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- अफगानिस्तान में...
आर विक्रम सिंह : अफगान समस्या आखिर है क्या? अफगानिस्तान में भारत की क्या भूमिका है? आज ऐसे कई सवाल उभर आए हैं। अफगानिस्तान की विकास योजनाओं-सड़क, बांध, स्कूल, अस्पताल, संसद भवन आदि के निर्माण में हमारी भूमिका रही है। शांतिकाल में तो भारत अफगानों में बहुत लोकप्रिय है, लेकिन जब सत्ता के जमीनी समीकरण की बात आती है तो इस्लामिक अफगानिस्तान में हमारी कोई भूमिका नहीं बनती। रणनीति हमारे गांधीवादी नेतृत्व का विषय कभी रहा ही नहीं। जब पाकिस्तान अस्तित्व में आ गया तो हमारे पास अफगानिस्तान के लिए कश्मीर के गिलगित-बाल्टिस्तान से होकर ही एक रास्ता बचता था। उसके पाकिस्तान के पास जाने से वह रास्ता भी हाथ से निकल गया। पाकिस्तान से हुए युद्धों में हमारे पास गिलगित-बाल्टिस्तान को उसके कब्जे से मुक्त कराने के बड़े अवसर आए, पर न तो इच्छाशक्ति थी और न ही कोई रणनीतिक सोच। वरना आज चीन का सीपैक प्रोजेक्ट तो अस्तित्व में ही न आ पाता। अफगानिस्तान को देखने का दुनिया का और हमारा नजरिया अलग है। यह क्षेत्र जिसे हमारा इतिहास गांधार, कंबोज के नाम से जानता रहा है, भारत का ऐतिहासिक पश्चिमी प्रवेश द्वार था। हूण-कुषाण भी इन्हीं क्षेत्रों में आकर बसे। पर्वतीय दर्रों की सुरक्षा शताब्दियों से जिस गांधार का दायित्व रही, वह गांधार लगातार हुए मजहबी आक्रमण के फलस्वरूप आज कंधार बन गया। हमारी संस्कृति पर स्मृतिलोप का प्रभाव इतना भयंकर है कि हमें अपना भूला हुआ इतिहास भी याद नहीं आता।