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अपने अतिशयोक्तिपूर्ण लहजे के बावजूद, व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के उदय पर द गार् जर्नलिस्ट ल्यूक हार्डिंग (Luke Harding) का वीडियो कुछ दिलचस्प तथ्य पेश करता है
के वी रमेश |
Russia Ukraine War: अपने अतिशयोक्तिपूर्ण लहजे के बावजूद, व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के उदय पर द गार् जर्नलिस्ट ल्यूक हार्डिंग (Luke Harding) का वीडियो कुछ दिलचस्प तथ्य पेश करता है- साधारण परिवार में पुतिन का जन्म, औसत दर्जे का उनका अकादमिक करियर, केजीबी में कुछ ख़ास करियर नहीं, खुद को बचाते हुए लाभ की स्थिति में पैंतरेबाज़ी करने की उनकी क्षमता और 1990 के दशक में रूस में व्याप्त अराजकता के माहौल में बड़ी जल्दी सफलता हासिल करना. यही है पुतिन का उल्लेखनीय करियर, जो किसी बेहद प्रतिभाशाली व्यक्ति का नहीं है. यह पूरी तरह से किसी विचारधारा से रहित है, जिसने महान व्यक्तिगत महिमा का सपना देखा और जिसे दूसरों पर और दूसरों की कड़ी मेहनत से हासिल किया.
सोवियत संघ के पतन के साथ पुतिन का प्रभाव बढ़ा
यूनिवर्सिटी एजुकेशन के तुरंत बाद पुतिन ने केजीबी (KGB) की भयावह दुनिया में प्रवेश किया, जाहिर तौर पर उनका सपना यही था. इसी दौरान सोवियत संघ के पतन का दौर शुरू हुआ और यूनिवर्सिटी में उनके मेंटर रहे अनातोली सोबचक (Anatoly Sobchak) सेंट पीटर्सबर्ग (पहले लेनिनग्राद) के मेयर बने. तब युवा केजीबी कर्नल पुतिन उनका विश्वास जीतने और उनके करीब आने में कामयाब रहे. इसका पुरस्कार उन्हें मिला और वे मेयर के विदेश मामलों के सलाहकार बन गए. यहां से उनका प्रभाव आश्चर्यजनक तौर पर बढ़ने लगा और 2009 में पुतिन क्रेमलिन में शासन की बागडोर संभालने लगे. उन्हें जल्द ही एहसास हो गया कि पॉलिटिक्स ही उनके लिए विकल्प है जो वे हमेशा से चाहते थे, और जल्द ही उन्होंने व्लादिमीर ज़िरिनोवस्की (Vladimir Zhirinovsky) के नेतृत्व में दक्षिणपंथियों की बढ़ती शक्ति और गेन्नेडी ज़ुगानोव (Gennady Zyuganov) के तहत वामपंथियों को हाशिए पर ला दिया, ताकि डूमा (Duma) पर हावी होते हुए खुद को आजीवन राष्ट्रपति पद पर कायम रखने के लिए संविधान में फेरबदल किया जा सके.
क्या नाजियों की तर्ज पर काम कर रहे हैं पुतिन?
रेड स्क्वायर पर दिए गए पुतिन के भाषण को समझने के लिए ब्रीफ बैकग्राउंड जरूरी है. स्टालिन (Stalin) के साम्यवादी शासन के पूर्ण विनाश पर आमादा नाजी जर्मनी के खिलाफ सोवियत संघ के अस्तित्व की लड़ाई से अपने युद्ध की तुलना करना, रूसियों के महान बलिदानों को अविश्वसनीय तरीके से हड़पने जैसा था. हालांकि द्वितीय विश्व युद्ध (World War II) के दौरान ऐसे कई काम हुए. हिटलर के ऑपरेशन बारब्रोसा (Hitlers Operation Barbarossa) ने सभी कम्युनिस्ट कैडरों को मारने की कोशिश की, जर्मन जनता के लिए सोवियत संघ के बड़े इलाके को लेबेन्स्राम (lebensraum) यानि लिविंग रूम के तौर पर जीत लिया और रूसी किसानों और मजदूर वर्ग को गुलाम बना लिया. ये सभी काम आर्य नस्लीय श्रेष्ठता में भावनात्मक यकीन के आधार पर हुए.
