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कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश में पार्टी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने कहा है कि वे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में दोगुनी मेहनत करेंगी और तब तक लड़ती रहेंगी जब तक उनकी पार्टी जीतेगी नहीं
रंजीव |
कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश में पार्टी की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा (Priyanka Gandhi Vadra) ने कहा है कि वे उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में दोगुनी मेहनत करेंगी और तब तक लड़ती रहेंगी जब तक उनकी पार्टी जीतेगी नहीं. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Assembly Election) निपटने के करीब 3 महीने बाद लखनऊ में पार्टी की दो दिवसीय बैठक के पहले दिन बुधवार 1 जून को अपने संबोधन में प्रियंका गांधी ने यह बात कही. प्रियंका गांधी के इस बयान ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हलकों को चर्चा के लिए एक और खुराक दे दी है. कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश में दोगुनी मेहनत करने और न जीतने तक लड़ते रहने का प्रियंका का संकल्प चुनाव नतीजों से बुरी तरह पस्त हो चुके यूपी के कांग्रेसियों का हौसला बढ़ाने की कोशिश तो हो सकती है, लेकिन राजनीतिक यथार्थ से फिलहाल तो कोसों दूर है.
ऐसा सोचने की बड़ी वजह यह है कि 2022 के विधानसभा चुनाव होने से करीब दो साल पहले से पार्टी को चंगा करने की कोई कसर उन्होंने नहीं छोड़ी थी. चुनाव से पहले यूपी में जहां भी कोई बड़ी घटना हुई, वहां प्रियंका गांधी ने पहुंचने का प्रयास किया. तमाम जन समस्याओं के मुद्दे पर कांग्रेस ने सड़क पर उतर कर लड़ते हुए दिखने की कोशिश की, जिससे यह धारणा भी बनी कि कांग्रेस ही विपक्षी खेमे की वह पार्टी है जो कम से कम सरकार से सड़क पर उतरकर मोर्चा ले रही है.
यूपी में कांग्रेस की हालत क्षेत्रीय पार्टियों से भी बदतर है
कांग्रेस के बारे में यह धारणा जरूर बनी, लेकिन जब चुनाव नतीजे आए तो कांग्रेस चारों खाने चित्त नजर आई. यूपी के छोटे दलों मसलन सुभासपा, आरएलडी, अपना दल और निषाद पार्टी तक का प्रदर्शन कांग्रेस से कहीं ज्यादा अच्छा रहा. कांग्रेस अपने दम पर करीब चार सौ सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन सिर्फ दो ही सीटों पर जीत सकी. इतना ही नहीं उसका वोट प्रतिशत भी गिरकर महज 2.3 फीसदी रह गया. साढ़े तीन सौ से ज्यादा प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई. यूपी कांग्रेस के अध्यक्ष अजय कुमार सिंह लल्लू खुद भी चुनाव हार गए. यूपी में कांग्रेस का विधानसभा चुनाव अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन रहा. 2017 में समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन कर कांग्रेस ने 7 सीटों पर जीत हासिल की थी और उसे करीब 6.5% वोट मिले थे.
2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को जनता के बीच प्रासंगिक बनाए रखने के लिए प्रियंका गांधी ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी. महिलाओं के लिए 40 प्रतिशत टिकटों के आरक्षण की घोषणा कर प्रियंका गांधी ने यूपी की राजनीति में एक नयापन लाने की कोशिश की थी और उस पर अमल करते हुए पार्टी ने 159 टिकट महिलाओं को दिए भी. इतना ही नहीं पार्टी ने चुनाव घोषणा पत्र को भी समाज के अलग-अलग तबकों के लिए बनाते हुए नयापन लाने की कोशिश की थी. यूपी के लोगों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए प्रियंका गांधी ने 160 रैलियां की थीं और करीब 40 रोड शो. यानी 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी ने मेहनत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. लंबे अरसे बाद पार्टी लगभग चार सौ सीटों पर चुनाव लड़ी और प्रत्याशियों के चयन में भी सावधानी बरती. लेकिन इन सबके बाद भी नतीजा सिफर रहा. न सिर्फ पार्टी की सीटें घटीं बल्कि उसका वोट प्रतिशत भी काफी नीचे आ गया.
ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि जब इतनी मेहनत के बाद भी नतीजे अनुकूल नहीं रहे तो अब प्रियंका और कांग्रेस ऐसा क्या अतिरिक्त कर देगी जो उसे बड़ी जीत का मुंह दिखा सके. हालात ये हैं कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के पास पर्याप्त विधायक न होने के कारण यूपी के बड़े कांग्रेसी चेहरों को दूसरे कांग्रेसी शासित राज्यों से राज्यसभा जाने का रास्ता तलाशना पड़ रहा है. चुनाव संपन्न हुए लगभग 3 महीने हो गए हैं लेकिन अभी तक कांग्रेस का नया प्रदेश अध्यक्ष घोषित नहीं हुआ है. चुनाव नतीजों के बाद अजय कुमार सिंह लल्लू के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देने के बाद से यह पद खाली पड़ा है.
