सम्पादकीय

वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अरबों-खरबों डॉलर के कर्ज में डूबा सवा दो करोड़ की आबादी वाला देश, भारत करे श्रीलंका की मदद

Rani Sahu
12 July 2022 6:07 PM GMT
वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: अरबों-खरबों डॉलर के कर्ज में डूबा सवा दो करोड़ की आबादी वाला देश, भारत करे श्रीलंका की मदद
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अरबों-खरबों डॉलर के कर्ज में डूबा सवा दो करोड़ की आबादी वाला देश, भारत करे श्रीलंका की मदद


By लोकमत समाचार सम्पादकीय
श्रीलंका में वह हो रहा है, जो हमारे दक्षिण एशिया के किसी भी राष्ट्र में आज तक कभी नहीं हुआ. जनता के डर के मारे राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भागकर कहीं छिप जाना पड़े, ऐसा इस भारतीय उप-महाद्वीप के किसी देश में कभी हुआ है क्या?
हमारे कई पड़ोसी देशों में फौजी तख्तापलट, अंदरूनी बगावत और संवैधानिक संकट के कारण सत्ता परिवर्तन हुए हैं लेकिन श्रीलंका में हजारों लोग राष्ट्रपति भवन में घुस गए और प्रधानमंत्री के निजी निवास को उन्होंने आग के हवाले कर दिया. राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे को अपने इस्तीफों की घोषणा करनी पड़ी.
श्रीलंका की जनता तो जनता, फौज और पुलिस ने भी इन नेताओं का साथ छोड़ दिया. दोनों ने न तो प्रधानमंत्री के जलते हुए घर को बचाने के लिए गोलियां चलाईं और न ही राष्ट्रपति के जूते और चड्डियां हवा में उछालने वालों पर लाठियां बरसाईं. ये हजारों लोग राजधानी कोलंबो और उसके बाहर से भी आकर जुटे थे.
जब श्रीलंका में पेट्रोल का अभाव है और निजी वाहन नहीं चल पा रहे हैं तो ये लोग आए कैसे? ये लोग दर्जनों मील पैदल चलकर राष्ट्रपति भवन पहुंचे हैं. उनके गुस्से का अंदाज सत्ताधारियों को पहले ही हो चुका था. पिछले तीन महीने से श्रीलंका अपूर्व संकट में फंसा हुआ है. महंगाई और बेरोजगारी आसमान छू रही थी. सिर्फ सवा दो करोड़ लोगों का यह देश अरबों-खरबों डॉलर के कर्ज में डूब रहा है.
75 प्रतिशत लोगों को रोजमर्रा का खाना भी पूरा नसीब नहीं हो पा रहा है. जो भाग सकते थे, वे नावों में बैठकर भाग निकले. इस सरकार में राजपक्षे परिवार के पांच सदस्य उच्च पदों पर रहकर पारिवारिक तानाशाही चला रहे थे. ऐसी पारिवारिक तानाशाही किसी भी लोकतांत्रिक देश में सुनने में नहीं आई. उन्होंने बिना व्यापक विचार-विमर्श किए ही कई अत्यंत गंभीर आर्थिक और राजनीतिक फैसले कर डाले. विरोधियों की चेतावनियों पर भी कोई कान नहीं दिए.
इस समय श्रीलंका को जबर्दस्त आर्थिक मदद की जरूरत है. भारत चाहे तो संकट की इस घड़ी में कुछ समय के लिए वह अपने इस पड़ोसी देश की मदद कर सकता है. यह देश भारत के किसी छोटे से प्रांत के बराबर ही है. श्रीलंका की बौद्ध और तमिल जनता भारत के इस अहसान को सदियों तक याद रखेगी.
Rani Sahu

Rani Sahu

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