सम्पादकीय

समय इतने निष्ठुर ना बनो

Rani Sahu
7 Sep 2021 12:52 PM GMT
समय इतने निष्ठुर ना बनो
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युवाओं का यूं दुनिया को कम उम्र में छोड़कर चले जाना कितना दुःखद है. असमय बूढे़ कन्धो को और भी कमजोर करके जाना बेहद दुःखद है

रेखा गर्ग। युवाओं का यूं दुनिया को कम उम्र में छोड़कर चले जाना कितना दुःखद है. असमय बूढे़ कन्धो को और भी कमजोर करके जाना बेहद दुःखद है. सिसकती राखी, सूनी मांग और बेबस बूढ़ी मां की आंखों की लाचारी किसी यातना से कम नहीं. जो नहीं होना चाहिए, वो हो रहा है, पिछले कुछ सालों में दिल को छू लेने वाले ये हादसे मन-मस्तिष्क पर काफी दुष्प्रभाव डाल रहे हैं. हंसती-खेलती ‍जिंदगी में युवाओं की मौत के ये आंकड़े काफी चौंकाने और झकझोर देने वाले हैं.

असमय अचानक मौत को गले लगाना या मौत का आ जाना एक युग का अंत करने के लिए काफी है. अपने स्वर्णिम भविष्य निर्माण के लिए अथक परिश्रम को जीवन का अंग बनाने वाले आज के युवा हादसों के शिकार हो रहे हैं और स्वयं भी निराशा को गले लगाकर आत्म विनाश कर रहे हैं. क्या है जो ये पाना चाहते हैं, पाकर भी कुछ अधूरी सी चाह रखते हैं. अधर में लटकी जिंदगी जीने को विवश होते हैं, मृत्यु उपरांत भी संदेह की उंगलियां इनके जीवन को और भी संदिग्‍ध बना देती हैं.
बुलंदियों को छूने की इनकी ललक, आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्द्धा, बहुत कुछ सहकर भी काम करने की दृढ़ता और उस क्षेत्र की सफलता को पाकर भी निरन्तर एक दवाब में रहना, इनकी नियति बन गयी है. शारीरिक स्वास्थ्य के लिए भी जो बन पड़ता है करते हैं, फिर भी असमय क्यों काल-कवलित हो जाते हैं. इन युवाओं का जाना समय-चक्र को भी रोक देता है. असंख्‍य हृदय इनके जाने के बाद दुःख से द्रवित हो मानसिक अवसाद का शिकार हो जाते हैं.
क्यों हो जाता है जिंदगी की शुरुआत में जीवन का अंत
रिश्तों में कुछ भी ना लगने वाले ये हमारे इतने आत्मीय होते हैं कि इनकी क्षति से उबरने में बहुत वक्त लग जाता हैं. एक के बाद एक जाने वाले ये प्रिय व्यक्ति हर युग में असख्‍ंय लोगों को रुलाकर कहीं विलीन हो जाते हैं. फिल्मी एक्टर हों, गायक हों, विभिन्न क्षेत्र की प्रतिभाएं हों या मोर्चे पर डटे युवा सैनिक हों, जब असमय ही विलग होते हैं तो बहुत तकलीफदेय होता है. देश के इन युवाओं की मौत किसी एक परिवार की क्षति नहीं है वरन् वह हर घर की अपूर्णता है.
युवाओं का जाना खालीपन दे जाता है. कुछ पलों के, कुछ दिनों के लिए जिंदगी की रफ्तार को धीमी कर जाता है, जिंदगी जीने के उत्साह को कम कर जाता है, भान करा जाता है संसार की नश्वरता को और बोध करा देता है कि सब कुछ क्षणिक है. सब्र तभी आता है, जब अहसास होता है, हम कुछ कर ही नहीं सकते. ये विधि का विधान है, पर विधि का विधान इतना घातक क्यों है? जिंदगी की शुरुआत में ही अंत क्यों हो जाता है.
रुलाने के लिए काफी है खेलने की उम्र में चले जाना
कहीं, किसी पीड़ित को मौत का इंतजार है और कहीं जिंदगी शुरु होने से पहले ही समाप्त हो जाती है.और मां-बाप के सपने वृद्धावस्था में आंसू बन जाते हैं. अकेलेपन के साथी बन जाते है. युवाओं का जाने से उनका परिवार के सदस्य सिसकती, तड़पती जिंदगी काटने को विवश हो जाते हैं. युवा बेटे का गम मां-बाप की बैसाखियां छीन लेता है, बहिन की खुशियां ले जाता है, पत्नी का जीवन अंधकार मय बना जाता है और खिलखिलाते बच्चों का भविष्य संकट में डाल जाता है. खुद खेलने की उम्र में चले जाना सभी को रुलाने के लिए काफी है .
युवा पीढ़ी की मौत पर मन भाग्य के लेख को भी स्वीकार नहीं कर पाता है. दिल इजाजत ही नहीं देता कि ये सब क्यों हो गया. एक स्वस्थ, मूल्यवान, स्नेही साथ जिसके हंसने पर हम हंसते हैं, रोने पर रोते हैं, वो जब चला जाये, तो मन का वो हिस्सा खाली हो जाता है, जहां उसकी छवि होती है, उदास दिवारों पर झांकते चित्र, अधूरी जरुरतों की मांगे, अनकहे शब्दों से गूंजती अतीत की यादें जब मन को कचोटती हैं तो असंख्‍य बाणों का बेधन होता है. अपने रिश्तों के साथ बिताया समय और अचानक से उनका चला जाना ऐसा दर्दनाक हादसा किसी घर आंगन में ना हो, ईश्वर के बनाए खूबसूरत जीवन पूर्णता को प्राप्त हो.


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