सम्पादकीय

उत्तराखंड: सड़कों की राह आपदाएं भी

Neha Dani
1 Aug 2022 1:40 AM GMT
उत्तराखंड: सड़कों की राह आपदाएं भी
x
नदी, नालों, खेतों में डालने के बजाय उनका रचनात्मक उपयोग होना चाहिए।

उत्तराखंड के सीमावर्ती इलाकों में सड़कों का काफी विकास हुआ है और काफी चौड़ी-चौड़ी सड़कें बनाई गई हैं। लेकिन पहाड़ की सड़कें आज आपदाओं के संदर्भ में भी बहस के केंद्र में हैं। इस माह चमोली, टिहरी, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़ के कई गांवों में गिरते शिलाखंडों, मलबों, दरकती जमीनों से लोग भयभीत हैं। वे सो नहीं पा रहे हैं। सौ से अधिक ऐसे गांवों के लोग अपने कष्टों का कारण सड़कों को मान रहे हैं और चाहते हैं कि उनके गांव को कहीं और बसा दिया जाए। हालांकि सड़कों के पास रहने का लोभ भी वे नहीं रोक पाते हैं। सड़कें न सिर्फ बेहतर भविष्य की आस जगाती हैं, बल्कि सड़कों के आसपास की जमीन का भाव भी बढ़ जाता है। सड़कें चौड़ी करने के लिए पहाड़ों को ज्यादा गहराई तक काटना होता है और इसके लिए पहाड़ों को विस्फोटों से उड़ाना पड़ता है। ऐसे में सड़क जनित आपदाएं भी बढ़ जाती हैं। जगह-जगह इस तरह के बोर्ड लगाए गए हैं कि सड़कों के इन हिस्सों में रुके रहना भी खतरनाक है। अतीत में जब भी ऐसी घटनाएं हुई हैं, सड़कों पर खड़े वाहनों और लोगों पर ऊपर से मलबा आकर गिरा है और काफी लोगों की मौतें हुई हैं।




अक्सर खबरें आती हैं कि भूस्खलन के कारण तीर्थयात्री या पर्यटक फंस गए हैं। ऐसे में, कई बार तात्कालिक सड़कें खोलने के चलते भी समस्याएं बढ़ जाती हैं। बड़ी-बड़ी मशीनों की मदद से तेजी से गहराई तक पहाड़ों को काटकर तात्कालिक सड़कें तो बना दी जाती हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में जो स्थिर ढाल अस्थिर हो जाते हैं, उन्हें स्थिर करने के उपाय नहीं किए जाते। ऐसी स्थितियों बड़े-बड़े शिलाखंड ऊपर से लुढ़कते रहते हैं। सड़कों के समीप रहने वाले ग्रामीणों का कहना है कि सड़कों पर रोक दीवार अवश्य बनाई जानी चाहिए । दरअसल सड़कों के विकास के साथ इन मुद्दों पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए कि सड़कों से क्या आ रहा है, क्या जा रहा है, इन सड़कों का उद्देश्य क्या है, सड़कें जरूरतें पूरी कर रही हैं या बढ़ा रही हैं। खनिजों के दोहन या बड़ी परियोजनाओं के लिए भारी वाहनों, मशीनों आदि को पहुंचाने के लिए सड़कों का विकास आवश्यक है। राजनीतिक, व्यावसायिक और सामरिक कारणों से भी सड़कों का निर्माण किया जाता है। आज इन सब पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है, खासकर तब, जब सड़कों के रास्ते विभिन्न आपदाएं पहुंच रही हैं। राजमार्ग में तब्दील होने वाली सड़कों को आम तौर पर खुशहाली का वाहक माना जाता है, लेकिन यहां आपदाएं आ रही हैं।


पहाड़ में सड़क बन जाने का मतलब यह नहीं है कि दूरियां कम हो गई हैं। ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जहां दो गांवों के बीच की दूरी आधा किलोमीटर हो, लेकिन मोटर मार्ग से जाने पर वह सात किलोमीटर हो गई हो। पैदल चलना छोड़कर अब लोग सड़क मार्ग बाधित होने पर घंटों सड़क खुलने का इंतजार करते रहते हैं। सड़कों पर पहाड़ के लोगों की निर्भरता बढ़ने से भी उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। कई ऐसे फल, सब्जियां या नकदी फसलें होती हैं, जिन्हें समय पर बेचने पर ही मुनाफा होता है, लेकिन कई-कई दिनों तक सड़क मार्ग बाधित होने के कारण किसानों की वे फसलें बर्बाद हो जाती हैं और नुकसान उठाना पड़ता है। पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट ने आंकड़ों के जरिये भूस्खलन में बढ़ोतरी को सड़कों के विकास से जोड़ा है। वह कहते हैं कि सड़कें कहां और कैसे बनाई जानी चाहिए, इस पर विचार करना जरूरी है।

सड़कों के विकास के बाद पहाड़ में सड़कों के किनारे उन जगहों पर अनियोजित ढंग से बिना पानी निकासी का ध्यान रखे और कई बार बरसाती नाली के मुहानों पर भी मकान, दुकान बनने लगते हैं, जो पहले जान-माल हानि की आशंका के चलते आबादी विहीन थीं। वैज्ञानिकों का मानना है कि आदर्श रूप में पहाड़ी सड़कें आधा कटान, आधा भरान की पद्धति से बननी चाहिए और सड़क निर्माण में निकले मलबे को नदी, नालों, खेतों में डालने के बजाय उनका रचनात्मक उपयोग होना चाहिए।

सोर्स: अमर उजाला


Next Story