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By: divyahimachal
भाषा के सेतु पर संवेदना के वोट का ताल्लुक जोड़ते देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी निश्चित रूप से हिमाचल विधानसभा चुनाव में आत्मीयता का हर रंग भर रहे हैं। बिलासपुर से शुरू हुआ हिमाचली बोलियों का सिलसिला ऊना से चंबा तक पहुंच कर मिठास के भाव को तरोताजा कर गया, तो मणिमहेश का चुंबकीय आकर्षण चौगान के कानों तक प्रतिध्वनित हुआ। इसमें दो राय नहीं कि ऐन चुनाव से पहले किसी भी भारतीय प्रधानमंत्री से कहीं अधिक प्रदेश की यात्राएं करने वाले नरेंद्र मोदी अपना अनूठा रिकार्ड बना चुके हैं। इसी रिकार्ड को पुख्ता करते उद्घाटन एवं शिलान्यास अपनी मधुरवाणी में इत्तिला दे रहे हैं कि प्रधानमंत्री स्वयं अब हिमाचल के चुनाव का चेहरा हैं। वह इसे आत्मीयता से भरा चुनाव बनाने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं और अगर कांगड़ा के सियासी सूखे को मिटाने भी पहुंच जाते हैं, तो यहां भी धाम के व्यंजन और कांगड़ी बोली का मंजन पहाड़ी माणुओं के दिल पर चंदन लगा देगा। इसमें दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री ने छोटे से राज्य के चुनाव को पिछले चुनाव के स्तर से कहीं ऊपर उठा दिया है। यहां केंद्र सरकार का रिपोर्ट कार्ड सुनाया जा रहा है, तो डबल इंजन सरकार का महत्त्व भी समझाया जा रहा है। इसलिए जब वंदे भारत ट्रेन रवाना हो रही है, तो स्वाभाविक रूप से इसके साथ साक्षात तथ्य जुड़ जाते हैं और जब बल्क ड्रर्ग पार्क के शुभमुहूर्त में चुनाव के कान सुनते हैं, तो सारे अंक गणित बदल जाते हैं।
प्रधानमंत्री पहाड़ के पानी और पहाड़ की जवानी के सदुपयोग जिक्र तो करते हैं, लेकिन न तो पानी और न ही जवानी को अन्य राज्यों की तुलना में संभावनाओं का माकूल अक्स मिला है। आज भी हिमाचल के अधिकारों का जो सिलसिला शांता कुमार या प्रेम कुमार धूमल ने शुरू किया था, उन्हें केंद्र का प्रश्रय नहीं मिला है। हाइड्रो पावर पर जनरेशन टैक्स लगाने की अनुमति या पानी का कच्चे माल की तरह मूल्यांकन करने की मांग पूरी नहीं हुई है। आज भी एक अदद आईटी पार्क के लिए प्रदेश तरस गया है। पिछली सरकार में घोषित आई टी पार्क अपनी चयनित यानी गगल में स्थापित नहीं हो पाया है। राष्ट्रीय परियोजनाओं की भागीदारी में विस्थापित हुए भाखड़ा व पौंग बांध के विस्थापितों को कब मरहम लगेगा, कोई आश्वासन नहीं मिला है। पंजाब पुनर्गठन की वित्तीय लेनदारियों में हिमाचल की हिस्सेदारी आज भी बड़े राज्यों के कब्जे में है। इसमें दो राय नहीं कि हिमाचल के अधिकारों की तरफदारी में कभी राज्य की भाजपा सरकार को केंद्र की नरसिंहा राव सरकार ने बिजली परियोजना से मुफ्त बिजली का प्रावधान जोड़ा था, लेकिन अन्य मांगें आज भी कनस्तर में बंद हैं।
सैन्य पृष्ठभूमि के हिमाचल को भर्ती के कोटे से निजात, हिमाचल रेजिमेंट की शुरुआत, आयुध कारखाने की स्थापना और डोगरा रेजिमेंट के मुख्यालय को ऊना स्थानांतरित करने की मांग आज भी अनसुनी है। बेशक हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देकर भाजपा ने सिरमौर की तपती रेत को अपने सौहार्द से सींचा है, लेकिन इससे कठिन परिस्थितियों में रह रहे कांगड़ा के छोटा व बड़ा भंगाल व शिमला के डोडरा क्वार के लोग खुद को इस हक से वंचित पाते रहे हैं। प्रधानमंत्री ने मणिमहेश और श्रीखंड यात्राओं का जिक्र करके हिमाचल के प्रति अपनी आस्था जरूर प्रकट की, लेकिन देवभूमि को उत्तराखंड की तरह शिवधाम सर्किट रोड की आवश्यकता है जिसके अंर्तगत सभी तीर्थ स्थान एक साथ जुड़ जाएं। इसी तरह ऊना को सिख पर्यटन की मंजिल के रूप में विकसित करने की एक पुरानी फाइल केंद्र में पड़ी है। केंद्र के पास हिमाचल की करीब सत्तर फीसदी जमीन, वनभूमि के रूप में तमाम बंदिशों के साथ पड़ी है। पर्यावरणीय संतुलन के इस बोझ ने प्रदेश की आर्थिकी के संतुलन पर ही चोट नहीं लगाई, बल्कि नए रोजगार, विकास तथा मानवीय गतिविधियों के लिए हिमाचल का आकाश छोटा कर दिया है, जबकि केंद्र से किसी तरह की वित्तीय भरपाई नहीं हो पा रही है। हिमाचल को अगर केंद्र पर्यटन राज्य के रूप में आगे बढ़ाना चाहता है, तो कनेक्टिविटी के सारे माध्यम पूरे प्रदेश तक सुदृढ़ करने होंगे। बहरहाल चुनावी घोषणा के साथ अब प्रचार की मुद्रा और सत्ता पक्ष के ठाठ बदल जाएंगे, जबकि अब खरे-खोटे का फर्क यथार्थ के धरातल पर होगा।
Rani Sahu
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