दो साल में कांग्रेस क्या चमत्कार कर देगी
नई विधानसभा के पहले सत्र में सत्ता पक्ष बीजेपी और मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी ही चर्चा के केंद्र में रही, क्योंकि विपक्ष के नाम पर सिर्फ सपा ही बची है. एक विधायक वाली बीएसपी और दो विधायक वाली कांग्रेस विधानसभा में लगभग नगण्य हैं. अगर सदन के बाहर की राजनीति को देखें तो आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों के लिए इसी माह की 23 तारीख को होने वाले उपचुनावों के लिए जहां बीजेपी, सपा और यहां तक कि बीएसपी भी ताना-बाना बुनने में जुटी है, वहीं कांग्रेस के खेमे में न तो अभी तक कोई हलचल और न ही राजनीतिक गलियारों में इन उपचुनावों में कांग्रेस की संभावनाओं को लेकर कोई चर्चा है. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस इन उपचुनावों में लड़ेगी भी या नहीं. अकेले प्रियंका का संकल्प और कांग्रेसियों का हौसला बढ़ाने की उनकी कोशिश पार्टी को विधानसभा चुनाव में कामयाबी नहीं दिला पाई. दरअसल गैर बीजेपी वोटर उसे अपने लिए विकल्प मानने को तैयार ही नहीं हैं. कभी सभी प्रमुख जातियों की प्रतिनिधि पार्टी मानी जाने वाली कांग्रेस के पास आज अपना कोई वोट बैंक तक नहीं बचा है. वोट प्रतिशत लगातार घट रहा है. अगले कुछ महीनों में नगर निकाय के चुनाव होने वाले हैं. जिसमें नगरीय वोटरों के रुख का पता चलेगा.
शहरी वोटरों के बीच बीजेपी के प्रति समर्थन कायम है और जो भी वोटर बीजेपी के साथ नहीं जाना चाहता वह टक्कर देने के स्तर पर समाजवादी पार्टी को अपने विकल्प मानता है. विधानसभा चुनाव में यही पैटर्न दिखा है. लिहाजा कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती है खुद को प्रासंगिक बनाते हुए जनता के मन में विपक्षी पार्टी के रूप में खुद को मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करने की और यह तभी संभव होगा. जब उसे चुनावों में कामयाबी मिले. 2022 का चुनाव कांग्रेस के लिए उस दिशा में पहली बड़ी परीक्षा थी, लेकिन उसके खाते में कोई उपलब्धि नहीं आ पाई. ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि न सिर्फ नगर निकायों के चुनाव बल्कि 2024 में केंद्र से बीजेपी को हटाने का उदयपुर में संकल्प ले चुकी कांग्रेस सबसे ज्यादा लोकसभा सीटों वाले सूबे उत्तर प्रदेश में अगले दो साल में ऐसा क्या चमत्कार दिखाएगी कि जनता विपक्षी दलों में से उसे ही अपने लिए विकल्प मान लेगी. कांग्रेस के लिए यूपी में लंबा रास्ता तय करने की चुनौती है.
उसकी सबसे बड़ी उम्मीद मुस्लिम वोटरों पर लगी हुई है जिन्होंने विधानसभा चुनाव में थोक में समाजवादी पार्टी को वोट दिया, लेकिन इसके बावजूद बीजेपी सरकार बन गई. ऐसे में राजनीतिक हलकों में यह चर्चा है कि केंद्र के चुनाव में यूपी के मुसलमान कांग्रेस को विकल्प मान सकते हैं. लेकिन क्या प्रियंका के संकल्प के मुताबिक कांग्रेस दोगुनी मेहनत कर मुसलमानों के मन में यह भाव लाने में कामयाब होंगी कि बीजेपी के खिलाफ वही सबसे बेहतर विकल्प हैं? कांग्रेस के लिए यह सवाल और ज्यादा अहम इसलिए भी है क्योंकि मुस्लिम समाज के बीच से समाजवादी पार्टी को लेकर हाल में जरूर कई तरह की बयानबाजी हुई है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मुस्लिमों का बड़ा तबका अभी भी समाजवादी पार्टी को ही अपनी प्रतिनिधि पार्टी मानता है.
सोर्स- tv9hindi.com
Rani Sahu
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