इधर यूक्रेन में पुतिन का वर्तमान युद्ध, जिसमें स्कूलों और अस्पतालों पर बमबारी, यूक्रेनी ग्रामीण इलाकों में बख़्तरबंद गाड़ियों की उपस्थिति और हवाई हमले हिटलर के ब्लिट्जक्रेग (Blitzkrieg) की याद दिलाते हैं, क्योंकि उसके पैंजर (Panzer) डिवीजनों ने बेरहमी से यूक्रेनी गांवों को जला दिया और सोवियत संघ को दुनिया के नक्शे से मिटा देने का संकल्प लिया. संभव है कि पुतिन ने वह हासिल नहीं किया हो जो उन्होंने निर्धारित किया था, मुख्य रूप से हथियारों की पश्चिमी आपूर्ति द्वारा निर्मित यूक्रेनी प्रतिरोध के कारण. लेकिन 80 साल पहले नस्लवादी नाजियों ने जिस धरती का बुरा हाल किया, वही हाल आज पुतिन की उन्मादी जंग से हो रहा है.
रूसी युवाओं को पुरानी पीड़ा का एहसास नहीं
दूसरे विश्व युद्ध का अंत 77 साल पहले हुआ था. रूसियों की दो पीढ़ियों को यह नहीं पता है कि उनके माता-पिता और दादा-दादी किस पीड़ा से गुज़रे और लेनिनग्राद (Leningrad), स्टैलिनग्राद (Stalingrad) और मॉस्को (Moscow) के द्वार पर हिटलर की शक्तिशाली सेनाओं को रोकने के लिए उन्होंने कठोर बलिदान दिए. इसी बलिदान की बदौलत हिटलर की सेना को वापस जर्मनी जाना पड़ा और अंत में नाजी जानवर को उसी की मांद में मार डाला गया. शायद उनमें से अधिकतर युद्ध के बारे में फिल्मों और किताबों के माध्यम से जानते हैं, जैसा कि भारतीय बच्चे सुनियोजित पाठ्यपुस्तकों के माध्यम से स्वतंत्रता संग्राम के बारे में जानते हैं.
पश्चिम देशों पर पूरी तरह से दोष लगाने का पुतिन का प्रयास आम रूसी नागरिकों, खास तौर से युवाओं को पसंद आएगा. उनका लगातार यह कहना कि पश्चिम ने 2015 के मिन्स्क समझौते (Minsk accord) का पालन नहीं किया और जनवरी की वार्ता में पश्चिम का कठोर रुख सभी रूसी जनता के दिलो-दिमाग में कायम है.
वर्ल्ड वॉर II पर बनी फिल्मों को क्यों प्रोमोट किया जा रहा है?
पश्चिमी प्रतिबंध केवल पुतिन के उस मनपसंद सिद्धांत की पुष्टि करते हैं कि पश्चिम रूस को पसंद नहीं करता है, नाटो मिसाइलों को रूसी क्षेत्र के करीब ले जा रहा है और इसे टुकड़े-टुकड़े करने की योजना बना रहा है. 2014 में क्राइमिया के कब्जे के बाद से, पुतिन सोवियत युद्ध के इतिहास में कड़ी मेहनत कर रहे हैं और युवाओं में नए राष्ट्रवादी गौरव के बीज बोने के लिए द्वितीय विश्व युद्ध की दर्जनों फिल्मों को प्रोत्साहित कर रहे हैं. इतिहास की उनकी समझ उलझी हुई है और रूसी संस्कृति और महानता के बारे में अस्पष्ट दावों से भरी हुई है, जिसे उन्होंने क्रेमलिन द्वारा पिछली गर्मियों में प्रकाशित एक मनोरंजक निबंध में रखा था. उस निबंध में यूक्रेन को सोवियत संघ का अविभाजित पार्ट बताया गया और 1992 में इसके अलग होने पर खेद जताते हुए उन्होंने भारत में कई लोगों की अखंड भारत की कहानी के समान स्लाव जनता को फिर से एकजुट करने की कसम खाई.
