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सोचने पर जल्द ही यह स्पष्ट हो जाता है
आशीष मेहता
सोचने पर जल्द ही यह स्पष्ट हो जाता है कि धर्म का अर्थ (Definition Of Dharam) समझना आसान नहीं है; इसे समझना इतना कठिन है कि कुछ लोग इसे समझने के लिए शब्दकोश उठाने के बजाय तलवार उठा लेते हैं. ये रवैया ऐसे लोगों को जंचता है जो अपने काल्पनिक द्वेषों को सच साबित करने के लिए मनमाफिक तर्क तलाशते हैं और अपने अहंकार को तेज करने वाले इस अभियान में अपने जैसे और भी लोगों को शामिल करना चाहते हैं. ऐसे में यति नरसिंहानंद (Yati Narsinghanand) जिनके खिलाफ उत्तर प्रदेश में कई पुलिस मामले लंबित हैं जैसे धर्म के ठेकेदारों के पास यह पता नहीं करने का एक जायज कारण भी है कि जिसकी वे रक्षा करना चाह रहे हैं आखिर वह चीज है क्या?
दूसरी ओर जो लोग स्वयं धर्म के बारे में चिंतित हैं उन्हें जल्द ही समझ आ जाता है कि महाभारत (Mahabharat) इस देश के लोगों के लिए दो प्रमुख महाकाव्यों में से एक क्यों है. इस महान पुस्तक के मूल में दुविधा धर्म को समझने की ही है. यह इतना जटिल है कि इसे समझना मुश्किल है.
और इसका मतलब क्या है? महान संस्कृत शब्दकोश अमरकोश इसके लिए 'पुण्य', 'नैतिक योग्यता' और 'कर्तव्य' जैसे पर्यायवाची शब्द प्रस्तुत करता है. महान कोशकार मोनियर मोनियर-विलियम्स इसके कई और अर्थ ढूंढ निकालते हैं और सांख्यिकीय विश्लेषण शास्त्रों में इस शब्द के विभिन्न इस्तेमाल के लिए 905 अर्थ हैं. एक अनुवादक (ग्लेन वालिस) का कहना है कि "यह किसी भी भाषा के सबसे बहु संयोजक शब्दों में से एक है." उन्होंने पाया कि अंग्रेजी में इसके समकक्ष शब्दों का हिंदी अनुवाद हैं नैतिकता, धार्मिकता, कानून, नींव, प्रथा, शिक्षण और सत्य.
"मुसलमानों के खिलाफ युद्ध"
जबकि इनमें से प्रत्येक शब्द यति नरसिंहानंद और उनके साथियों के मन में "मुसलमानों के खिलाफ युद्ध" का आह्वान करने से कोसों दूर है. इस पर खास ध्यान दिया जाना चाहिए कि धर्म के लिए इस्तेमाल 900 दूसरे शब्दों में से किसी का भी अर्थ धर्म नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे पूर्वजों ने 'पुण्य' या 'नैतिक योग्यता' को अपने जीवन जीने का तरीका बनाया था. उन्होंने उस पर 'धर्म' का लेबल तब तक नहीं लगाया जब तक कि दूसरी 'जीवन-शैली' वाले लोगों ने आकर नहीं पूछा कि तुम्हारा धर्म क्या है. तब 'हिंदू धर्म' का सृजन हुआ जिसमें सद्गुण और नैतिक योग्यता के अनुसार जीने के लिए कुछ नियम थे.
तो क्या सदाचारी जीवन और सभी के लिए समभाव हिंदू धर्म है? गोडसे के प्रशंसकों के लिए गांधी की विचारधारा को उद्धृत करना महंगा साबित हो सकता है, लेकिन चूंकि कई लोग उन्हें एक अनुकरणीय हिंदू मानते हैं इसलिए उनके विचार मायने रख सकते हैं. उन्होंने कहा कि भले ही पूरा हिंदू धर्म किसी आपदा में नष्ट हो जाए – ठीक उसी तरह जैसे यति नरसिंहानंद हमें डराना चाहते हैं – यह सब पुनर्जीवित किया जा सकता है यदि केवल इशावस्या उपनिषद का पहला श्लोक बचता है. यह क्या कहता है? सरल शब्दों में कहें तो 'पूरी दुनिया ईश यानी ईश्वर से व्याप्त है इसलिए चिंता त्यागकर इस दुनिया का आनंद लें'. इसका त्याग करते हुए इसका आनंद लेने के कई तरीके हैं लेकिन अपने पड़ोसियों को मारना उनमें से एक नहीं है.
अधर्म संसद कहना कहां तक सही
महान संस्कृत विद्वान क्षिति मोहन सेन ने हिंदू धर्म का एक छोटा सा परिचय दिया था. यह 1960 में उनकी मृत्यु के एक साल बाद प्रकाशित हुआ और बाद में इसे एक क्लासिक (उत्कृष्ट) का दर्जा प्राप्त हुआ. इसके मौजूदा संस्करण में उनके पोते की प्रस्तावना भी शामिल है. उनका नाम लेने से हिंदू धर्म के स्वयंभू रक्षकों को यह पता लगाने का एक और कारण मिल सकता है कि वे किससे बचाव कर रहे हैं. सेन की व्यापक थीसिस का सारांश यह है कि "हिंदू धर्म, अपने आधुनिक राजनीतिक पुनरुत्थान के विपरीत बहुत सहिष्णु है, यह एक विश्वव्यापी और सार्वभौमिक धर्म है, जो सभी तरह के बाहरी धार्मिक प्रभावों को अपने रूप में समाहित करने में सक्षम है."
तुलसीदास जैसे संत-कवियों की जरूरत
लेकिन सभी लोगों से इतना अधिक पढ़ने की उम्मीद नहीं की जा सकती है. यहीं पर तुलसीदास जैसे संत-कवियों की जरूरत महसूस होती है जो जटिल विषयों को भी आम लोगों के लिए सरलता से बयां कर देते हैं: "दया धर्म का मूल है." हरिद्वार में होने वाले तीन दिवसीय आयोजन का विषय दया, करुणा और सहानुभूति ही था. लेकिन वहां इन सबके बारे में बात न करके भड़काऊ भाषण दिए गए. इसे वास्तविकता में 'अधर्म संसद' कहना ज्यादा सही होगा. वे एक चीज का नामकरण कर रहे हैं और उसके विपरीत अपने बचाव की बात कर रहे हैं. ये कहना गलत नहीं होगा कि भारत की सीमाओं की रक्षा के नाम पर वे पाकिस्तानी सेना में शामिल हो रहे हैं.
हिंदुओं को सहिष्णु माना जाता है लेकिन हां उनका धर्म खतरे में है और हां उन्हें इसके बारे में कुछ करना चाहिए. राज्य और उसकी पुलिस जैसी अथॉरिटी धर्मनिरपेक्ष होते हैं; उनसे धर्म की रक्षा की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए. अब समय आ गया है कि धार्मिक नेता आगे आएं और नापाक इरादों के लिए आस्था का इस्तेमाल करने वाले लोगों के खिलाफ अपनी आवाज उठाएं.
Rani Sahu
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