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- वादे पर भरोसे की डोर
मनीष कुमार चौधरी: मानवीय जीवन के समस्त चरणों का आधार विश्वास और वचन है। घर से बाहर तक हर जगह लिखित-अलिखित वचन और प्रतिबद्धता मौजूद होती है और यही वचनबद्धता जीवन को मधुर बनाती है। 'मैं वादा करता हूं..,' इतना भर कह देने से हम खुद को दूसरे के साथ विश्वास की ऐसी डोर में बांध लेते हैं, जो टूट जाए तो यह एक भरोसे के टूटने के समान है। जो इंसान अपने वचनों के प्रति कटिबद्ध नहीं रहता, अपने वादों पर अमल नहीं करता, धीरे-धीरे उसका विश्वास, मूल्य और महत्त्व दूसरों की नजर में कम हो जाता है। वचनबद्धता एक प्रकार का नैतिक, सामाजिक और धार्मिक समझौता है। किसी का चरित्र उसके द्वारा किए गए वादों से नहीं, बल्कि उसके निभाए वादों से भी प्रकट होता है। ज्यादातर मौकों पर हम अपनी आशा के अनुसार वादे करते हैं और अपने डर के अनुसार प्रदर्शन करते हैं। इसलिए वादे तोड़ना पाखंड की श्रेणी में आ जाता है।
वचनबद्धता चाहे खुद से हो, वादों को पूरा करना उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना कि दूसरों से किए गए अपने वादे को पूरा करना। अपने वादों को निभाने के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हम ही हैं। जब हम खुद से एक वादा करते हैं तो अपने जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में काम करने के लिए ऐसा कर रहे होते हैं। अपने आप से किए गए वादों को निभाने की ताकत खोने से दूसरों से किए गए वादों को निभाने के लिए हमारा खुद पर भरोसा कम होने लगता है। अगर हम छोटी-छोटी प्रतिबद्धताओं को नहीं निभा सकते, तो हम बड़ी भी नहीं रख पाएंगे। ऐसे में प्रतिदिन किए जाने वाले 'छोटे' वादों की अनदेखी करना हमारे लिए आसान हो जाएगा।
वादे हमारे संबंध बनाने का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं। चाहे वे संबंध दोस्तों, परिवार, परिचितों, अजनबियों या खुद के साथ हों। वादे करना और पूरा करना हममें से प्रत्येक के जीवन में एक खास भूमिका निभाता है। अगर सत्यनिष्ठा का मतलब सही-गलत को जानना और सच बोलना बनाम झूठ बोलना है तो यह हमारे वचन, प्रतिबद्धताओं और वादों को निभाने के बारे में भी है। वादा एक बड़ा शब्द है। यह या तो कुछ बनाता है या कुछ तोड़ता है।
एक कहानी में बादशाह जाड़े की रात में महल से बाहर निकलता है। जब वह लौटा तो उसने एक बूढ़े सिपाही को देखा जो बहुत कम कपड़ों के साथ महल की रखवाली कर रहा था। बादशाह ने उससे पूछा, 'क्या तुम्हें ठंड नहीं लग रही?' बूढ़े सिपाही ने कहा, 'क्यों नहीं बादशाह, ठंड तो लग रही है, पर मेरे पास गर्म कपड़े नहीं हैं। मैं ठंड सहन करने के लिए बाध्य हूं।' इस पर बादशाह ने कहा, 'मैं अभी महल के अंदर जाता हूं और तुम्हारे लिए गर्म कपड़े भिजवाता हूं।' सिपाही बड़ा खुश हुआ और उसने बादशाह का आभार व्यक्त किया।
लेकिन बादशाह जैसे ही महल के अंदर गया, अपना वादा भूल गया। अगले दिन सुबह उस बूढ़े सिपाही का शव महल के बाहर मिला। शव के पास रखे एक पत्र में लिखा था, 'हे मेरे बादशाह! मैं इन्हीं थोड़े से वस्त्रों के साथ ठंड का मुकाबला करता था, पर गर्म कपड़े भिजवाने का जो वादा आपने मुझसे किया, उसने मेरी हिम्मत तोड़ दी और मैं ठंड का मुकाबला न कर सका।'
वचन या वादा पूरा करना यह सुनिश्चित करता है कि उस वादे के आधार पर दो लोगों के बीच एक मजबूत बंधन बनाया गया है। वादों को निभाने की ताकत से विश्वास और ईमानदारी के मूल्यों की परीक्षा होती है। इसके साथ दूसरे व्यक्ति की भावनाएं जुड़ी होती हैं। एक वादा तोड़ने का मतलब है एक व्यक्ति को चकनाचूर करना। कई बार वचन और नैतिक मांग अलग हो जाती है।
क्षणिक फायदे के लिए वचन तोड़ भी दिए जाते हैं, पर इसके दूरगामी परिणाम अच्छे नहीं होते। संभव है अपनी हानि होने की आशंका देखते हुए भी कोई वचनबद्ध रहे तो भले ही एकाध बार उसे नुकसान उठाना पड़े, मगर भविष्य में उसे इस एक हानि के बदले लाभ के कई अवसर प्राप्त हो सकते हैं। जीवन के किसी भी क्षेत्र में चाहे वह प्यार हो या व्यवसाय, मित्रता हो या अन्य रिश्ता, वचनबद्धता अवश्य होती है। हमारी शक्ति, क्षमता या कार्यकुशलता हमारी वचनबद्धता के समानुपाती होती है।
वादा न निभाना खुद का अनादर करने के समान भी है। यह हमारी छवि, आत्म-सम्मान और आखिर हमारे जीवन को नुकसान पहुंचा सकता है। कभी-कभी परिस्थितिवश वादे निभाना संभव नहीं हो पाता। हालांकि यह किसी को 'बुरा' नहीं बनाता और इस स्थिति में कोई खलनायक भी नहीं बन जाता। हर वादे को पूरा नहीं किया जा सकता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वादे के पीछे की भावनाएं अब नहीं हैं। हमारी कोशिश यही रहनी चाहिए कि जिस वादे को हम पूरा करने का सामर्थ्य नहीं रखते, वह न ही करें तो बेहतर। अब्राहम लिंकन कहते हैं, 'हमें वह वादा नहीं करना चाहिए, जो नहीं पूरा कर सकते हैं। ऐसा न हो कि हमें वह करने के लिए बुलाया जाए जो हम नहीं कर सकते।'