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सम्पादकीय
तुलसी का मानना है कि लंका कांड तो समाप्त हो रहा है, हमारे भीतर का रावण भी समाप्त होना चाहिए
Gulabi Jagat
22 March 2022 8:42 AM GMT
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किसी का चरित्र सुनने से, उसका यशगान करने से उसके गुण हमारे भीतर उतरने लगते हैं
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
किसी का चरित्र सुनने से, उसका यशगान करने से उसके गुण हमारे भीतर उतरने लगते हैं। लंका कांड में श्रीराम रावण को मारकर अयोध्या लौट रहे थे। यहां तुलसीदासजी ने श्रीराम के लिए संबोधन में छंद रूप में लिखा- 'यह रावनारि चरित्र पावन राम पद रतिप्रद सदा।' अर्थात रावण के शत्रु का यह पवित्र करने वाला चरित्र सदा ही श्रीरामजी के चरणों में प्रीति उत्पन्न करने वाला है।
देखिए, तुलसीदासजी ने रामजी के लिए 'रावनारि' लिखा है। मतलब रावण के शत्रु। वे कहना चाहते हैं कि रावण से तो शत्रुता निभाना ही पड़ेगी, क्योंकि वह दुर्गुणों का प्रतीक है। ऐसे शत्रुता निभाने वाले रामजी का चरित्र हमारे लिए चार काम करता है।
1. पवित्र करता है।
2. कामादि विकारों को दूर करता है।
3. ईश्वर के चरणों में प्रीति बढ़ाता है और
4. ईश्वर के स्वरूप का विशेष ज्ञान करवाता है। इसीलिए राम के चरित्र को उन्होंने रावण के प्रति शत्रुता से जोड़ा है। तुलसी कहना चाहते हैं लंका कांड तो समाप्त हो रहा है, हमारे भीतर का रावण भी समाप्त होना चाहिए।
Gulabi Jagat
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