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करीब तीन दशक के लंबे इंतजार के बाद खूंखार आतंकवादी और तथाकथित जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन यासीन मलिक को बुधवार को दिल्ली की अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई
अश्वनी कुमार,
करीब तीन दशक के लंबे इंतजार के बाद खूंखार आतंकवादी और तथाकथित जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के चेयरमैन यासीन मलिक को बुधवार को दिल्ली की अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई। इस फैसले से कश्मीरी अलगाववादियों और आतंकवादियों को यह साफ संदेश जाएगा कि नरेंद्र मोदी सरकार आतंकवाद से नरमी से नहीं, बल्कि पूरी सख्ती से निपटने वाली है। जम्मू-कश्मीर का यह दूसरा ऐसा मामला है, जिसमें किसी कश्मीरी आतंकवादी को हत्या के मामले में उम्रकैद दी गई है। इससे पहले एक अन्य कश्मीरी अलगावादी नेता और दुख्तरान-ए-मिलत की मुखिया दरक्शां अंद्राबी के पति डॉ कासिम फक्तू को 2001 में कोर्ट ने कश्मीरी मानवाधिकार कार्यकर्ता हृदयनाथ वांचू के कत्ल के मामले में आखिरी सांस तक जेल में रखने की सजा सुनाई थी। तभी से दोनों पति और पत्नी जेल में सजा भुगत रहे हैं।
यासीन मलिक को अभी 'टेरर फंडिंग केस' यानी आतंकवाद को वित्तीय रूप से पोषित करने के मामले में उम्रकैद सुनाई गई है और कुछ कश्मीरी अलगाववादी ने कोर्ट के आदेश से पहले घाटी के कुछ इलाकों में पथराव की कोशिश की है, लेकिन सुरक्षा एजेंसियों ने जिस तरह से पत्थरबाजों को नियंत्रित किया है, उससे मामला कुल मिलाकर नियंत्रण में है। पाकिस्तानी एजेंसियों और कश्मीरी अलगाववादी नेताओं को अब यह बात साफ समझ आ जानी चाहिए कि यासीन मलिक को अब उसके अपराध की सजा पाने से बचाना मुश्किल है। किसी न किसी बहाने से ये अलगाववादी अब तक बचते आए हैं। ये ऐसे लोग हैं, जो आतंकवाद या आतंकवादी हिंसा की निंदा कभी नहीं करते और इनका मकसद हर हाल में भारत सरकार और भारतीय संगठनों को निशाना बनाना होता है।
यासीन पर अभी भी अदालत में कई और संगीन मुकदमे चल रहे हैं, जिनमें फांसी तक की सजा सुनाई जा सकती है। दसवीं पास और अपने आपको गांधीवादी बताने वाले यासीन मलिक पर 25 जनवरी,1990 को स्क्वॉर्डन लीडर रवि खन्ना समेत वायुसेना के चार अधिकारियों की हत्या का मामला भी अदालत में चल रहा है। इसके अलावा, उस पर आतंकवाद से जुडे़ लगभग 50 मामले अदालत में विचाराधीन हैं।
यासीन मलिक को मालूम था कि इतनी हत्याओं के मामलों में उसका बचना मुश्किल है और उसने अपने आपको भला आदमी दिखाने के लिए गांधीवादी घोषित कर दिया था। आखिर एक आतंकवादी या आतंकवाद की निंदा न करने वाला व्यक्ति कैसे गांधीवादी बन सकता है, यह सवाल आमलोग अक्सर पूछते रहे हैं। पहले की सरकारों की नीतियों का फायदा उठाते हुए ऐसे आतंकवादी अपनी एक सार्वजनिक छवि बना लेते रहे और खुद को बहुत समझदार व्यक्ति के रूप में पेश करने की कोशिश करते रहे हैं।
जब से जम्मू-कश्मीर के उप-राज्यपाल मनोज सिन्हा नेकेंद्रशासित प्रदेश की बागडोर संभाली है, तब से आतंकवादियों और अलगाववादियों की कमर टूट गई है। अधिकतर ऐसे लोग जेल में हैं। हार्डकोर अलगाववादी नेताओं को तो जोधपुर, बठिंडा, तिहाड़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और जम्मू की कोट भलवाल जेलों में भेज दिया गया है। सरकार ने यह तय कर लिया है कि चाहे कुछ भी करना पड़े, लेकिन आतंकवाद के 'इको-सिस्टम' को अब खत्म करना है
