सम्पादकीय

बेलगाम हंगामा: यदि विपक्ष अपना रवैया नहीं छोड़ता तो संसद के मानसून सत्र को समय से पहले समाप्त करने पर किया जाए विचार

Triveni
5 Aug 2021 2:30 AM GMT
बेलगाम हंगामा: यदि विपक्ष अपना रवैया नहीं छोड़ता तो संसद के मानसून सत्र को समय से पहले समाप्त करने पर किया जाए विचार
x
संसद का मानसूत्र सत्र जिस तरह विपक्षी दलों के हंगामे का शिकार है, उससे यही लगता है कि विपक्ष की संसद चलाने में कहीं कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है।

भूपेंद्र सिंह| संसद का मानसूत्र सत्र जिस तरह विपक्षी दलों के हंगामे का शिकार है, उससे यही लगता है कि विपक्ष की संसद चलाने में कहीं कोई दिलचस्पी नहीं रह गई है। यदि विपक्ष अपने रवैये का परित्याग करने के लिए तैयार नहीं होता तो फिर उचित यह होगा कि संसद के इस सत्र को समय से पहले समाप्त करने पर विचार किया जाए, क्योंकि हंगामे से बाधित संसद सरकारी धन की बर्बादी का कारण बन रही है। विपक्षी दलों को यह अधिकार नहीं दिया जा सकता कि वे संसद को ठप करके सरकारी धन की बर्बाद करें। इससे विचित्र और कुछ नहीं कि विपक्षी दलों के सांसद संसद में पहले ऐसी परिस्थितियां पैदा करते हैं कि सदन न चलने पाए और जब उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होती है तो वे उस पर हंगामा मचाते हैं। गत दिवस राज्यसभा में ऐसा ही हुआ। जब आसन के समक्ष हंगामा मचाने और तख्तियां लहराने के कारण तृणमूल कांग्रेस के सांसदों को दिन भर के लिए निलंबित किया गया तो उन्होंने सदन के प्रवेश द्वार के पास विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। यह चोरी और सीनाजोरी का शर्मनाक उदाहरण है। इसी तरह का उदाहरण तृणमूल कांग्रेस के ही सांसद शांतनु सेन ने दिया था, जिन्हें आइटी मंत्री अश्विनी वैष्णव के हाथ से कागज छीनकर फाड़ने के कारण संसद के इस सत्र से निलंबित किया गया था। वह अपनी हरकत पर शìमदा होने के बजाय अपने साथ हुए कथित अन्याय का रोना रो रहे थे।

विपक्षी सांसदों के व्यवहार से यही पता चलता है कि उनमें संसद की गरिमा और उसके नियम-कानूनों के प्रति कहीं कोई सम्मान नहीं रह गया है। कायदे से ऐसे सांसदों के खिलाफ और अधिक कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि कोई नजीर कायम हो सके और उस तरह के असंसदीय-अशोभनीय दृश्य देखने को न मिलें, जैसे मानसून सत्र में लोकसभा और राज्यसभा में लगातार देखने को मिल रहे हैं। इससे दयनीय और दुखद और कुछ नहीं हो सकता कि विपक्षी सांसद हंगामा करने और सदन की कार्यवाही बाधित करने के लिए अतिरिक्त श्रम कर रहे हैं। वे किस्म-किस्म के नारे लिखी तख्तियां सदन के भीतर ले जाते हैं और फिर यह कोशिश करते हैं कि वे टीवी कैमरों में कैद हो जाएं। संसद की कार्यवाही के सीधे प्रसारण की शुरुआत करते समय यह सोचा गया था कि इससे संसद सदस्य सदन के भीतर कहीं अधिक गंभीरता और जिम्मेदारी का परिचय देंगे, लेकिन अब ठीक इसके उलट देखने को मिल रहा है। सांसद आम जनता से जुड़े अथवा राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों को सदन में उठाने की बातें तो खूब करते हैं, लेकिन अपनी सारी ऊर्जा नारेबाजी करने या फिर तख्तियां लहराने में खपा देते हैं।


Next Story