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By: divyahimachal
हिमाचल में ट्राइबल समुदाय में बढ़ोतरी का एक और मील पत्थर राज्यसभा में हाटी शब्द को परिमार्जित कर गया। हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा देने के प्रस्ताव को लोकसभा के बाद राज्यसभा की मंजूरी के बाद अब केवल राष्ट्रपति के हस्ताक्षर का इंतजार है। इस तरह आइंदा हिमाचल के जनजातीय समुदाय में करीब पौने दो लाख की आबादी बढ़ जाएगी, जबकि सिरमौर जिला के चार विधानसभा क्षेत्रों की 154 पंचायतों को इससे संबंधित अधिकार प्राप्त होंगे। एक लंबी सियासी लड़ाई की परिणति में अंतत: सिरमौर के एक बड़े भाग को सामाजिक, सांस्कृतिक व आर्थिक न्याय मिल रहा है। इस फैसले की अंतिम मोहर लगाने के बाद जो परिवर्तन आपेक्षित हैं, उनमें केंद्रीय व राज्य की ट्राइबल नीतियों के लाभ, सरकारी नौकरियों में आरक्षण का स्थान तथा विभिन्न परियोजनाओं में प्राथमिक आधार पर आबंटन का आधार बढ़ जाएगा। जाहिर है इसे उपलब्धि मानने के सबब से कहीं अधिक राजनीतिक जीत के रूप में प्रचारित किया जाएगा। भाजपा की तत्कालीन जयराम सरकार के प्रयास और केंद्र में मोदी सरकार के आशीर्वाद से हाटी समुदाय ने आजादी के बाद अपने अस्तित्व की सदी हासिल की है। अब तक किन्नौर, भरमौर, पांगी और लाहुल-स्पीति आदि क्षेत्रों को जनजातीय आधार पर आंका गया था, जबकि अतीत में शांता कुमार कांगड़ा के गद्दियों को भी ट्राइबल दर्जा मुहैया करवाने के सूत्रधार बने थे। ऐसे में अब हिमाचल का एक खास तपका जनजातीय आधार पर न केवल पहचान, बल्कि राजनीतिक, भौगोलिक व सामाजिक दबदबा कायम कर सकता है। हालांकि भौगोलिक दुरुहता के आधार पर कांगड़ा का छोटा व बड़ा भंगाल तथा शिमला का डोडरा-क्वार क्षेत्र अभी भी अपने पिछड़ेपन के कारण जनजातीय दर्जा पाने की ठोस वजह रखते हैं, लेकिन इनकी मांग बेअसर रही है।
दूसरी ओर सिरमौर जिला लगभग पूरी तरह जनजातीय रंग में रंग गया है। सिरमौर के साथ लगते शिमला जिला के भी कई इलाके कमोबेश ऐसी ही परिस्थितियों से जूझ रहे हैं, तो प्रश्र उस विवेक से रहेगा जो केवल सीमित परिपाटी में ऐसे विषयों का मूल्यांकन करती रही है। हिमाचल में कबायली राजनीति में एक साथ पौने दो लाख लोगों का शामिल होना, निश्चित रूप से राजनीतिक शक्ति में नया धु्रव पैदा करेगा। ऐसे में आगे चलकर लोकसभा सीटों का परिसीमन होता है, तो हिमाचल में कम से कम एक ट्राइबल बढ़ सकती है। दूसरी ओर ट्राइबल सब प्लान के तहत बजटीय आबंटन से कई विकासात्मक तथा सामाजिक उत्थान के कार्य संभव होंगे। हिमाचल में चंबा के बाद सिरमौर जिला का एक इलाका ट्राइबल प्लानिंग से अपनी आर्थिक उन्नति कर सकता है। कहना न होगा कि केवल जनजातीय दर्जा देने मात्र से समाज या क्षेत्र का उत्थान संभव है, बल्कि देखना यह होगा कि केंद्र इस मद में कितना धन आबंटित करता है। जनजातीय क्षेत्र या जनजातीय समुदाय की स्थायी बेहतरी के लिए योजनाओं-परियोजनाओं की प्राथमिकता से ही आर्थिक और सामाजिक आधार पुख्ता होगा, वरना जनजातीय प्रमाणपत्र के आधार पर सरकारी नौकरी का आवेदन आगे चलकर किस्तों में केवल रोजगार के कुछ अवसर ही पैदा करेगा। जनजातीय दर्जे के बीच हिमाचल के सामाजिक उत्थान का परिदृश्य किन्नौर, लाहुल-स्पीति से पांगी-भरमौर तक सुदृढ़ हुआ है। हिमाचल की प्रशासनिक व राजनीतिक परिदृश्य में इन क्षेत्रों व इनसे जुड़े लोगों का प्रभाव बढ़ा है। इतना ही नहीं ट्राइबल समुदाय ने अपनी आर्थिक क्षमता से मनाली, सोलन, धर्मशाला व पालमपुर जैसे शहरों में खास रुतबा बनाया है। अनारक्षित विधानसभा क्षेत्रों में भी जनजातीय उम्मीदवारों को तरजीह मिल रही है, तो इससे सामाजिक समरसता का परिचय मिलता है। बहरहाल सिरमौर के हाटी समुदाय को जनजातीय दर्जा मिलना, आगे चलकर प्रदेश की तरक्की में एक नई हलचल तो जरूर पैदा करेगा।
Rani Sahu
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