उप-राज्यपाल ने एक उच्च स्तरीय स्क्रीनिंग समिति बनाकर भारत विरोधी तत्वों को सरकारी नौकरियों से निकालना शुरू कर दिया है। इनमें से कुछ ऐसे सरकारी कर्मचारी भी हैं, जो पाकिस्तान में हथियार चलाने का प्रशिक्षण लेकर आने के बावजूद वर्षों से सरकारी खजाने से तनख्वाह भी लेते रहे हैं। ऐसे ही लोग पिछले 32 साल से आतंकवाद के मददगार रहे हैं। मलिक को उम्रकैद की सजा मिलने से पहले और उसके बाद कश्मीर घाटी में कुछ छिटपुट घटनाएं जरूर हुई हैं और इनके पीछे भी यही तत्व हैं। अब अलगाववादी ही नहीं, आतंकवादी भी हताश होने लगे हैं। टीवी अभिनेत्री की हत्या में भी उनकी हताशा व कायरता साफ नजर आती है। जाहिर है, आने वाले दिनों में युवाओं को बरगलाया जाएगा। पत्थरबाजी तेज कराने की कोशिश की जाएगी, वे चाहेंगे कि क्रॉस फायरिंग में युवक मारे जाएं और फिर 2010 और 2016 जैसा खूनखराबा हो। साल 2010 की हिंसक घटनाओं में वादी में 112 लोगों की जान गई थी। दरअसल, अप्रैल 2010 में फौजी दावे के मुताबिक सीमावर्ती जिला कुपवाड़ा के मचैल सेक्टर में तीन आतंकवादियों को तब मारा गया था, जब वे सीमा पार कर रहे थे। पर बाद में वे बेकसूर पाए गए। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के तत्कालीन नेता सईद अली शाह गिलानी और मिरवाइज उमर फारूक विरोध प्रदर्शन करा रहे थे।
यही हाल कश्मीरी अलगाववादी नेताओं ने 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के मरने पर किया था। उस समय करीब 120 लोग मारे गए थे, और 15,000 से ज्यादा जख्मी हुए थे। तब पांच फौजी और पुलिस वाले भी शहीद हुए थे और 4,000 जख्मी हुए थे। करीब दो महीने तक घाटी के अधिकतर जिलों में कर्फ्यू रहा था। यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि अलगाववादी लगातार खूनखराबे के पक्ष में हैं।
पर इस बार हालात बदले हुए हैं। केंद्र और जम्मू-कश्मीर सरकार दृढ़ है कि फिर से वैसा होने नहीं दिया जाएगा। सरकार ने तय कर लिया है कि जो भी आतंकी गतिविधियों में लिप्त होगा या आतंकवादियों की मदद करता पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। पिछले एक वर्ष में जम्मू-कश्मीर में आतंकी गतिविधियों में काफी कमी आई है, जिससे पाकिस्तान काफी परेशान है। सीमा पार बैठे अलगाववादियों और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई को लगता है, अगर ऐसा माहौल कश्मीर में रहेगा, तो उनकी सारी साजिशें नाकाम हो जाएंगी। जम्मू-कश्मीर पुलिस के मुखिया दिलबाग सिंह का कहना है कि सीमा पार से होने वाली घुसपैठ में पिछले एक साल में आई कमी और स्थानीय युवकों का आतंकवाद की तरफ न जाना भी शांति का एक संकेत है। शासन-प्रशासन से भी अलगाववादी तत्वों का सफाया काफी उत्साहजनक है। इन तमाम वजहों से यही लगता है कि पाकिस्तान चाहे अब जितनी भी साजिश रच ले, अलगाववादी ताकतों को अब कश्मीर में अपने पैर पसारने का मौका पहले की तरह नहीं मिलने वाला।
सोर्स- Hindustan Opinion
Rani Sahu
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