सम्पादकीय

ताकि महंगाई का दबाव कम हो जाए

Rani Sahu
12 Jun 2022 6:41 PM GMT
ताकि महंगाई का दबाव कम हो जाए
x
आज खुदरा महंगाई का आंकड़ा आने वाला है। यह बताएगा कि मई के महीने में महंगाई बढ़ने की रफ्तार क्या रही

आलोक जोशी,

आज खुदरा महंगाई का आंकड़ा आने वाला है। यह बताएगा कि मई के महीने में महंगाई बढ़ने की रफ्तार क्या रही? जानकारों को उम्मीद है कि इसमें कुछ नरमी दिख सकती है। लेकिन उन्हीं जानकारों का यह भी कहना है कि नरमी का कारण सिर्फ 'बेस इफेक्ट' होगा, यानी पहले से चढ़े दामों के बढ़ने की रफ्तार कुछ कम होती दिख सकती है। इसका मतलब यह कतई नहीं है कि महंगाई से राहत मिलने की कोई उम्मीद है।
यह महंगाई अचानक नहीं बढ़ी। यह बढ़ती हुई दिख भी रही थी और इस बात के आसार भी साफ थे कि यह और बढ़ने वाली है। फिर भी, सरकार और रिजर्व बैंक, दोनों ने समय रहते इसे रोकने की पुरजोर कोशिश क्यों नहीं की? रिजर्व बैंक ने पिछले महीने जब अचानक ब्याज दरें बढ़ाने का एलान किया, तभी यह बात साफ हो गई थी कि यह घबराहट में उठाया गया कदम है। यानी, बैंक को लग रहा है कि महंगाई उसके काबू से बाहर जा चुकी है। इसीलिए उसने मौद्रिक नीति की तयशुदा बैठक तक का इंतजार नहीं किया। और बाद में, जब बैठक का वक्त आया, तब भी बाजार की उम्मीदों से बढ़कर सीधे आधा फीसदी की बढ़त का एलान कर दिया। कुल मिलाकर, पिछले पांच हफ्तों में ब्याज पर पैसा लेना 0.9 प्रतिशत महंगा हो चुका है। रिजर्व बैंक से इस बात के भी साफ संकेत हैं कि ये दरें अभी और बढ़ने वाली हैं।
कारण साफ है। पेट्रोल-डीजल से लेकर खाने के तेल और आटे-दाल तक का भाव हर परिवार को चुभ रहा था। रिजर्व बैंक के ही आंकड़े बताते हैं कि अक्तूबर, 2019 के बाद से महंगाई बढ़ने की दर रिजर्व बैंक के चार फीसदी के लक्ष्य से ऊपर रही है। पिछले 30 महीनों में सिर्फ तीन महीने ऐसे रहे, जब यह आंकड़ा चार प्रतिशत के आसपास रहा। लेकिन शायद रिजर्व बैंक इस दबाव में भी रहा कि महंगाई के चक्कर में कहीं विकास की गाड़ी बेपटरी न हो जाए। इसी चक्कर में अप्रैल, 2019 के बाद उसने कम से कम तीन बार दरें घटाने का फैसला किया।
ब्याज दरें बढ़ाने का असर साफ दिखा। रिजर्व बैंक ने दरें बढ़ाईं और अगले ही दिन तमाम बैंकों के एलान आ गए। इन बैंकों ने अपना ईबीएलआर या एक्सटर्नल बेंचमार्क लेंडिंग रेट बढ़ाने का एलान किया। आईसीआईसीआई बैंक ने यह रेट 8.1 से बढ़ाकर 8.6 प्रतिशत कर दिया, जबकि बैंक ऑफ बड़ौदा और पीएनबी ने बढ़ाकर 7.4 प्रतिशत, बैंक ऑफ इंडिया और सेंट्रल बैंक ने 7.75 प्रतिशत कर दिया। निजी क्षेत्र के छोटे बैंक एयू स्मॉल फाइनेंस ने यह दर अब 10 फीसदी कर दिया है। इसका असर यह होगा कि ज्यादातर फ्लोटिंग रेट वाले कर्जों की ईएमआई बढ़ जाएगी या फिर उन्हें चुकाने की अवधि बढ़ेगी। लेकिन कर्ज जैसी फुर्ती जमा खाते के मामले में कम दिख रही है। कोटक महिंद्रा बैंक ने जरूर अपने बचत खातों पर और एफडी पर ब्याज दरें आधा फीसदी बढ़ाने का एलान किया है, लेकिन इसका फायदा उन बचत खातों को होगा, जिनमें 50 लाख रुपये से ज्यादा की रकम रखी होगी।