पश्चिमी देशों की कार्रवाई पुतिन के हित में
इसके अलावा डोनबास (Donbas) में रूसी जनता को रूसी मुख्य भूमि के साथ एकजुट करने का उनका सपना लगभग फल-फूल रहा है. दो बड़े रूसी बहुल यूक्रेनी प्रांत डोनेट्स्क (Donetsk) और लुगांस्क (Lugansk) अब रूसी कब्जे में हैं. क्राइमिया (Crimea) पहले से ही रूसी हाथों में था, मारियुपोल (Mariupol) की विजय से पुतिन को क्राइमिया के साथ भूमि संपर्क बनाने में मदद मिलेगी और यूक्रेन आज़ोव सागर (Sea of Azov) तक पहुंच से वंचित हो जाएगा. सौभाग्य से पुतिन के पश्चिमी दुश्मन किसी और की मदद करते हुए खुद को नुकसान पहुंचा रहे हैं. शांति वार्ता की जगह युद्ध का चयन, इस्तांबुल में शांति वार्ता को जानबूझकर नाकाम करना, यूक्रेन को हथियारों की सप्लाई और ज़ेलेंस्की को शेर बता कर उनकी प्रशंसा और धमकी देने वाले इंसान के तौर पर पुतिन का चित्रण प्रदर्शन क्रेमलिन के सबसे मजबूत व्यक्ति के लिए बेहद उपयोगी घटनाक्रम हैं.
क्या लंबे युद्ध से पुतिन को लाभ होगा?
पुतिन रूसी नागरिकों की सहानुभूति और समर्थन हासिल करने के लिए उनके देश के प्रति पश्चिमी विरोध का इस्तेमाल कर सकते हैं. और युद्ध जितना लंबा चलेगा, पुतिन को उतना ही अधिक लाभ होगा. पश्चिमी प्रतिबंध विफल रहे हैं. चार यूरोपीय देशों ने रूस के खिलाफ यूरोपीय संघ (European Union) के ऊर्जा प्रतिबंधों के खिलाफ खुले तौर पर विद्रोह किया है और घोषणा की है कि वे रूसी सप्लाई के बिना खुद को बनाए नहीं रख सकते हैं. हो सकता है कि पुतिन ने डॉलर को खतरे में डालकर मौद्रिक युद्ध (monetary war) भी जीत लिया हो. ब्याज दर को 20 प्रतिशत तक बढ़ाने के रूसी केंद्रीय बैंक के आत्मघाती फैसले ने डॉलर के मुकाबले रूबल को 180 से 70 पर ला दिया है. तेल, गैस और कोयले की बढ़ती कीमतों से रूस को काफी फायदा हुआ है. किसी भी अन्य देश की इकोनॉमी जिसकी विदेशी बैंकों में जमा राशि 300 बिलियन डॉलर हो ध्वस्त हो जाती. लेकिन रूस बच गया है और फल-फूल रहा है. पिछले साल एनर्जी सेल्स से इसका राजस्व रिकॉर्ड $360 बिलियन रहा और इसका करंट अकाउंट सरप्लस सोवियत संघ के पतन के बाद से सबसे अधिक है.
पुतिन युद्धविराम की घोषणा करते तो अच्छा होता
दूसरे शब्दों में, पुतिन ने वह हासिल कर लिया है जो उन्होंने करने के लिए निर्धारित किया. लेकिन वे और क्या चाहते हैं? अगर वह रेड स्क्वायर पर मंच से युद्ध विराम की घोषणा करते तो बहुत अच्छा होता. उन्होंने ऐसा नहीं किया. क्या यह इसलिए क्योंकि बहुत से लोगों ने अनुमान लगाया था कि वे ऐसा करेंगे और इसलिए उन्होंने महज मनोरंजन के लिए ऐसा नहीं किया. हालांकि इसमें कोई शक नहीं कि उनके जीत की कीमत बड़ी है या शायद यूक्रेनी भूमि पर कब्ज़ा करने की उनकी भूख बढ़ी है? लेकिन पुतिन इंसानी विचारधारा से दूर रोबोट जैसे हैं.
ऐसे में राष्ट्रवादी उत्साह काफूर होने लगता है
युद्ध करना एक एडिक्टिव ड्रग है. प्रारंभिक जीत विजेता को और अधिक पाने के लिए उकसाती है. निर्णय पर खून की प्यास हावी होने लगती है. और किसी भी मामले में युद्ध-भड़काना अपने आप को अनिश्चित स्थिति में धकेलने जैसा है. आप इससे बच नहीं सकते. मानव जीवन में रूस ने पुतिन के स्लाविक एम्पायर (Slavic empire) के भव्य सपनों के लिए जो भारी कीमत चुकाई है, वह जल्द ही उसे परेशान करेगा. जैसे-जैसे युद्ध आगे बढ़ता है और घर आने वाले बॉडी बैग की संख्या बढ़ने लगती है तो राष्ट्रवादी उत्साह धुआं-धुआं होने लगता है. यही वह डेंजर जोन है जिसकी तरफ पुतिन बढ़ रहे हैं.
Rani Sahu
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