर विश्व में चैंपियन बन सकते हैं। युवाओं की शिक्षा का आधार रोजगारोन्मुखी होना चाहिए तथा ऐसे शिक्षण संस्थानों में उचित ढांचागत सुविधाएं भी पर्याप्त होनी चाहिएं, अन्यथा सुविधाओं के अभाव से युवा एवं छात्र के ज्ञान में परिपक्वता नहीं रहती। युवा शक्ति राष्ट्र शक्ति है, इसमें कोई भी दो राय नहीं है। इस वर्ग की भावना को नजरअंदाज करना राष्ट्र को नजरअंदाज करना है। सभी राजनीतिक दलों को चाहिए कि स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में जाकर युवाओं की समस्याओं को सुनकर उचित निदानात्मक उपाय ढूंढे जाएं ताकि उनको पथभ्रष्ट होने से बचाया जा सके।
तिलक सूर्यवंशी
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu

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