अब छोटे-बड़े व्यापारियों से लेकर घर और कार तक के लोन लेने वालों पर ईएमआई की मार पड़ने वाली है। साथ में उनको बाजार की महंगाई भी झेलनी है। कच्चे तेल के दामों का असर कुछ हद तक कम हुआ था, लेकिन अब खबर है कि रूस ने सस्ते दामों पर और आपूर्ति करने से इनकार कर दिया है। उधर बड़ी एफएमसीजी कंपनियों का कहना है कि दाम बढ़ाने के बजाय पैकेट का आकार छोटा करने का नुस्खा अब और नहीं चल पाएगा। ऐसे में, या तो दाम बढ़ाए जाएं या कच्चे माल की महंगाई का दबाव कंपनियां खुद झेलें। यह भी हो सकता है कि छोटे पैकेट का हर्जाना बड़े पैकेट खरीदने वालों से वसूला जाए। आटे-दाल का भाव कहां रहेगा, यह कहना भी मुश्किल है, क्योंकि इस बार गेहूं की सरकारी खरीद में तारीख बढ़ाने के बावजूद 53 प्रतिशत की गिरावट आई है।
ऐसे में, सबसे बड़ा सवाल यही है कि ऐसा कब तक चलेगा? इससे निपटने के लिए रिजर्व बैंक कितनी ब्याज दरें बढ़ाएगा? और बाजार में लेन-देन बना रहे, यह कौन सुनिश्चित करेगा और कैसे? सब कुछ रिजर्व बैंक के भरोसे रहेगा या सरकार भी अपनी तरफ से कुछ कदम उठाएगी, ताकि विकास की रफ्तार तेज हो सके और महंगाई का दबाव कुछ कम महसूस हो?
हालांकि, रिजर्व बैंक साफ कर चुका है कि कम-से-कम तीन तिमाही तक महंगाई काबू में नहीं आने वाली है। उसके हिसाब से अप्रैल से जून तक 7.5 प्रतिशत, जुलाई से सितंबर में 7.4 प्रतिशत और अक्तूबर-दिसंबर में 6.2 प्रतिशत रहने के बाद ही जनवरी से मार्च के बीच खुदरा महंगाई का आंकड़ा 5.8 प्रतिशत पर पहुंच सकता है। यह तस्वीर भी चिंताजनक है, लेकिन यह और खौफनाक हो जाती है, जब आप याद करें कि अभी फरवरी में रिजर्व बैंक ने बताया था कि चालू वित्त वर्ष में महंगाई दर 4.5 प्रतिशत रहने वाली है। उसके कुछ ही समय बाद वह हड़बड़ी में दरें बढ़ाता दिखा।
रिजर्व बैंक जिस कानून के तहत चलता है, उसमें यह प्रावधान है कि अगर लगातार तीन तिमाही तक महंगाई काबू के बाहर रहे, तो उसको बाकायदा इस पर एक रिपोर्ट लिखकर सरकार को देनी होती है कि ऐसा क्यों हुआ, इससे निपटने के लिए क्या किया जा रहा है और हालात कब तक काबू में आने की उम्मीद है। यह काम दिसंबर 2020 में हो जाना चाहिए था, लेकिन नहीं हुआ। क्यों नहीं हुआ, इसके लिए रिजर्व बैंक और सरकार, दोनों ही जवाबदेह हैं। लेकिन नहीं हुआ, इसका नतीजा हमारे सामने है। और अब समस्या काफी विकट हो चुकी है। रिजर्व बैंक के साथ-साथ सरकार को भी अपनी कोशिश तेज करनी होगी। पेट्रोल-डीजल पर एक्साइज ड्यूटी घटाने में जो हीलाहवाली उसने की, वह भी दिखाती है कि सरकार इस मोर्चे पर गंभीर नहीं थी या फिर उसे भी एहसास नहीं था कि महंगाई कितनी बड़ी मुसीबत बनने वाली है। अब इसे संभालने के साथ-साथ विकास को रफ्तार देने और उपभोक्ताओं को भरोसा देने का काम बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है। चूंकि समस्या सिर्फ बाजार में मांग की कमी तक सीमित नहीं है। तमाम चीजों की आपूर्ति भी एक बड़ी समस्या बनी हुई है और बाकी दुनिया का हाल देखें, तो यह समस्या जल्दी खत्म होती भी नहीं दिख रही।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
सोर्स- Hindustan Opinion Column


Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story